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आभ्यंतर (Aabhyantar)
SCONLI-12
विशेषांक ISSN : 2348-7771
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6. हिंदी विशेषण-संज्ञा समूहक (Hindi Adjective-Noun
Grouper)
आलोक कुमार मिश्र : पी-एच.डी. भाषाविज्ञान एवं भाषा प्रौद्योगिकी, म.गां.अं.हिं.वि.
वर्धा
1. परिचय
भाषा संप्रेषण का एक माध्यम है और हर भाषा की अपनी एक व्यवस्था होती है तथा
उसके कुछ नियम होते हैं और ये नियम भाषा के सभी स्तरों (ध्वनि, रूप, पदबंध, वाक्य)
आदि पर कार्य करते हैं। प्रत्येक भाषा की अपनी अलग-अलग संरचना होती है,तथा उसमें प्रयोग होने वाले
शब्दों के अपने भेद एवं प्रकार्य होते हैं। इन शब्द भेदों में ‘संज्ञा, सर्वनाम,
विशेषण, क्रिया, क्रियाविशेषण’ आदि की बात की जाती है। प्रत्येक शब्द भेदों में
आपसी संबंध होते हैं और इन संबंधों के पीछे कोई न कोई नियम कार्य करता है, जैसे –
‘अच्छा लड़का’ होगा लेकिन ‘अच्छा लड़की’ नहीं हो सकता, क्योंकि लिंग के आधार पर ही
अधिकतर विशेषण प्रयोग में आते हैं। इसके पीछे लिंग आधारित शब्दरूप नियम कार्य कर
रहा है।भाषा के इसी प्रतीक भिन्नता के कारण एक भाषा दूसरी भाषा से भिन्न होती है; और उसके अपने स्वतंत्र
व्याकरणिक नियम होते हैं, जिसको भाषाई संरचना कहते हैं। यही आंतरिक व्यवस्था
उस भाषा का व्याकरण कहलाता है ।
2. विशेषण : स्वरूप
जिस विकारी शब्द से संज्ञा की व्याप्ति होती है, उसे विशेषण कहते हैं, जैसे- बड़ा, काला, दयालु, भारी, एक, दो, सब ।विशेषण के द्वारा जिस
संज्ञा की व्याप्ति मर्यादित होती है, उसे विशेष्य कहते हैं, जैसे – ‘काला घोड़ा’ वाक्यांश में ‘घोड़ा’ संज्ञा ‘काला’ विशेष्य है। ‘बड़ा घर’ में ‘घर’ विशेष्य है।
गुरु, कामताप्रसाद विशेषण के संबंध में कहते हैं
कि विशेषण संज्ञा की व्याप्ति मर्यादित करता है- इस उक्ति का अर्थ यह है कि विशेषण
रहित संज्ञा से जीतनी वस्तुओं का बोध होता है, उनकी संख्या विशेषण के योग से
कम हो जाती हैं । ‘घोड़ा’ शब्द से जीतने प्राणियों का
बोध होता है, उतने प्राणियों का बोध ‘काला घोड़ा’ शब्द से नहीं होता । ‘घोड़ा’ शब्द जितना व्यापक है उतना ‘कालाघोड़ा’ शब्द व्यापक नहीं है । ‘घोड़ा’ शब्द की व्याप्ति (विस्तार) ‘काला है और ‘काला’ शब्द से मर्यादित (संकुचित) होती है, अर्थात ‘घोड़ा’ शब्द अधिक प्राणियों का बोधक
है और ‘काला घोड़ा’ उससे कम प्राणियों का बोधक है।
गुरु, कामताप्रसाद का तर्क है कि ‘सर्वनाम' के समान विशेषण भी एक प्रकार
की संज्ञा ही है;
क्योंकि विशेषण भी वस्तु का अप्रत्यक्ष नाम है; पर इनको अलग शब्द-भेद मानने का
कारण यह भी है कि इसका उपयोग संज्ञा के बिना नहीं हो सकता और इससे संज्ञा का केवल
धर्म सूचित होता है,‘काला’ कहने से घोड़ा, कपड़ा, दाग, आदि किसी भी वस्तु के धर्म की
