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Tuesday, January 1, 2019

भोजपुरी में विशेषण पदबंध की आर्थी संरचना


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आभ्यंतर (Aabhyantar)      SCONLI-12  विशेषांक         ISSN : 2348-7771

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36. भोजपुरी में विशेषण पदबंध की आर्थी संरचना
धनन्जय सिंह1, अभिजीत प्रसाद2, जयप्रकाश गुप्ता3
 पी-एच.डी. भाषाविज्ञान एवं भाषा प्रौद्योगिकी, म.गां.अं.हिं.वि. वर्धा
  
शोध-सारांश
प्रत्येक भाषा की अपनी एक व्यवस्था होती है। यह व्यवस्था भाषा के प्रत्येक स्तर (स्वन, स्वनिम, रूप, वाक्य और अर्थ) पर देखने को मिलती है। भाषा की इकाइयाँ प्रत्येक स्तर पर एक दूसरे से जुड़ी रहती हैं; जैसे- प्रोक्ति-वाक्य-उपवाक्य-पदबंध-शब्द/पद-रूप/रूपिम-स्वन/स्वनिम स्वतंत्र होते हुए भी एक दूसरे से परस्पर जुड़ी हुई हैं। इसमें वाक्य संप्रेषण की दृष्टि से भाषा की लघुतम इकाई है जबकि व्याकरणिक संरचना की दृष्टि से भाषा की सबसे बड़ी इकाई है। पदबंध वाक्य से छोटी एवं शब्द से बड़ी इकाई है। जिसमें पद एवं पदों का विस्तार होता है; उदाहरण के लिए- लइका, सुघर लइका, बहुत सुघर लइका, ये एक पदबंध हैं। पदबंध भाषा में कही गई बात को और अधिक सूक्ष्मता में कहने के लिए प्रयोग किया जाता है। पदबंधों की एक संरचना होती है तथा इनका प्रयोग हिंदी, अंग्रेजी, मराठी आदि भाषाओं में मिलता है। उसी प्रकार भोजपुरी में भी प्रयोग होता है। पदबंध निर्माण प्रक्रिया में घटकों का परस्पर संबंध, उनकी आर्थी संरचना व विश्लेषण करना एक अध्ययन का विषय बन जाता है।
            भोजपुरी विशेषण पदबंधों में विशेषण के प्रयोग की स्थिति (+) मानव और (-) मानव के आधार पर आर्थी संरचना का विश्लेषण किया जा सकता है; उदाहरण के लिए- 1.केतना नीमन लइका ह·2.केतना नीमन फल ह·। इनमें नीमन विशेषण का प्रयोग लइका’ (+) मानव और फल’ (-) मानव के साथ किया जा सकता है। लेकिन कुछ ऐसे भी उदाहरण देखने को मिलते हैं जो अर्थ की दृष्टि से सही नहीं है लेकिन वाक्य में देखने को मिलते हैं; जैसे- केतना नीमन पेड़ ह·* इस तरह के वाक्य का प्रयोग भाषा की दृष्टि से अस्वभाविक या त्रुटिपूर्ण रूप होता है।
इस प्रकार इसमें यह देखने का प्रयास किया गया है किन-किन विशेषणों का प्रयोग (+) मानव के साथ होगा तो किन विशेषणों का प्रयोग (-) मानव के साथ। इस तरह प्रस्तुत शोध-पत्र में भोजपुरी में विशेषण पदबंधों के आर्थी संरचना के बारे में चर्चा की गई है।
1. प्रस्तावना-
            भोजपुरी हिंदी भाषा की एक बोली है। भारत में यह सबसे अधिक उत्तर-प्रदेश व बिहार के विशाल क्षेत्रों में बोली जाती है लेकिन इसके अलावा अन्य कई प्रदेशों में भी भोजपुरी बोली का प्रयोग मिलता है। इसका विस्तार उत्तर प्रदेश, बिहार से अन्य प्रदेशों में जाने वाले लोगों से है। भोजपुरी भाषाई परिवार के स्तर पर एक आर्य भाषा है और यह मुख्य रूप से पश्चिमी बिहार और पूर्वी उत्तर-प्रदेश में बोली जाती है तथा इसके साथ-साथ उत्तरी झारखंड के क्षेत्र में भी बोली जाती है। भोजपुरी भाषा अपनी शब्दावली के लिए मुख्य रूप से संस्कृत और हिंदी भाषा पर निर्भर है और इसके साथ-साथ यह उर्दू भाषा के कुछ शब्दों को भी ग्रहण