भारत का भाषायी परिवेश और भाषा सीमा
जिन स्थानों पर दो भाषाएँ इस प्रकार से मिलती
हैं कि उनमें परस्पर बोधगम्यता में पर्याप्त कमी हो जाती है, भाषा सीमा
कहलाते हैं। इन स्थानों से ही दो भाषाओं के भाषा
क्षेत्रों या किसी एक भाषा के भौगोलिक विस्तार की पहचान होती है। यद्यपि ऐसा होना
कठिन है कि कोई ऐसा स्थान प्राप्त हो जाए जहाँ पर दो भाषाएँ बिल्कुल भिन्न-भिन्न
हो जाती हों, क्योंकि ऐसे स्थानों पर भी दोनों भाषाओं के
मिश्रित रूप प्रचलन में रहते हैं फिर भी जहाँ से अंतर की मात्रा बढ़ जाती है,
उन्हें भाषा सीमा के रूप में चिन्हित किया जाता है। भाषा सीमा का
निर्धारण भाषा भूगोल के अंतर्गत आता है।
भाषा-सीमा के बारे में और पढ़ें-
https://www.hmoob.in/wiki/Language_boundary
भारत एक ऐसा देश है जहाँ 16 साल से
अधिक भाषाएँ बोली जाती हैं। यहाँ पर प्रत्येक राज्य में एक से अधिक भाषाओं का
व्यवहार होता है। विभिन्न क्षेत्रों में बोली जाने वाली प्रमुख भाषाओं के आधार पर
कुछ राज्यों को अलग-अलग भी किया गया है। इसके बावजूद ऐसी स्थिति देखने को मिलती है
कि एक राज्य में दूसरे राज्य की प्रमुख भाषा का व्यवहार होता है। उदाहरण के लिए
महाराष्ट्र के दक्षिणी क्षेत्रों में कन्नड़ भाषा का व्यवहार होता है तो कर्नाटक
के उत्तरी क्षेत्र में मराठी भाषा का व्यवहार भी देखा जा सकता है। यही स्थिति अन्य राज्यों के संदर्भ में भी देखने को मिलती है।
भारत के जिन क्षेत्रों में भौगोलिक कठिनाइयां
नहीं हैं,
वहाँ पर भाषा सीमाओं का मिलना अत्यंत कठिन बात है, क्योंकि इन क्षेत्रों में दोनों भाषाओं के मिश्रित रूप विकसित रहते हैं,
किंतु जहाँ पर भौगोलिक कठिनाइयाँ होती है, वहाँ
पर भाषा सीमा आसानी से मिल जाते हैं। उदाहरण के लिए मैदानी भागों में भाषा-सीमा
मिलना कठिन है जबकि उत्तर पूर्व क्षेत्र में भाषा-सीमा सरलता पूर्वक मिल जाती है।
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