भारतीय भाषाओं में समानता और अंतर
जनगणना 2011 के अनुसार भारत में निम्नलिखित भाषा परिवारों की भाषाएँ बोली जाती हैं-
जनगणना 2011 के आधार पर ही इन भाषा परिवारों में आने वाली भाषाओं की सूची इस प्रकार से देखी जा सकती है-
जिस देश में इतना अधिक भाषा वैविध्य हो, वहाँ पर भाषाओं में अंतर होना स्वभाविक है, किंतु समान भाषा परिवार की भाषाओं में समानता भी अधिक मिलती है। उदाहरण के लिए भारत यूरोपीय भाषा परिवार की भाषाओं में पर्याप्त समानता देखी जा सकती है। हिंदी के अंतर्गत आने वाली भाषाओं में तो इतनी समानता है कि उनमें से किसी भी भाषा के भाषा भाषी दूसरी भाषा के व्यक्ति के साथ सामान्य व्यवहार हेतु संवाद सरलतापूर्वक कर सकते हैं।
यही बात अन्य भाषा परिवारों पर भी लागू होती है। उदाहरण के लिए द्रविड़ भाषा परिवार की किसी भी भाषा का व्यक्ति दूसरी भाषा परिवार के व्यक्ति के साथ सरलतापूर्वक संवाद स्थापित कर सकता है। भारत के उत्तर पूर्व में स्थित राज्यों की भाषाओं में विशेष रूप से असमानता प्राप्त होती है, क्योंकि वहां की भौगोलिक परिस्थितियों के कारण लोगों का एक-दूसरे से मिलना-जुलना कम हो पाता है। इसी कारण से उनकी भाषाओं में परस्पर आदान-प्रदान भी कम होता है। इसलिए उधर की भाषाओं में कम समानता देखने को मिलती है।
ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाए तो संस्कृत ने संपूर्ण भारतीय समाज को किसी-न-किसी रूप में प्रभावित किया है। इस कारण संस्कृत और लगभग सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं में समानता देखने को मिलती है। संस्कृत के ढेर सारे शब्द उत्तर भारतीय और दक्षिण भारतीय भाषाओं में प्राप्त होते हैं। जो इस बात की ओर संकेत करते हैं कि वैदिक काल या लौकिक काल में संस्कृत एक व्यापक परिदृश्य की भाषा रही है।
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