कार्पस भाषाविज्ञान और भाषाविज्ञान
‘भाषाविज्ञान’ के संपूर्ण स्वरूप के सापेक्ष ‘कार्पस भाषाविज्ञान’ की
स्थिति इस प्रकार से देख सकते हैं-
2.1 सैद्धांतिक भाषाविज्ञान
अध्ययन और उपयोगिता की दृष्टि
से भाषविज्ञान के दो पक्षों की बात की जाती है- सैद्धांतिक भाषाविज्ञान और अनुप्रयुक्त
भाषाविज्ञान। इनमें सैद्धांतिक भाषाविज्ञान के अंतर्गत भाषा के स्तरों का अध्ययन करने
वाली शाखाएँ आती हैं, जिनका हम परिचयात्मक अध्ययन कर चुके हैं। एक चित्र
रूप में एक बार पुनः उन्हें इस प्रकार से देखा जा सकता है-
इस चित्र में भाषाविज्ञान की जिन शाखाओं को दर्शाया गया है, वे सभी सैद्धांतिक भाषाविज्ञान के अंतर्गत आती हैं। अतः सैद्धांतिक भाषाविज्ञान में भाषाविज्ञान की निम्नलिखित शाखाएँ आती हैं-
§ ध्वनिविज्ञान/स्वनविज्ञान (Phonetics)
§ स्वनिमविज्ञान (Phonology)
§ रूपविज्ञान (Morphology)
§ वाक्यविज्ञान (Syntax)
§ प्रोक्ति विश्लेषण (Discourse Analysis)
§ अर्थविज्ञान (Semantics)
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि
सैद्धांतिक भाषाविज्ञान में उपर्युक्त शाखाओं के माध्यम से ‘भाषा की व्यवस्था’ का अध्ययन किया जाता है।
2.2 अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान (Applied
Linguistics)
इसका संबंध सैद्धांतिक भाषाविज्ञान
के माध्यम से पढ़ी हुई सामग्री (प्राप्त ज्ञान) का अनुप्रयोग (Application) करने से है। उपर्युक्त शाखाओं के माध्यम से अर्जित ज्ञान भाषा का सैद्धांतिक
ज्ञान कहलाता है। उस ज्ञान का अनुप्रयोग दो प्रकार से किया जा सकता है-
(क)
दूसरी ज्ञानशाखाओं के साथ मिलाकर और अधिक अध्ययन :- इसे अंतरानुशासनिक (Interdisciplinary) अनुप्रयोग कहते हैं।
(ख) व्यावहारिक जीवन के किसी क्षेत्र में अनुप्रयोग :- इसे व्यावहारिक अनुप्रयोग कहते हैं।
(ग) तकनीकी अनुप्रयोग : डिजिटल मशीनों में
भाषा संबंधी ज्ञान का अनुप्रयोग।
उपर्युक्त
तीनों प्रकार के अनुप्रयोगों में ‘कार्पस भाषाविज्ञान’ की स्थिति को चित्र रूप में इस प्रकार से देख सकते हैं-
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