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आभ्यंतर (Aabhyantar)
SCONLI-12
विशेषांक ISSN : 2348-7771
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39. हिंदी समाचार पत्रों में शब्दों की
एकरूपता की समस्या
संदर्भ : जनसत्ता एवं दैनिक भास्कर
रश्मि रानी : पी-एच.डी. भाषाविज्ञान एवं भाषा प्रौद्योगिकी, म.गां.अं.हिं.वि. वर्धा
सारांश
जनसंचार के प्रमुख माध्यम हिंदी समाचार पत्र की पहुँच आम
लोगों तक बहुत बड़ी संख्या में है। समाचार पत्र की भाषा पर ध्यान देना इसलिए और भी
महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि इसमें छपने वाले समाचारों की भाषा लोगों की भाषा को
भी प्रभावित करती है।
कई बार एक ही शब्द के दो रूपों का
साथ-साथ प्रयोग पाठक को भ्रम में डाल देता है एवं पाठक यह सोचने पर विवश हो जाता है कि कौन-सा शब्द
उपयुक्त है एवं कौन सा अनुपयुक्त है। इस प्रकार देखा गया है कि एक ही शब्द को
लिखने के लिए दो तरीकों का प्रयोग किया जाता है अर्थात एक ही शब्द के दो रूप देखने
को मिलते हैं। समाचार पत्रों की भाषा के लेखन में दोनों का ही प्रयोग निरंतर
प्रचलन में है। जब बात मानक शब्दों के प्रयोग की आती है तो इस प्रकार की लेखन
समस्या का जन्म होता है। आज जब पूरी दुनिया में भाषाओँ के मानकीकरण का कार्य हो
रहा है तो हिंदी के मानकीकरण का प्रश्न भी हमारे सामने आ जाता है। मानकता के लिए
शब्दों के प्रयोग की एकरूपता का होना अनिवार्य है परंतु हिंदी के मानकीकरण का
कार्य अत्यंत धीमी गति से अग्रसर है। इस शोध पत्र में समाचार पत्रों को लेकर भाषा
की महत्वपूर्ण इकाई शब्द के स्तर पर हिंदी की एकरूपता की स्थिति पर प्रकाश डाला
गया है। इस शोध में समाचार पत्रों को इसलिए आधार बनाया गया है क्योंकि समाचार पत्र की भाषा आम लोगों के दैनिक जीवन
में मत्वपूर्ण असर डालते है। लोग इसमें छपे शब्दों को प्रतिदिन पढ़ते हैं एवं जैसा वे पढ़ते हैं वैसे ही प्रयोग का
प्रभाव उनके बोलचाल की भाषा एवं लेखन पर
भी दिखने लगता है।
मुख्य शब्द: एकरूपता, मानक, मानकीकरण, जनसंचार।
परिचय –प्रस्तुत शोध पत्र भाषा की महत्वपूर्ण इकाई शब्द पर आधारित है। यह पत्र शब्दों
की एकरूपता पर लिखा गया है। मानकीकरण की
प्रक्रिया में जनसंचार एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यदि सभी जनसंचार
माध्यम हिंदी के लेखन की एकरूपता को लेकर प्रतिबद्ध हो जाएं तो हिंदी लेखन को लेकर
भ्रम की स्थिति को अविलंब दूर किया जा सकेगा। इस शोध पत्र में हिंदी के दो
प्रतिष्ठित अखबारों को उदाहरण स्वरूप चुना गया है जनसत्ता एवं दैनिक भास्कर।
क्योंकि इन दोनों अखबारों का प्रकाशन कई राज्यों से होता है इसलिए शोध के लिए इन
दोनों अखबारों के दिल्ली के अंक को चुना गया है। दिल्ली अंक में क्षेत्रीय शब्दों
की समस्या के कम होने के कारण हिंदी के शब्दों का सही प्रकार से विश्लेषण किया जा सकता है। हिंदी के
मानकीकरण में शब्द रचना की विविधता किस प्रकार एक समस्या का रूप धारण करती है। इस
शोध पत्र में यह स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है. दोनों समाचार पत्रों के कुछ
अंकों का विश्लेषण कर शब्दों के विविध रूपों के प्रयोग एवं उसके नियमित प्रकाशन के