किया है। इस भाषा को बोलने वाले लोगों का विस्तार विश्व के सभी महाद्वीपों पर हैं। इसका एक मुख्य कारण यह है कि ब्रिटिश शासन के दौरान उत्तर भारत से अंग्रेजों द्वारा ले जाए गए मजदूर हैं जिनके वंशज अब जहाँ उनके पूर्वज गए थे वहीं बस गए हैं। इनमें सूरिनाम, गुयाना, त्रिनिदाद, टोबैगो और फिजी आदि देश प्रमुख हैं। बिहारी बोलियों का भाषावैज्ञानिक अध्ययन सर्वप्रथम बीम्स ने प्रारंभ किया था। इन्होंने भोजपुरी के संबंध में सर्वप्रथम एक निबंध नोट्स ऑन दि भोजपुरी डायलेक्ट ऑफ हिंदी स्पोकेन इन वेस्टर्न बिहार[1] नामक शीर्षक पर लिखा था जो रायल एशियाटिक सोसाइटी, लंदन की पत्रिका में सन् 1868 में प्रकाशित हुआ। भोजपुरी के संबंध में सर्वप्रथम अध्ययन होने के कारण इस निबंध का अपना एक ऐतिहासिक महत्व भी है। इन्होंने चंपारण और पूर्वी गोरखपुर की भोजपुरी को विशुद्धतम भोजपुरी का नमूना माना है।
            भोजपुरी हिंदी भाषा के बहुत अधिक समीप है जिसके कारण इनके बीच अनेक समानताएँ देखी जा सकती हैं। जैसे- संरचना के स्तर में इनके बीच बहुत साम्य है। हिंदी की भाषा संरचना में जिस तरह कर्ता, क्रिया कर्म आदि प्रयोग रहता है उसी प्रकार भोजपुरी में इनका प्रयोग मिलता है। इसके साथ ही जिस प्रकार पदबंधों का निर्माण किया जाता है उसी प्रकार इसमें भी इनकी संरचना होती है अर्थात हिंदी की संरचना के अनुरूप भोजपुरी की संरचनाको समझा जा सकता है, इसलिए आगे पदबंध तथा विशेषण पदबंध के बारे में संक्षेप में चर्चा प्रस्तुत की गई है।
2. पदबंध एवं पदबंध के प्रकार
            पद वाक्य से अलग रहने पर 'शब्द' और वाक्य में प्रयुक्त हो जाने पर शब्द 'पद' कहलाते हैं। दूसरे शब्दों में- शब्द विभक्तिरहित और पद विभक्तिसहित होते हैं। पदबंध जब दो या अधिक (शब्द) पद नियत क्रम और निश्चित अर्थ में किसी पद का कार्य करते हैं तो उन्हें पदबंध कहते हैं। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि कई पदों के योग से बने वाक्यांशो को, जो एक ही पद का काम करता है, 'पदबंध' कहलाता है। पदबंध के प्रकारों को अलग-अलग आधारों पर विभाजित किया गया है। इनमें पदबंध के प्रकार के मुख्य तीन आधार निम्न हैं-
            Ø संरचना के आधार पर                     Ø प्रकार्य के आधार पर                Ø शब्द-वर्ग के आधार पर
3. विशेषण और विशेषण पदबंध का स्वरूप
            जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताते हैं, विशेषण हैं। विशेषण शब्द के आठ भेदों में से एक है। व्याकरण में विशेषण विकारी और अविकारी शब्द है जो संज्ञा या सर्वनाम की विशेषताएँ बताता है। विशेषण-रहित संज्ञा से जितनी वस्तुओं का बोध होता है, विशेषण लगने पर उसका अर्थ सीमित हो जाता है। पिल्ला शब्द से जितने प्राणियों का बोध होता है, उतने प्राणियों का बोध करिया पिल्ला शब्द से नहीं होता है। पिल्ला कहने से सभी पिल्ला जाति के प्राणियों का बोध है लेकिन करिया पिल्ला कहने पर केवल काले पिल्ले का ही बोध होता है सभी प्रकार के पिल्लों का नहीं। अर्थात विशेषण शब्द से संज्ञा की व्याप्ति सीमित होता है। विशेषण की परिभाषा अनेक विद्वानों द्वारा अलग-अलग प्रकार से दी गई है। कामताप्रसाद गुरु, “जिस विकारी शब्द से संज्ञा की व्याप्ति मर्यादित होती है, उसे विशेषण कहते हैं। विशेषण के द्वारा जिस संज्ञा की व्याप्ति मर्यादित होती है, उसे विशेष्य कहते हैं।