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आभ्यंतर (Aabhyantar)
SCONLI-12
विशेषांक ISSN : 2348-7771
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7. विलुप्तप्राय
भाषा निहाली पर बहुभाषिकता का प्रभाव
Anamika gupta: पी-एच.डी. भाषाविज्ञान एवं भाषा प्रौद्योगिकी, म.गां.अं.हिं.वि.
वर्धा
सारांश
प्रस्तुत शोध-पत्र निहाली भाषी समाज में बहुभाषिकता की
स्थिति को स्पष्ट करने एवं निहाली पर इसके प्रभाव को बताने से संबंधित है। इस शोध
पत्र द्वारा विलुप्त प्राय भाषा निहाली को संरक्षित करने का एक छोटा सा प्रयास
किया गया है। जब भिन्न भाषा-भाषियों में संपर्क होता है तथा वे एक स्थान पर रहने
लगते हैं तो द्वि-भाषी/बहुभाषी समाज का निर्माण होता है। समाज में कई ऐसी
परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं जिसमें विभिन्न भाषा-भाषायी समूहों (अल्पसंख्यक
समूह अथवा प्रवासी समूह) को अपनी-अपनी भाषा छोड़ने के लिए सामाजिक तौर पर बाध्य होना
पड़ता है। इस कारणवश संबंधित भाषा के विलुप्त होने की संभावनाएँ पैदा होती हैं। यही
स्थिति आज निहाली की है। इस शोध के द्वारा निहाली भाषा भाषियों के मध्य उत्पन्न
बहुभाषिकता की स्थिति और उसके प्रभाव को जानने की कोशिश की गयी है ताकि इस विलुप्त
प्राय भाषा को संरक्षित किया जा सके।
युनेस्को (UNESCO) द्वारा प्रकाशित “एटलस ऑफ
द वर्ल्ड्स लेंग्वेज़ेज इन डेंजर” (Atlas of the world’s languages Endanger) (Christopher Moseley) के अनुसार 6000 से अधिक
भाषाएँ विलोपन के कगार पर हैं। इनमें से भारत में विलोपन की ओर अग्रसर भाषाओं की
संख्या 196 बताई गई हैं। ये 196 भाषाएँ पूर्वोत्तर भारत, हिमालय के पर्वतीय
क्षेत्रों, झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़/मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक
के विभिन्न क्षेत्रों में बोली जाती हैं। युनेस्को ने 2003 में प्रकाशित ‘लेंग्वेज़ वाइटैलिटी एंड इनडेंजरमेंट
(Language Vitality and
Endangerment)शीर्षक दस्तावेज़ में भाषायी विलोपन के संदर्भ में उनकी
स्थिति के निम्नलिखित स्तरों का निर्धारण किया गया है :
(1)
सुरक्षित (safe) स्तर (5)
(2)
स्थिर, किंतु जोखिम-पूर्ण (stable
yet threatened) स्तर (5-)
(3)
असुरक्षित (vulnerable) स्तर (4)
(4)
निश्चित रूप से खतरे में (definitely
endangered) स्तर (3-)
(5)
गंभीर रूप से खतरे में (severely
endangered) स्तर (2)
(6)
नाजुक तौर पर खतरे में (critically
endangered) स्तर (1)
(7)
विलुप्त (extinct) स्तर (0)
युनेस्को द्वारा जारी की गई सूची में भारत की 196 विलुप्तप्राय
भाषाएँ स्तर (4) से स्तर (1) की श्रेणी में आती हैं और कई बोलियाँ/भाषाएँ स्तर
(5-) के अंतर्गत भी आती हैं, जो युनेस्को की सूची में शामिल ही नहीं हैं।
निहाली भाषा भी विलुप्तप्राय भाषाओं में एक है। निहाली
युनेस्को द्वारा जारी सूची के स्तर (5-) में आती है। निहाली जलगाँव-जमोद तहसील के, बुलढाना जिला, महाराष्ट्र, भारत (अक्षांश : 20,5402, देशांतर 76,0913) में 2000 वक्ताओं द्वारा
बोली जाने वाली संकटापन्न भाषा है (www.ethnologue.com/language/nll) । इसके चरों-ओर एक बहुत
बड़े भू-भाग में निमाड़ी, हिंदी, गुजराती और मराठी भाषाएँ
बोली जाती हैं जिनका निहाली पर सीधा प्रभाव पड़ रहा है और निहाली भाषियों के मध्य
बहुभाषिकता की स्थिति बढ़ती जा रही है। इस प्रकार कोड मिश्रण एवं कोड परिवर्तन की
प्रक्रिया भी धीरे-धीरे निहाली भाषियों के मध्य बढ़ रही है। कोड मिश्रण एवं कोड
परिवर्तन भी भाषा विलोपन का एक चरण है। निहाली भाषी हिंदी, मराठी, निमाड़ी, कोरकू भाषाएँ बोलते हैं।
निहाली भाषियों की बहुभाषिकता के कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं –
|
हिंदी
|
Gloss
|
निहाली
|
कोरकू/IPA
|
मराठी/IPA
|
1.