आंकड़े एकत्र कर शोध कार्य किया गया है। केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा हिंदी के
मानकीकरण को लेकर जो पैमाने बनाए गए हैं
वही मेरे शोध कार्य का मुख्य आधार है।
साहित्यिक पुनरवलोकन:
जिस दृष्टिकोण से मैंने यह शोध पत्र लिखा है उस दृष्टिकोण
से प्रस्तुत शोध विषय पर अभी तक कोई शोध कार्य या शोध पत्र नहीं लिखा गया है। समाचार पत्रों की भाषा पर कुछ कार्य हुए हैं
जिनमें मणिक मृगेश कृत समाचार पत्रों की भाषा
प्रमुख है किन्तु इस पुस्तक में भी समाचार पत्र की भाषा का अध्ययन किया गया
है. इसमें लेखक ने हिंदी समाचार पत्रों में
भाषा के स्वरुप, भाषा का बदलता रूप और समाचार पत्र द्वारा निर्मित शब्दों
की बात की है किन्तु दो अखबारों की हिंदी में शब्दों की एकरूपता का तुलनात्मक
अध्ययन नहीं किया है.प्रस्तुत शोध पत्र में हिंदी के दो प्रसिद्ध समाचार पत्रों
जनसत्ता और दैनिक भास्कर में हिंदी शब्दों की एकरूपता का तुलनात्मक अध्ययन किया
गया है। एकरूपता से यहाँ अर्थ है कि दो भिन्न रूप में लिखे जाने वाले शब्दों में
से एक ही रूप का सम्पूर्ण समाचार पत्र में प्रयोग किया जाए। मानक भाषा का संबंध
भाषा के इतिहास, प्रतिष्ठा और स्तर से है। भाषा का एक ऐसा
स्वरूप जिसे सुशिक्षित और शिष्ट लोगों के समूह द्वारा प्रयुक्त होता है। ये समूह
एक विशेष भाषा-भाषी क्षेत्र में महत्वपूर्ण
और प्रभावशाली स्थान रखता है।
मानकीकरण का परिचय:
मानकीकरण एक प्रक्रिया है जिसमें भाषा के मानक बनाने का
कार्य होता है। आजकल भाषा को मानक बनाने
हेतु प्रिंट मीडिया में समाचार पत्र एवं पत्रिकाओं की भाषाओं को विशेष महत्त्व
दिया जाता है। चूंकि तकनीकी माध्यम में ऑनलाइन लेखन प्रक्रिया भी सम्मलित है। आजकल
लेखन प्रक्रिया में भिन्न स्वरूप भी देखने को मिलते हैं। कहीं कहीं यह तकनीकी
खामियों के कारण भी दिखाई पड़ता है। इससे संबंधित जनसत्ता एवं दैनिक भास्कर समाचार
पत्रों से कुछ उदाहरण लिए गए है जो लेखन एकरूपता को मापक से भिन्न दर्शाते हैं एवं
यह प्रक्रिया सतत अग्रसर भी है।
समाचार पत्रों से कार्पस:
प्रस्तुत शोध पत्र में जनसत्ता और दैनिक भास्कर के दिल्ली
अंक के 2015 के कुछ अखबारों से ऐसे शब्दों
को एकत्र किया गया है जो अनेकरूपता लिए
हुए हैं। सर्वप्रथम जनसत्ता से एकत्र ऐसे
शब्दों पर दृष्टि डालेंगे जो दो भिन्न
प्रकार से लिखे जाते हैं-
क्र। सं.
|
जनसत्ता में प्रयुक्त शब्द रूप
|
1.
|
मुद्दा/मुद् दा
|
2.
|
अड्डे/अड्डे
|
3.
|
मद्देनज़र/मददेनज़र
|
4.
|
श्रृंखला/शृंखला
|
5.
|
नियंत्रण/नियन्त्रण
|
6.
|
उद्देश्य/उद् देश्य
|
7.
|
रद्द /रद् द
|
तालिका 1.1
उपर्युक्त शब्दों के अतिरिक्त हिंदी में अंग्रेजी शब्दों को
लिखने के लिए आगत ध्वनि ऑ के प्रयोग में भी बहुत मनमर्जी का भाव नज़र आता है। जब मन
हुआ ऑन लिख दिया और जब मन हुआ आन इसके ढेरों उदाहरण देखने को मिले जिनमें से कुछ
निम्नलिखित हैं-
क्र. सं.
|
जनसत्ता में प्रयुक्त शब्द रूप
|
1.
|
कॉलेज/कालेज
|
2.
|
डॉलर/डालर
|
3.
|
डॉक्टर/डाक्टर
|
4.
|
ऑफ/आफ,
|
5.
|
ब्लॉक/ब्लाक
|
6.
|
ऑटो/आटो,
|
7.
|
कॉलोनियों/कालोनियों
|
8.
|
हॉल/हाल
|
तालिका 1.2
इसी प्रकार दैनिक भास्कर में भी कुछ शब्द रूप मिले जो एक से
अधिक रूपों में लिखे जाते हैं जैसे-
क्र. सं.