वासुदेवनन्दन प्रसाद के अनुसार- “जो संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताए, उसे विशेषण कहते हैं। जिसकी विशेषता बताई जाए, वह विशेष्य कहलाता है।तथा जाल्मन दीमशित्स ने परिभाषा दी है कि विशेषण ऐसा शब्द-भेद है, जो वस्तु के लक्षण को, उसकी विशेषता को नामोदिष्ट करता है तथा विशेषक के नाते संज्ञा के साथ प्रयुक्त होता है।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि जिस शब्द से किसी भी संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता प्रकट हो, उसे विशेषण कहते हैं; जैसे- करिया, लाल, हरिअर इत्यादि। विशेषण रूप-रचना के दृष्टि से- विकारी और अविकारी तथा अर्थ के दृष्टि से इसके चार प्रकार हैं- 1. सार्वनामिक 2. गुणवाचक 3. संख्यावाचक 4. परिमाणवाचक।
विशेषण पदबंध-
            जब किसी वाक्य में पदबंध किसी संज्ञा की विशेषता नियत क्रम और निश्चित अर्थ में बतायें तब वे विशेषण-पदबंध कहलाते हैं। दूसरे शब्दों में पदबंध का शीर्ष अथवा अंतिम शब्द यदि विशेषण हो और अन्य सभी पद उसी पर आश्रित हों तो वह 'विशेषण पदबंध' कहलाता है। उदाहरण के लिए- 1. तेज चले वाली रेलगाड़ी प्रायः जल्दी पहुँचेले। 2.बहुत करिया लइका ह।
उपर्युक्त वाक्यों में रेखांकित सभी शब्द 'विशेषण पदबंध' है। इनका प्रयोग मुख्य रूप से संज्ञा शब्दों के साथ किया जाता है। आगे विशेषण पदबंध के आर्थी संरचना के बारे चर्चा की गई है।
4. विशेषण पदबंधों का आर्थी विश्लेषण
विशेषण शब्दों का प्रयोग संज्ञा, सर्वनाम एवं क्रिया के साथ जोड़कर प्रयुक्त किया जाता है इनमें सबसे ज्यादा संज्ञा शब्दों के साथ इनका प्रयोग मिलता है। जिस प्रकार हिंदी में विशेषण शब्दों का प्रयोग संज्ञा के साथ संबंध स्थापित करने के लिए किया जाता है उसी प्रकार भोजपुरी में विशेषण शब्दों का प्रयोग मिलता है। इसमें संज्ञा के साथ लिंग, वचन आदि को अन्विति (agreement) के आधार पर संबंध रहता है। जैसे- राम एक अच्छा लड़का है, सीता एक अच्छी लड़की है इसमें वचन के आधार पर अच्छा और अच्छी विशेषण शब्द का प्रयोग किया गया है। इसके अतिरिक्त वाक्य में प्रयुक्त होने वाले विशेषण शब्दों को अर्थ के आधार पर भी विश्लेषण किया जा सकता है। इसमें यह देखा जा सकता है किस विशेषण शब्द का प्रयोग मानव के साथ उसकी विशेषता बताने में प्रयोग हो रहा और किन विशेषण शब्दों का प्रयोग मानव से अलावा अन्य इकाई या वस्तु के साथ प्रयुक्त किया जाता है। इसी तरह भोजपुरी विशेषण शब्दों के प्रयोग का आर्थी संरचना का वर्णन नीचे तालिका में उदाहरण सहित किया गया है-
क्र.
विशेषण शब्द
उदाहरण
1.        
गोर1
उनकर लइकवा गोर बा।
2.        
चलाँक1
उ बहुते चलाँक ह।
3.        
ढीठ1
उ सबकरा से ढीठ लइका ह।
4.        
दूबर1
उनकर पतोहिया बहुते दूबर बिया।
5.        
धनिक1
रामराज मोहन से धनिक हउवन।
6.        
लंगड़1
लंगड़ लइका तेज ना दौड़ सकेलन।
7.        
   होनहार1
उनकर लइकिया बहुते होनहार हिय।
8.        
   ओद2
राम क कपड़ा ओद बा।
9.        
   काँच2
आमवा काँच बा।
10.    
  पघिलल2
बरफवा पघिलत बा।
11.    
  खट2
इमली खट होला।
12.    
  धीकल2
परेसवा बहुते धीकल बा।