भावना मन में उत्पन्न हो सकती है; परंतु उस धर्म का नाम काला नहीं है;‘कालापन’ है।
विशेषण संबंधी एक महत्वपूर्ण बात गुरुकामताप्रसाद ने कही है कि ‘विशेषण को विकारी शब्दों के
अंतर्गत रखा गया है जबकि सभी विशेषण विकारी नहीं होते हैं, परंतु विशेषण का प्रयोग
संज्ञाओं के समान होने पर इनमें रूपांतर होता है । इसीलिए विशेषण को ‘विकारी शब्द’ कहना उचित है इसके अलावा
विशेष्य के अनुसार भी विशेषण में रूपांतर होता है, जैसे – काली लड़की, काला लड़का इत्यादि ।
3. संज्ञा : स्वरूप
“ संज्ञा
उस विकारी शब्द को कहते हैं, जिससे किसी विशेष वस्तु, भाव और जीव के नाम का बोध होता
है उसे संज्ञा कहते हैं।” यहाँ ‘वस्तु’ शब्द का प्रयोग व्यापक अर्थ में हुआ है, जो केवल वाणी और पदार्थ का वाचक
नहीं, वरन उनके धर्मों का भी सूचक है।
साधारण अर्थ में ‘वस्तु’ का प्रयोग इस अर्थ में नहीं
होता। अतः वस्तु के अंतर्गत वाणी, पदार्थ और धर्म आते हैं।इन्हीं के आधार पर संज्ञा के
भेद किए गए है।
संज्ञा के अंतर्गत वह शब्द आता है जो किसी भी व्यक्ति, स्थान या वस्तु के रूप में वाक्य में प्रयोग किया जाता है , सभी शब्द संज्ञा के वर्गिकरण के
अंदर आता है। संस्कृत में अंत्य ध्वनि की दृष्टि से संज्ञाएँ दो प्रकार की हैं : स्वरांत, जैसे – बालक, विश्वपा (आकारांत) कवि, सुखी (इकारांत) और व्यंजनांत, जैसे – जगत, वीरुध, आदि। हिंदी संज्ञाओं के विषय
में निम्नांकित बातें ध्यान देने की हैं- हिंदी में स्वरांत और व्यंजनांत दोनों
प्रकार की संज्ञाएँ हैं, जैसे – घोड़ा, कवि, साथी, अथवा आम, रोग, ईख इत्यादि।हिंदी भाषा :
भोलानाथ तिवारी (पृ.सं 138)
उदाहरण
-
राम, टेबल, कुर्सी, दिल्ली, पटना, वाराणसी
राम, टेबल, कुर्सी, दिल्ली, पटना, वाराणसी
4. समूहक
समूहक का अर्थ है झुंड या समूह, यहाँ पर समूहक का संबंध संज्ञा और विशेषणों के समूह
से है जिसके अंतर्गत यह देखा जाएगा कि वह कौन-कौन से विशेषण हैं जो सभी संज्ञाओं
के साथ प्रयुक्त होते हैं। तथा वह कौन सी संज्ञा है जो कुछ सीमित विशेषणों के साथ
ही प्रयुक्त होंगे । यही हिंदी विशेषण-संज्ञा समूहक के अंतर्गत देखा जाएगा।
किसी भाषा की रचना को ध्यानपूर्वक देखने से जान पड़ता
है कि उसमें जीतने शब्दों का उपयोग होता है, वे सभी बहुधा भिन्न-भिन्न
प्रकार के विचार प्रकट करते हैं और अपने उपयोग के अनुसार कोई कम कोई अधिक आवश्यक
होते हैं। भाषा में यह भी देखा जाता है कि कई शब्द दूसरे शब्दों से बनते हैं, और उनमें एक नया अर्थ पाया
जाता है। जिस शास्त्र में शब्दों के शुद्ध रूप और प्रयोग के नियमों का निरूपण होता
है उसे व्याकरण कहते हैं।
किसी संज्ञा के साथ विशेषण के जुड़ने के लिए ‘अर्थ’ बहुत महत्वपूर्ण है। संज्ञा
और विशेषण के कुछ आर्थी लक्षण होते हैं, जो दोनों के एक साथ प्रयुक्त होने या न
