व्याकरणिक कोटियाँ (Grammatical Categories)
भाषा व्यवहार के लिए
शब्दों का वाक्य में प्रयोग करने पर उनके साथ जिन कोटियों से संबंधित सूचनाएं
जुड़ती हैं, उन्हें हम व्याकरणिक कोटियां कहते हैं।
इन कोटियों से संबंधित सूचनाओं के कारण ही व्याकरणिक वाक्यों का निर्माण संभव हो
पाता है। व्याकरणिक कोटियों के अनुसार ही शब्दों का रूपसाधन (inflection) या पदसाधन होता है। यही कारण है कि किसी भी भाषा की शब्द संरचना या रूप
संरचना (morphological structure) के अंतर्गत हम व्याकरणिक
कोटियों का अध्ययन करते हैं। यह भाषाविज्ञान में रूपसाधक रूपविज्ञान (Inflectional
Morphology) के अंतर्गत आने वाला अध्ययन का बिंदु है।
किसी भी भाषा में आठ
व्याकरणिक कोटियों की बात की जाती है-
लिंग, वचन, पुरुष, काल, पक्ष, वृत्ति, कारक तथा वाच्य
इन्हें संक्षेप में इस
प्रकार से समझ सकते हैं -
(क) लिंग (Gender)
प्राणियों की वह प्रकृति
जिससे मानव संज्ञान द्वारा उनके ‘नर’ या ‘मादा’ होने का
निर्धारण किया जाता है, उनका वास्तविक लिंग (sex)
है। भाषा में इसका बोधन व्याकरणिक लिंग (gender) कहलाता है।प्राणियों और वस्तुओं की वास्तविक स्थिति के आधार पर मूलतः लिंग
के तीन प्रकार किए जा सकते हैं- पुरुष, स्त्री और अन्य।
इसे ही आधार बनाते हुए
व्याकरण में भी सामान्यतःतीन प्रकार के लिंग की बात की जाती है- पुल्लिंग,
स्त्रीलिंग और नपुंसकलिंग। किंतु कुछ भाषाओं में कुछ शब्द ऐसे भी
होते हैं, जिनसे पुरुष और स्त्री दोनों प्रकार लिंगों का बोध
होता है, ऐसे शब्दों को लिंग की
दृष्टि से ‘उभयलिंग’ के अंतर्गत
रखा जाता है।
इस प्रकार स्पष्ट
है कि किसी भी भाषा में लिंग की संख्या चार तक हो सकती है, किंतु
इन चारों लिंगों का सभी भाषाओं में पाया जाना आवश्यक नहीं है। सभी भाषाएँ
अपनी-अपनी प्रकृति और समाज-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के अनुरूप लिंगों का बोध कराती
हैं।
हिंदी में दो लिंग पाए
जाते हैं- पुल्लिंग और स्त्रीलिंग।
अतः इसमें नर और मादा के
अलावा अन्य प्रकार के सभी शब्दों को भी इन्हीं दो लिंगों में विभक्त करके देखा
जाता है। यही कारण है कि हिंदी में वाक्य रचना में शब्दों के लिंग
निर्धारण को लेकर प्रायः समस्या आती रहती है।
रूपसाधन अथवा रूप संरचना
या पद संरचना की दृष्टि से बात करें तो हिंदी में लिंग के आधार पर संज्ञा,
विशेषण और क्रिया शब्दों के रूप बनाए
जाते हैं।
(ख) वचन (Number)
वाक्य में प्रयुक्त शब्द
द्वारा होने वाला उसकी संख्या का बोध वचन (Number) है।
अधिकांश भाषाओं में वचन का विभाजन ‘एक’ और ‘अनेक’ दो रूपों में किया जाता
है। इस आधार पर देखा जाए तो सामान्यतः वचन के दो प्रकार किए जाते हैं- एकवचन और
बहुवचन। हिंदी में भी वचन के इन्हीं दो प्रकारों का प्रयोग होता है।
यहां ध्यान रखने वाली बात
है कि संस्कृत या इस प्रकार की कुछ भाषाओं में भाषाओं में द्विवचन भी प्राप्त होता
है। हिंदी में केवल दो ही वचन हैं।
रूपसाधन अथवा रूप संरचना
या पद संरचना की दृष्टि से बात करें तो वचन के आधार पर भी हिंदी में संज्ञा,
विशेषण और क्रिया के रूप प्रभावित होते हैं। हिंदी में ‘संज्ञा’ शब्दों की रूपरचना को वचन के साथ-साथ परसर्ग
भी प्रभावित करते हैं।
(ग) पुरुष (Person)
किसी भी भाषा व्यवहार में
तीन प्रकार के लोगों के प्रति संबोधन संभव है- वक्ता,
श्रोता और कोई अन्य व्यक्ति। इसी अवधारणा के आधार पर 'पुरुष' नामक व्याकरणिक कोटि की संकल्पना की गई है।
पुरुष (person) द्वारा यह ज्ञात होता है कि भाषिक उक्ति वक्ता
के संबद्ध है या श्रोता से अथवा किसी अन्य से। यह कोटि मुख्यत: ‘सर्वनाम’ से संबंधित है। पुरुष के तीन प्रकार हैं-
उत्तम पुरुष या प्रथम पुरुष, मध्यम पुरुष, अन्य पुरुष। सभी संज्ञा शब्द सदैव अन्य पुरुष में होते हैं।
हिंदी सर्वनाम तीनों
पुरुषों में एकवचन और बहुवचन दोनों रूपों में पाए जाते हैं,
जैसे-
· प्रथम/उत्तम पुरुष - मैं, हम