13.    
  नरम2
तू नरमे रोटी बनईह।
14.    
  गरम2
ई सब गरम खून वाला क्रांतिकारी रहले। 
15.    
  नीक3
भोजपुरी के किताबन के बिखरल देख तनिको नीक ना लागल।
16.    
  नीमन3
कुछ लोग त एहिजा आपन नीमन व्यवसाय बनवले बा।
17.    
  अगिला3
उ अगिला लइकवा के भेजिह त।
18.    
  अबर3
अबर अदमी के सब सतावेला।
19.    
  उज्जर3
बच के रह न त तोहार उज्जर कपड़ा में दाग लग जाई।
20.    
  छोट3
कवनो काम छोट ना होला।
(तालिका सं 1)
उपरोक्त सारणी में विशेषण शब्दों को तीन वर्ग में रखा गया है। जिसमें प्रथम वर्ग में आने वाले विशेषण शब्दों का प्रयोग (+) मानव, दूसरे वर्ग में आने वाले विशेषण शब्दों का प्रयोग (-) मानव तथा तीसरे वर्ग में आने वाले विशेषण शब्दों का प्रयोग (+,-) मानव के साथ जुड़कर प्रयोग होने के आधार पर वर्गीकृत किया गया है।
इस तालिका में विशेषण शब्दों के अंत में 1,2 और 3 लिखा गया है; इसमें जिन विशेषण शब्दों के बाद 1 लिखा गया है वे (+मानव) के साथ प्रयोग होने वाले विशेषण शब्द हैं। जैसे- उदा. संख्या 3. उ सबकरा से ढीठ लइका ह। या 6. लंगड़ लइका तेज ना दौड़ सकेलन आदि इन वाक्यों को देंखे तो इनमें प्रयुक्त विशेषण शब्द केवल मानव के साथ जुड़कर प्रयुक्त होने की क्षमता रखते हैं। उपरोक्त तालिका में 1 से 7 साथ तक के वाक्यों में प्रयुक्त सभी ऐसे विशेषण शब्द हैं जिनका प्रयोग (+) मानव के साथ ही होता है। कुछ ऐसे भी विशेषण शब्द है जिनका प्रयोग (-) मानव के साथ प्रयोग होता है। जैसे- 7. तू नरमे रोटी बनईह। 8. ई सब गरम खून वाला क्रांतिकारी रहले। इस तरह जिनके साथ 2 लिखा गया है वे सभी (‌-मानव) के साथ प्रयुक्त होने वाले विशेषण शब्द हैं। इसके अतिरिक्त जिनके साथ 3 लिखा गया वे सभी (+- मानव) अर्थात दोनों के साथ प्रयुक्त होने की क्षमता रखने वाले विशेषण शब्द हैं। जैसे- 3. उ बढ़िया अदमी ह।, 4. उ केतना बढ़िया पेड़ बा। कभी-कभी एक ही विशेषण शब्द का प्रयोग दोनों के साथ प्रयुक्त कर दिया जाता है जिनका प्रयोग वाक्य में अस्वाभाविक होता है। जैसे- 1. उ केतना नीमन लइका ह।, 2. उ केतना नीमन पेड़ ह।* इन दोनों वाक्यों में नीमनविशेषण शब्द का प्रयोग किया गया है। प्रथम वाक्य अर्थ की दृष्टि से सही है लेकिन दूसरा वाक्य अस्वाभाविक है। ऐसे बहुत से वाक्य देखने को मिलते हैं जो बोलचाल की भाषा में प्रयोग होता है लेकिन भाषाविज्ञान की दृष्टि से सही नहीं है। इसे भाषाविज्ञान की दृष्टि से अस्वाभाविक वाक्य कहते हैं। 
इस प्रकार हम देख सकते हैं कि भोजपुरी विशेषण पदों के प्रयोग होने की मुख्य तीन स्थितियाँ हो सकती है- 1. (+मानव) 2. (-मानव) 3. ‌(+‌-मानव)। इसके आधार पर वे विशेषण शब्द जो मानव के साथ प्रयुक्त होते हैं वे +मानववाची विशेषण शब्द होंगे तथा इसके विपरीत मानव को छोड़कर अन्य किसी इकाई के साथ प्रयुक्त होने पर इसे मानववाची की कोटि में रखा गया है। इन दोंनो के अतिरिक्त कुछ ऐसे भी विशेषण शब्द हैं जो दोंनो के साथ प्रयुक्त जोने की क्षमता रखते हैं। प्रस्तुत शोध-पत्र में (80) विशेषण शब्दों के आधार पर विशेषण पदबंध का आर्थी संरचना का विश्लेषण किया गया है। भोजपुरी विशेषण शब्दों के आर्थी विश्लेषण के आधार पर प्राप्त कुछ विशेषण शब्दों के वर्गीकरण को निम्न तालिका द्वारा संक्षेप में समझा जा सकता है-