|
नहाने के लिए
|
To Bathe
|
Angluj-be
|
Angluj-be
|
आंघोळ
|
2.
|
घास
|
Grass
|
Bo:y
|
Bo:y
|
गवत
|
3.
|
इमली
|
Tamarind
|
Cicia
|
Cicia
|
चिंच
|
4.
|
मृग, हिरन
|
Deer
|
Ghotari,Ghota:ri
|
Ghotari,Ghota:ri
|
हरीण
|
5.
|
मोर
|
Peacock
(male)
|
Jhallya
|
Jhallya
|
मोर
|
6.
|
दुल्हन
|
Bride
|
Newri
|
Newri
|
नवरी
|
प्रस्तावित शोध-पत्र के अंतर्गत निहाली भाषा की बहुभाषिकता
का अध्ययन एवं विश्लेषण किया जाएगा कि इसमें किस-किस प्रकार की बहुभाषिकता हो रही
है और यह बहुभाषिकता किन परिस्थितियों में उत्पन्न हो रही है। साथ ही साथ निहाली
में हो रहे कुछ कोड-मिश्रण एवं कोड-परिवर्तन की परिस्थितियों का भी विश्लेषण किया
जाएगा जिसका भाषा विलोपन से गहरा संबंध है।
शोध-प्रविधि– प्राथमिक आँकड़ों के लिए
क्षेत्र-कार्य और द्वितीयक आँकड़ों के लिए उपलब्ध साहित्य का सहारा लिया गया है।
मुख्य शब्द : विलुप्तप्राय भाषा, बहुभाषिकता, कोड-मिश्रण, कोड-परिवर्तन।
1.
प्रस्तावना
भाषाएँ मनुष्य के विविध आयामों में से एक हैं। भाषाएँ केवल
भावनाएँ व्यक्त करने का साधन नहीं होती बल्किसाक्षरता, शिक्षा-ग्रहण,
सामाजिक
एकत्रीकरण,
राष्ट्रीय
एवं सांस्कृतिक विशिष्टता आदि सभी भाषा के द्वारा संचारित होते हैं। 2010 में आई
यूनेस्को की ‘इंटरेक्टिव एटलस’
की
रिपोर्ट बताती है कि अपनी भाषाओं को भूलने में भारत अव्वल नंबर पर है। भारत में
सर्वाधिक 196 भाषाओं पर लुप्त होने का खतरा है। दूसरे नंबर पर अमेरिका (192
भाषाएँ) और तीसरे नंबर पर इंडोनेशिया (147 भाषाएँ) है। दुनिया की कुल 6000 भाषाओं
में से 2500 पर आज विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। 199 भाषा या बोलियाँ ऐसी
हैं जिन्हें अब महज 10-20 और 178 को 10 से 50 लोग ही बोलते समझते हैं।[1] अर्थात
इनके साथ ही ये भाषाएँ खत्म हो जाएंगी क्योंकि उन्हें शिक्षा,
सरकार, संचार माध्यम आदि द्वारा
उपयोग में नहीं लाया जा रहा है। उचित बढ़ावे
के अभाव में उनका दायरा सीमित हो जाता है और धीरे-धीरे घटता जाता है।
प्रत्येक
विलुप्त होती भाषा के साथ हम सांस्कृतिक विरासत को भी खोते जाएंगे। किसी भाषा के
लुप्त होने से केवल उसका स्वरूप या साहित्य ही नहीं खत्म होता बल्कि शताब्दियों से
संचित मानवीय अनुभव भी खत्म हो जाते हैं।भाषा का विलुप्त होना मनुष्य जाति के लिए
सबसे बड़ी विडंबना है। भाषा का मरना दुनिया की विविधता पर भी चोट है। यह हमारे
एकरंगी विश्व की ओर जाते कदम का सूचक है। ज्यादातर भाषाएँ धीरे-धीरे मरती हैं।
उनका दम किसी दूसरी वर्चस्वशाली भाषा के हाथों घुटता है। यदि एक भाषा मर जाती है
तो उसके साथ मर जाता है सोचने का एक अद्भुत तरीका।
2.