· मध्यम पुरुष - तू, तुम
और आप
· अन्य पुरुष - वह, वे (यह,
ये)
(घ) कारक (Case)
कारक (Case)
संबंध है जो वाक्य की मुख्य क्रिया को वाक्य में आए संज्ञा पदबंधों
से जोड़ता है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो किसी वाक्य में आने वाले विविध प्रकार
के संज्ञा पदबंध इस वाक्य की मुख्य क्रिया के साथ जिस संबंध में जुड़ते हैं,
उसे कारक कहते हैं। अतः कारक मूलतः प्रकार्यात्मक इकाई है। इसे
अभिव्यक्त करने के लिए विभिन्न भाषाओं में भिन्न-भिन्न प्रकार के व्याकरणिक शब्द,
प्रत्यय आदि प्रयुक्त होते हैं।
हिंदी में कारक संबंधों
की अभिव्यक्ति परसर्गों के माध्यम से होती है। संस्कृत में कारकों की अभिव्यक्ति
का यही कार्य विभक्तियों के माध्यम से किया जाता रहा है। इसी कारण हिंदी में
परसर्ग और विभक्ति चिह्न को लेकर अलग-अलग मत भी देखने को मिलते हैं। कुछ वैयाकरणों
द्वारा परसर्गों को विभक्ति या विभक्ति चिह्न नाम दिया गया है।
हिंदी में परसर्गों के
प्रयोग में भी विविधता देखने को मिलती है। संज्ञाओं के साथ परसर्ग अलग लिखे जाते
हैं और सर्वनामों के साथ जोड़कर। किंतु परसर्गों का प्रयोग होने पर संज्ञाओं के रूप
भी बदलते हैं, जैसे- लड़का का बहुवचन रूप ‘लड़के’ है जो परसर्ग लगने पर ‘लड़कों’
हो जाता है।
(ङ) काल (Tense)
किसी भाषिक अभिव्यक्ति
द्वारा उसमें घटित कार्य-व्यापार के समय की दी जाने वाली सूचना काल है। अधिकांश
भाषाओं में तीन काल पाए जाते हैं, जो हिंदी में भी हैं-
वर्तमान काल,
भूतकाल और भविष्यकाल।
काल द्वारा कार्य के
संपादन के समय का पता चलता है अतः वाक्य में इसका संबंध
‘क्रिया’ से होता है। काल के आधार पर हिंदी
में केवल क्रियाओं के ही रूप प्रभावित होते हैं। इसका प्रभाव मुख्य क्रिया और
सहायक क्रिया दोनों पर देखा जा सकता है।
(च) पक्ष (Aspect)
किसी काल विशेष में घटित
होने वाली घटना के घटित होने की अवस्था का बोध कराने वाली व्याकरणिक कोटि पक्ष (Aspect)
है। चूँकि इसका संबंध क्रिया के घटित होने के समय बताने से ही है,
इसलिए पक्ष और काल एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं। काल का संबंध क्रिया
के व्यापार के समय को सूचित करने से है तो पक्ष का संबंध उस समय विशेष में व्यापार
के घटित होने की अवस्था से।
पक्ष के मूल रूप से दो
प्रकार हैं- पूर्ण और अपूर्ण। वैसे इसके अलावा भी कुछ दूसरे भेद किए जा सकते हैं।
इसी प्रकार अपूर्ण पक्ष के कुछ उपप्रकार भी किए गए हैं,
जैसे- स्थित्यात्मक, नित्य, सातत्य आदि।
(छ) वृत्ति (Mood)
भाषा व्यवहार में ऐसे
वाक्यों का प्रयोग करना जिनसे कार्य के घटित होने की सूचना मिलने के बजाय केवल उस
कार्य के संपादन के बारे में वक्ता के अभिमत आदि संबंधी सूचना मिलती है,
तो वहां पर वृत्ति मानी जाती है।
वृत्ति के कई प्रकार किए
जाते हैं,
जैसे-
इच्छापरक"
इसमें वक्ता की इच्छा हो
सकती है,
जैसे- ‘मैं खाना चाहता हूँ।’
इस वाक्य में
‘जाने’ का व्यापार घटित नहीं हो रहा है केवल
यह वक्ता की इच्छा मात्र है।
इसी प्रकार आज्ञा,
निवेदन, सलाह और विवशता आदि संबंधी वाक्य भी
देखे जा सकते हैं।
इस प्रकार के वाक्यों
द्वारा व्यक्त भावों को सामूहिक रूप से वृत्ति (Mood) नाम दिया गया है। व्याकरण में वृत्ति के ‘संभावनार्थक,
आज्ञार्थक/निवेदनार्थक, सामर्थ्यसूचक, बाध्यतासूचक, हेतुहेतुमद्भाव’ प्रकार
किए गए हैं।
(ज) वाच्य (Voice)
‘कर्ता’ और ‘कर्म’ क्रिया से सीधे-सीधे
जुड़े होते हैं और उसके रूप को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। अत: ‘क्रिया का रूप कर्ता के आधार पर निर्मित हो रहा है या कर्म के आधार पर या
दोनों से नहीं’– को व्यक्त करने वाली व्यवस्था को एक
व्याकरणिक कोटि के रूप में ‘वाच्य’ नाम दिया जाता है।
हिंदी में वाच्य के तीन
प्रकार किए जाते हैं- कर्तृवाच्य, कर्मवाच्य और
भाववाच्य।
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