विशेषण शब्द की सूची
क्रम.
+ मानववाची विशेषण 1
- मानववाची विशेषण 2
+- मानववाची विशेषण 3
1.        
गोर1
पिघलल2
अगिला3
2.        
चलाँक1
ओद2
अब्बर3
3.        
ढीठ1
कत्थी2
उज्जर3
4.        
दूबर1
काँच2
कड़ेर3
5.        
धनिक1
खट2
करिया3
6.        
फरहर1
खटतुरूस2
खनहन3
7.        
बुधिमान1
धावर2
घटिहा3
8.        
बेमरिहा1
धीकल2
चिम्मर3
9.        
लंगड़1
नया2
छोट3
10.    
होनहार1
नरम2
नीक3
11.    
अपाहिज1
नुनगर2
नीमन3
12.    

पाकल2
पछिला3
13.    

गरम2
पातर3
14.    

गरदाखोर2
पुरान3
15.    

गाढ़2
बड़3
16.    

गील2
बढ़िया3
17.    

गुमसाइन2
बदसूरत3
18.    

चकोर2
मोट3
19.    

चाकर2
लमहर3
20.    

चोख2
सुघर3
21.    

पीअर2
हलुक3
22.    

बदबूदार2

23.    

बासी2

24.    

भींजल2

25.    

