जार्ज ग्रियर्सन के भाषा सर्वेक्षण की कमियाँ/सीमाएँ तथा नए भाषा सर्वेक्षण की आवश्यकता
भारत का अब तक का
एकमात्र पूर्ण भाषा सर्वेक्षण जार्ज ग्रियर्सन द्वारा 1894 से 1928 के बीच किया
गया है। इसके पश्चात अभी तक कोई भी पूर्ण भाषा सर्वेक्षण नहीं किया जा सका है। इस
कारण जॉर्ज ग्रियर्सन के भाषा सर्वेक्षण का महत्व
असंदिग्ध है, जिसे हम ‘भारत का भाषा सर्वेक्षण’ (लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया-एल.एस.आई.) के नाम से जानते हैं। चूँकि यह
भाषा सर्वेक्षण 100 वर्ष से भी
अधिक पुराना हो गया है और इसमें संकलित सामग्री में भारत के भाषायी परिदृश्य तथा
भाषावैज्ञानिक दृष्टि से कमियाँ प्राप्त होती हैं, इसलिए
नए भाषा सर्वेक्षण की आवश्यकता से इनकार नहीं किया जा सकता। वर्तमान में बहुत से
भाषावैज्ञानिक इस भाषा सर्वेक्षण की विभिन्न कमियों की ओर ध्यान दिलाते रहे हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख को इस प्रकार से देखा जा सकता है-
§ जॉर्ज
ग्रियर्सन द्वारा किए गए भारत के भाषा सर्वेक्षण में द्विभाषिकता और बहुभाषिकता के
आकलन में कमियाँ देखी जा सकती हैं।
§ दक्षिण भारतीय
भाषाओं को समुचित अध्ययन नहीं किया गया है (मद्रास प्रांत, हैदराबाद और मैसूर का समावेशनहीं)।
§ जॉर्ज
ग्रियर्सन द्वारा किए गए भाषा सर्वेक्षण में उपलब्ध सामग्री तथा सामग्री संकलन की
विधि पूर्णतः भाषा वैज्ञानिक नहीं रही है, क्योंकि उस समय तक भाषाविज्ञान
उतना अधिक विकसित नहीं हो सका था और भारत में तो प्रशिक्षित भाषावैज्ञानिकों की
कल्पना भी नहीं की जा सकती।
§ यह भाषा
सर्वेक्षण मुख्यतः व्याकरण केंद्रित था। स्वनिक दृष्टि से कोई कार्य नहीं किया गया
है।
इन सब बातों को देखते हुए भारत के एक नए पूर्ण
भाषा संरक्षण की आवश्यकता से इनकार नहीं किया जा सकता। नए भाषा शिक्षण की आवश्यकता
संबंधी कुछ बिंदुओं को इस प्रकार से दर्शाया जा सकता है-
§ पिछले पांच-सात
दशकों में भारत में भाषाविज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक विद्वानों द्वारा
विभिन्न भारतीय भाषाओं पर काम किए गए हैं। इन कामों से भारतीय भाषाओं की समझ में
व्यापक वृद्धि हुई है, जिसका प्रयोग करते हुए किया जाने वाला भाषा सर्वेक्षण अधिक उपयुक्त
तथा अधिक उपयोगी होगा।
§ यदि नया भाषा
सर्वेक्षण किया जाता है तो उसमें भाषाई मानचित्रण का भी काम किया जाएगा जो जार्ज
ग्रियर्सन द्वारा किए गए भारत के भाषा सर्वेक्षण में नहीं प्राप्त होता है। पिछले
कुछ दशकों में विभिन्न देशों में हुए भाषा सर्वेक्षणों में भाषायी मानचित्र
निर्मित किए गए हैं। अतः भारत का भाषाई मानचित्र बनाने में भी सुविधा होगी।
§ नए भाषा
सर्वेक्षण से प्राप्ट डेटा की सहायता से विभिन्न भारतीय भाषाओं के वास्तविक डेटा
आधारित व्याकरण, शब्दकोश, संदर्भ कोश और कार्पस आदि
विकसित किए जा सकेंगे।
§ भारतीय भाषाओं
से संबंधित मानचित्र, चार्ट, बोली एटलस आदि का निर्माण तथा
समभाषांश सीमा रेखाओं का निर्धारण वास्तविक डेटा के आधार पर किया जा सकेगा।
§ विभिन्न भारतीय भाषाओं के लिए आवश्यक दृश्य
श्रव्य सामग्री भी विकसित की जा सकेगी।
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