|
दैनिक भास्कर
में प्रयुक्त शब्द रूप
|
1.
|
मुद्दे/मुद् दे
|
2.
|
खट्टर/खट् टर
|
3.
|
ऐलान/एलान
|
4.
|
हुड्डा/ हुड्डा
|
5.
|
संपत्ति/सम्पत्ति
|
तालिका 1.3
आगत ध्वनि ऑ के लिए भास्कर में भी कहीं कहीं अव्यवस्था
देखने को मिली जो निम्न हैं -
क्र. सं.
|
दैनिक भास्कर
में प्रयुक्त शब्द रूप
|
1.
|
रॉयल्टी/ रायल्टी
|
2.
|
डॉलर/डालर
|
3.
|
डॉक्टर/डाक्टर
|
4.
|
ऑफ/आफ,
|
5.
|
ब्लॉकेज/ब्लाकेज
|
तालिका 1.4
विश्लेषण एवं वर्गीकरण:
दोनों ही समाचार पत्रों से लिए गए आंकड़ों पर नज़र डालें तो
ये स्पष्ट हो जाता है कि समाचार पत्रों
में शब्द प्रयोग को लेकर एकरूपता का अभाव है। किसी में कम तो किसी में इस प्रकार की
अनेकरूपता अधिक देखने को मिलती है.जनसत्ता में एकरूपता की समस्या के साथ-साथ
अंग्रेजी शब्दों के प्रयोग के लिए आगत ध्वनि ऑ को लेकर अधिक मनमाना प्रयोग है जबकि
दैनिक भास्कर में यह समस्या जनसत्ता की अपेक्षा काफी कम है। शोध पत्र में सिर्फ 2015 के कुछ समाचार पत्रों
के कुछ पृष्ठों से यह निष्कर्ष निकाला गया है कि समाचार पत्रों में शब्द के स्तर
पर एकरूपता पूरी तरह से अभी तक नहीं आ पायी है। यदि समय सीमा बांध कर इसका अध्ययन
किया जाए तो वर्तमान स्थिति और भी स्पष्ट हो जाएगी।
निष्कर्ष:
अतः भाषा को लेकर इस प्रकार की लापरवाही का भाव समाचार
पत्रों का एक दोष कहा जा सकता है। पाठक इनमें छपे शब्दों को न सिर्फ पढ़ता है अपितु
इनसे सीखता भी है बोलने में तो नहीं किंतु
पाठक के लेखन पर इसका प्रभाव अवश्य पड़ता है। पाठक कई बार समाचार पत्रों में
छपी किसी खबर को साक्ष्य की तरह भी सुरक्षित रखते हैं इसलिए संपादकों की
ज़िम्मेदारी और भी बढ़ जाती है कि वो ख़बरों की सत्यता के साथ-साथ उसकी भाषा पर भी
ध्यान दें। मानकीकरण को मानें न मानें किंतु शब्दों में एकरूपता को आवश्यकता को
समझें। हिंदी के शब्दों को लेखन में एकरूपता प्रदान करने में और हिन्दी के मनकीकरण
की राह में समाचार पत्रों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकती है।
ग्रंथ सूची:
1. मृगेश, मणिक; समाचार पत्रों
की भाषा, वाणी
प्रकाशन, नई दिल्ली
(2006).
2. कुमार, विजय; देवनागरी लिपि
तथा हिंदी वर्तनी का मानकीकरण, केन्द्रीय हिंदी निदेशालय, नई दिल्ली (2010)
संदर्भ सूची:
1. जनसत्ता, 26 नवंबर 2015,पृष्ठ सं. 1
2. जनसत्ता, 4 जनवरी 2015,पृष्ठ सं. 1,2,3,4,11
3. जनसत्ता, 1 सितंबर 2015,पृष्ठ सं.1,2,3,4,5,10
4. जनसत्ता, 1 अप्रेल 2015,पृष्ठ
सं. 1,2,3,4
5. दैनिक भास्कर, 1 नवम्बर,2015,पृष्ठ सं.3,6
6. दैनिक भास्कर, 2 नवम्बर,2015,पृष्ठ सं.3,4
7. दैनिक भास्कर, 1दिसंबर,2015, पृष्ठ सं.2.
8. दैनिक भास्कर, 17 दिसंबर,2015, पृष्ठ सं.3
9. दैनिक भास्कर, 11अक्टूबर 2015, पृष्ठ सं1,3.
10. दैनिक भास्कर, 1 दिसंबर,2015, पृष्ठ सं. 2,8.
11. दैनिक भास्कर, 2अक्टूबर,2015,पृष्ठ सं.1.
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