होने को निर्धारित करते हैं,जैसे - +मानव/-मानव/+सजीव/-निर्जीव कई ऐसे ‘+मानव’
लक्षण वाले विशेषण हैं, जो ‘-मानव’ वाली संज्ञाओं के साथ नहीं आते,जैसे – ‘गोरा
आदमी’ सही है, किंतु ‘गोरा कपड़ा’ या गोरा घर’ नहीं हो सकता। इसके अलावा ‘ताजा दूध’‘जवान लड़का’‘तेज चाकू
होगा, लेकिन ‘ताजा पलंग’‘जवान कुर्सी’‘तेज चौकी’ नहीं होगा । जैसे-
अंकुरित
|
स्थितिबोधक
|
-मानव, -अमूर्त
|
रेशमी
|
सौंदर्यबोधक
|
-मानव, -अमूर्त
|
लचीला
|
गुणबोधक
|
-मानव, -अमूर्त
|
+मानव वाली संज्ञाओं के साथ -मानव वाले विशेषण का प्रयोग नहीं कर सकते क्योंकि
यह तर्कसंगत नहीं है। इसका अर्थ संज्ञा के प्रकार, लिंग, वचन और स्थिति के अनुरूप विशेषण के होने से है जैसे - +मानव, संज्ञा और -मानव, विशेषण के आर्थी संबंध को
दिखाते हुए कुछ उदाहरण दिए जा रहे हैं । जैसे -
बुढ़ापा
|
भाववाचक संज्ञा
|
+मानव, -अमूर्त
|
सुंदर
|
जातिवाचक संज्ञा
|
+मानव, -अमूर्त
|
जवानी
|
भाववाचक संज्ञा
|
+मानव, -अमूर्त
|
अंकुरित बीज,
अंकुरित अनाज और अंकुरित पौधा तो तर्क सम्मत है, परंतु
अंकुरित बुढ़ापा, अंकुरित सुंदर नहीं हो सकता । क्योंकि +मानव/-मानव/+सजीव/-निर्जीव/+मूर्त/-मूर्त/+अमूर्त/-अमूर्त
कई ऐसे ‘+/-मानव’ लक्षण वाले विशेषण हैं, जो ‘-/+मानव’ वाली संज्ञाओं के साथ नहीं
आते,जैसे - रेशमी बाल, रेशमी कपड़ा तो होगा परंतु रेशमी जवानी, रेशमी बुढ़ापा, रेशमी सुंदर नहीं हो सकता । क्योंकि यहाँ पर हिंदी
व्याकरण के अनुसार लिंग आधारित नियम कार्य कर रहा है जो कि परंपरागत हिंदी व्याकरण
के अनुसार मान्य और तर्कसम्मत है ।
5. निष्कर्ष
सभी विशेषण सभी संज्ञाओं के साथ प्रयुक्त नहीं होते ।शब्द भेदों में आपसी संबंध होते
हैं और इन संबंधों के पीछे कोई न कोई नियम कार्य करता है । चाहे वह लिंग आधारित नियम हों अथवा वचन, पुरूष
या अन्य नियम हों । जिनके कारण सभी विशेषण सभी संज्ञाओं के साथ प्रयुक्त नहीं हो
सकते ।
6. संदर्भ-ग्रंथ
सूची
·
गुरु, कामताप्रसाद. (1920). हिंदी व्याकरण. वाराणसी :
नागरी प्रचारिणी सभा.
·
प्रसाद, धनजी. (2012). सी.शार्प प्रोग्रामिंग एवं
हिंदी के भाषिक टूल्स. नई दिल्ली : प्रकाशन संस्थान
·
बाहरी, हरदेव. (2011). व्यावहारिक हिंदी व्याकरण तथा
रचना. नई दिल्ली : लोक भारती प्रकाशन
·
सिंह, सुरजभान. (2002). हिंदी का
वाक्यात्मक व्याकरण.नई दिल्ली : साहित्य सहकार प्रकाशन
·
Agnihotri, Ramakant
(2006), Hindi an Essential Grammar, Rutledge Publication, New Delhi.
·
Bullion, Pierrette at
el. (1999), The Description of Adjectives for Natural Language Processing:
Theoretical and Applied Perspective, New Mexico State University Computing
Research Laboratory Las Cruces, USA.
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