टटका2

(तालिका सं2)
इस प्रकार उपरोक्त तालिका द्वारा भोजपुरी विशेषण शब्दों के आर्थी संरचना को सरलता से समझा जा सकता है। इसमें (+मानव) के साथ प्रयुक्त होने वाले विशेषण शब्दों की संख्या कम है तथा (+- मानव) दोनों के साथ प्रयुक्त होने वाले विशेषण शब्दों की संख्या इसकी अपेक्षा अधिक है। इनमें सबसे अधिक (-मानव) के साथ प्रयुक्त होने वाले विशेषण शब्दों की संख्या प्राप्त हुई है। 
भोजपुरी पदबंध संरचना-
            अन्य भाषाओं की तरह भोजपुरी में भी पदबंध संरचना से वाक्य का निर्माण होता है। वाक्य में पदबंध, पद से बड़ी तथा उपवाक्य से छोटी इकाई है। पदबंध, पद एवं पदों का विस्तार होता है, जो वाक्य में प्रकार्यात्मक इकाई होती है। भोजपुरी वाक्य में पदबंध की संरचना कर्ता, कर्म और क्रिया के रूप में होता है तथा यह हर स्तरों पर पाया जाता है। लेकिन सामान्यतः कर्ता और क्रिया का विस्तार पदबंध के रूप में होता है। इन शब्दों की अवधारणा इस प्रकार है-
कर्ता- कर्ता, किसी कार्य को करने वाले को कहते हैं। वाक्य में संज्ञा एवं सर्वनाम दोनों का प्रयोग कर्ता के रूप में होता है; जैसे- (संज्ञा) राम खाना खात बा। (सर्वनाम) उ खाना खात बा।
कर्म- कर्ता के द्वारा किए जाने वाले कार्य को कर्म कहते हैं। वाक्य में कर्ता के संबंध में प्रश्न पूछने पर जिस वस्तु का बोध हो, वह कर्म होता है; जैसे- श्याम कल दिल्ली जात बा। - दिल्ली (कर्म)
क्रिया- जिससे किसी कार्य का होने का बोध हो, उसे क्रिया कहते हैं; जैसे- उ खाना खात बा। - खात बा (क्रिया)
निष्कर्ष
            इस प्रकार हम देख सकते हैं कि जिस प्रकार हिंदी में विशेषण पदबंधों का प्रयोग किया जाता है उसी प्रकार भोजपुरी में भी विशेषण पदबंध का प्रयोग मिलता है। इनमें लिंग, वचन के आधार पर विशेषण का संज्ञा या अन्य इकाई के साथ अन्विति रहती है। यहाँ भोजपुरी विशेषण शब्दों के विशेषण पदबध में आर्थी संरचना को प्रस्तुत किया गया है जिसमें यह देखने का प्रयास किया गया है कि विशेषण शब्दों के संज्ञा के साथ प्रयोग की स्थिति क्या है। विश्लेषण के आधार विशेषण शब्दों को तीन वर्गों में वर्गीकृत किया गया तथा आर्थी विशेषता के आधार इनके प्रयोग होने की क्षमता को +मानव, -मानव तथा +-मानव रखा गया है। इसमें यह पाया गया कि ऐसे विशेषण शब्द हैं जो केवल मानव के साथ ही प्रयुक्त हो सकते हैं तो इसके विपरीप अनेक ऐसे विशेषण शब्द है जो केवल वस्तु (-मानव) के साथ ही प्रयुक्त होने की क्षमता रखते हैं। इसके अलावा ऐसे भी विशेषण शब्द हैं जो दोनों (+-मानव) के साथ आने की योग्यता रखते हैं। इस तरह भोजपुरी में प्रयुक्त होने वाले कुछ विशेष विशेषण शब्दों का चयन करके उनका आर्थी संरचना को प्रस्तुत किया गया है।

संदर्भ सूची
Ø सिंह, शुकदेव. (009). भोजपुरी और हिंदी. वाराणसी: विश्वविद्यालय प्रकाशन.
Ø सिंह, जयकांत. (013). मानक भोजपुरी भाषा, व्याकरण आ रचना. मुजफ्फरपुर (बिहार): राजर्षि प्रकाशन.
Ø ओझा, त्रिभुवन. (1987). प्रमुख बिहारी बोलियों का तुलनात्मक अध्ययन. वाराणसी: विश्वविद्यालय प्रकाशन.
Ø त्रिपाठी, आचार्य रामदेव. (1987). भोजपुरी व्याकरण. पटना: भोजपुरी अकादमी प्रकाशन.
Ø कुमार, अरविंद. (2009). भोजपुरी-हिंदी- इंग्लिश लोक शब्दकोश. आगरा: केंद्रीय हिंदी संस्थान.
Ø गुरु, कामता प्रसाद. (2012). हिंदी व्याकरण. नई दिल्ली: प्रकाशन संस्थान.
Ø जैन, प्रदीप कुमार. (1996). मानक हिंदी व्याकरण. नई दिल्ली: तुषार पब्लिकेशन्स.
Ø तिवारी, शकुंतला. (2009). भोजपुरी की रूपग्रामिक संरचना. कानपुर: विकास संस्थान.
Ø तिवारी, उदयनारायण. (2011). भोजपुरी भाषा और साहित्य. पटना: राष्ट्रभाषा परिषद्.
Ø त्रिपाठी, रामदेव. (1987). भोजपुरी व्याकरण. कानपुर: विकास संस्थान.
Ø दुबे, अजीत. (2014). तलाश भोजपुरी भाषायी अस्मिता की. नई दिल्ली: इंडिका इंफोमीडिया
Ø  पाण्डेय, अनिल कुमार. (2010). हिंदी संरचना के विविध पक्ष. दरियागंज नई दिल्ली: प्रकाशन संस्थान.
Ø  वाजपेयी, किशोरीदास. (1950). हिंदी शब्दानुशासन. वाराणसी: नागरीप्रचारिणी सभा.

वेबसाइटें



[1] रायल एशियाटिक सोसाइटी, लंदन की पत्रिका भाग 3, पृ. सं. 483-508

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