Total Pageviews

Saturday, April 1, 2023

क्रिया शब्दों की पद (रूप) संरचना (Morph. Structure of Verbs)

 क्रिया शब्दों की पद (रूप) संरचना

वे शब्द जिनके अर्थ में किसी कार्य के करने या होने का भाव होता है, क्रिया कहलाते हैं।  इन शब्दों से किसी कार्य के बारे में सूचना मिलने के अलावा किसी वस्तु की स्थिति, अवस्था आदि का भी बोध होता है। विविध आधारों पर क्रियाओं के विविध वर्ग किए जाते हैं जैसे कर्म संबंधी स्थिति के आधार पर क्रिया के प्रकार अकर्मक क्रिया सकर्मक क्रिया तथा द्विकर्मक क्रिया के रूप में किया जाता है इसी प्रकार संरचना की दृष्टि से सरल क्रिया मिश्र क्रिया संयुक्त क्रिया और योगिक क्रिया के रूप में किया जाता है।  इस वर्गीकरण का  संबंध क्रिया की रूप संरचना से नहीं है।

क्रिया की रूप-संरचना  से तात्पर्य यह है कि किसी भी भाषा में क्रिया शब्दों के रूपसाधन द्वारा कितने रूप बनते हैं।  इस दृष्टि से विचार किया जाए तो किसी भी भाषा में सामान्यतः क्रियाओं के दूसरे शब्द वर्गों के शब्दों की तुलना में अधिक रूप बनते हैं। हिंदी में भी यह स्थिति देखी जा सकती है। क्रियाओं के रूपों के निर्माण में अधिक से अधिक व्याकरणिक कोटियों का प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए हिंदी में क्रिया पर लिंग, वचन, पुरुष, काल, पक्ष, वृत्ति और वाच्य लगभग सभी व्याकरणिक कोटियों का प्रभाव देखा जा सकता है। 

क्रिया के मूल रूप को धातुको कहते हैं। धातु क्रिया का वह मूलांश है जिसमें कोई प्रत्यय नहीं लगा होता। धातु में ही प्रत्यय लगते हैं तथा क्रियारूपों की रचना होती है। हिंदी में धातु इस प्रकार दिखाई पड़ती हैं-

 जा, खा, उठ, चल, बैठ, अकड़, निकल, रो, सो आदि।

रूप संरचना की दृष्टि से देखा जाए तो हिंदी में बनने वाले क्रियाओं के रूपों की संख्या 22 से 25 तक है। किंतु यहाँ ध्यान रखने वाली बात है कि प्रत्येक क्रिया के सभी रूप निर्मित नहीं होते। किस क्रिया के कितने रूप बनेंगे, यह उस क्रिया की आर्थी प्रकृति और संबंधित कर्ता तथा कर्म की स्थिति पर निर्भर करता है। ‘+मानवकर्ता वाली क्रियाओं के सबसे अधिक रूप बनते हैं।

हिंदी में क्रियाओं की रूप-संरचना के संदर्भ में धातु का अंतिम वरुण भी महत्व रखता है।  अंतिम वर्ण के स्वरूप की दृष्टि से हिंदी  की धातुओं के दो वर्ग किए जा सकते हैं- स्वरांत और व्यंजनांत।  इन दोनों में दो प्रकार के प्रत्यय का प्रयोग देखा जाता है- स्वरांत धातुओं के साथ स्वर वाले प्रत्यय लगते हैं और व्यंजनांत मात्राओं के साथ मात्राओं वाले प्रत्यय। कुछ प्रत्यय दोनों प्रकार की क्रियाओं में समान होते हैं। 

 हिंदी क्रियाओं में प्रत्यय के योग के बाद बनने वाले उनके रूपों को उदाहरण के साथ इस प्रकार से देख सकते हैं-

क्र.सं.

प्रत्यय

उदाहरण

1

ता

आता, गिरता

2

ती

आती, गिरती

3

ते

आते, गिरते

4

ना

आना, गिरना

5

ने

आने, गिरने

6

नी

आनी, गिरनी

7

या/ ा

आया, गिरा

8

ई/ ी

आई, गिरी

9

ए/ े

आए, गिरे

10

ईं/ ीं

आईं, गिरीं

11

एँ/ ें

आएँ, गिरें

12

ओ/ ो

आओ, गिरो

13

इए/ िए

आइए, गिरिए

14

इएगा/ िएगा

आइएगा, गिरिएगा

15

ऊँ/ ूँ

आऊँ, गिरूँ

16

एगा/ ेगा

आएगा, गिरेगा

17

एगी/ ेगी

आएगी, गिरेगी

18

एँगे/ ेंगे

आएँगे, गिरेंगे

19

एँगी/ ेंगी

आएँगी, गिरेंगी

20

ओगे/ ोगे

आओगे, गिरोगे

21

ओगी/ ोगी

आओगी, गिरोगी

22

ऊँगा/ ूँगा

आऊँगा, गिरूँगा

23

ऊँगी/ ूँगी

आऊँगी, गिरूँगी

24

कर

आकर, गिरकर

 

हिंदी क्रियाओं की रूप संरचना के अंतर्गत इन सभी का वर्णन किया जाता है। यहां एक और उल्लेखनीय बात यह है कि उपर्युक्त सूची में केवल मानक प्रत्ययों को रखा गया है। इनमें से कुछ प्रत्ययों के अमानक रूप भी प्रयुक्त होते हैं, जैसे-ए/ये, ई/यी/, ऊँ/ऊं आदि) इन प्रत्ययों का प्रयोग करने पर निम्नलिखित प्रकार से अमानक रूप निर्मित होते हैं-

मानक               अमानक 

 खाए                   खाये

 खाई                   खायी

 आइए                 आइये

 उठाएंगे                उठायेंगे                आदि

 इसमें बताए गए अमानक रूप गलत नहीं है, किंतु उनकी जगह मानक का प्रयोग करना ज्यादा ठीक होता है, क्योंकि वे औपचारिक रूप से भी स्वीकृत रूप होते हैं। 

यहां एक और ध्यान रखने वाली बात है कि ऊपर टेबल में जितने प्रत्यय का उल्लेख किया गया है उन सभी प्रत्ययों को  सभी क्रियाओं के साथ जोड़कर क्रियारूप नहीं बनाए जाते। केवल मानववाची क्रियाओं के साथ ही इन सभी प्रत्ययों को जोड़ा जा सकता है। उनसे इतर क्रियाओं के कई रूप, जैसे आदेश, परामर्श, निवेदन सूचक रूप नहीं बनते हैं-

1.1 तुम दौड़ो। (आज्ञा)

1.2 *तुम दहाड़ो

2.1 आप आइए। (निवेदन)

2.2 *आप दहाड़िए

इन वाक्यों में देख सकते हैं कि दहाड़ने का आदेश या निवेदन केवल मानववाची कर्ता के साथ ही संभव है। अतः शेर कर्ता के संबंध में ये रूप नहीं बनेंगे।

अत: इसे नियम रूप में निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त कर सकते हैं-

§  जिन क्रियाओं कर्ता ‘+मानवहोते हैं, उनके तो सभी रूप बनते हैं, किंतु जिनके कर्ता ‘-मानवहोते हैं, उनके वे रूप नहीं बनते जो केवलमानवकर्ता पर ही लागू होते हैं। 

इसी प्रकार प्रथमपुरुष और मध्यमपुरुष के भविष्यकालिक रूप भी केवल मानव कर्ता वाली क्रियाओं के ही बनते हैं।

No comments:

Post a Comment