निहाली भाषा का परिचय
निहाली भाषा, जिसे नहाली के रूप में भी जाना जाता है। साथ ही, स्थानीय निवासियों के
अनुसार निहाली भाषा को काल्टोमांडी के नाम से भी जाना जाता है। निहाली भाषा भी
विलुप्तप्राय भाषाओं में एक है।
Ethnologue(www.ethnologue.com/language/nll)
के
अनुसार –
निहाली
जलगाँव –
जामोद
तहसील के,
बुलढाना
जिला,
महाराष्ट्र,
भारत
(अक्षांश : 20,5402,
देशांतर
76,0913) में बोली जानेवाली
संकटापन्न भाषा है। इसके चारों-ओर एक बहुत बड़े भू-भाग में निमाड़ी,
हिंदी,
गुजराती
और मराठी भाषा बोली जाती है। महाराष्ट्र के अलावा निहाली भाषा पश्चिम-मध्य भारत के
मध्य प्रदेश के कुछ छोटे भागों में भी बोली जाने वाली एक भाषा है। हालाँकि वर्तमान
में जो निहाली भाषी मध्यप्रदेश में रह रहे हैं वे निमारी भाषा बोलते हैं जो कि
इंडो-आर्यन भाषा परिवार से संबंध रखतेहैं।[2] निहाली भाषा एक भाषा वियोजक है। भाषा वियोजक (language
isolate) ऐसी
प्राकृतिक भाषा है जिसका किसी भी अन्य भाषा से कोई जातीय संबंध नहीं होता है यानि
जो अपने भाषा परिवार में बिलकुल अकेली हो और जिसका किसी भी अन्य भाषा के साथ कोई
सांझी पूर्वज भाषा न हो। सामान्य शब्दों में कहा जाए तो जो विश्व की किसी भी अन्य
भाषा से कोई ज्ञात जातीय संबंध नहीं रखती और अपने भाषा-परिवार की एकमात्र ज्ञात
भाषा है।भारत में इसके अलावा केवल जम्मू और कश्मीर की बुरुशस्की भाषा ही दूसरी
ज्ञात भाषा वियोजक है।[3] निहाली
समुदाय की संख्या लगभग 5000 है लेकिन सन 1991 की जनगणना में इनमें से केवल 2000 ही
इस भाषा को बोलने वाले गिने गए थे।[4]
निहाली समुदाय
ऐतिहासिक रूप से कोरकू समुदाय से संबंधित रहा है और उन्हीं के गाँवों में बसता है।
इस कारण से निहाली बोलने वाले बहुत से लोग कोरकू भाषा में भी द्विभाषीय होते हैं।
साथ ही निहाली बोलनेवाले मराठी और हिंदी भी बोलते हैं। निहाली बोली में बहुत से
शब्द आसापास की भाषाओं से लिए गए हैं और साधारण बोलचाल में लगभग 60-70% शब्द कोरकू
के होते हैं। भाषावैज्ञानिकों के अनुसार मूल निहाली शब्दावली के केवल 25% शब्द ही
आज प्रयोग में हैं।[5]
ज्ञात जानकारी
के अनुसार वर्तमान में एक भी ऐसा वयस्क निहाली नहीं है जो सिर्फ और सिर्फ निहाली
बोलता हो यानि एकभाषी (Monolingual) हो।[6] महाराष्ट्र राज्य के बुलडाना
जिले के जिन गाँवों में निहाली भाषा बोली जाती है, वे हैं – जामोद (Jamod), सोनबर्डी (Sonbardi), कुवरदेव (Kuvardev), चलथना (Chalthana), अंबावारा (Ambawara), वसाली (Wasali) और सिकारी (Cicari)।[7]
3.
निहाली समाज पर बहुभाषिकता का प्रभाव
वर्तमान
आधुनिक समाज यह मानता है कि एकभाषी होना अर्थात एक ‘कोड’ का प्रयोग करना
अधिक उपयुक्त है, क्योंकि बहुभाषिक व्यक्ति या समाज का विकास
सही ढंग से नहीं हो पाता। (सिंह, दिलीप: 2008) के अनुसार,‘फिशमैन जैसे ठोस समाज भाषा वैज्ञानिक ने यह कहा है कि एकभाषी समाज या
राष्ट्र आर्थिक दृष्टि से अधिक विकसित, शिक्षा की दृष्टि से
अधिक उन्नत, राजनीति की दृष्टि से अधिक आधुनिक और चिंतन की
दृष्टि से अधिक प्रौढ़ होते हैं।’[8]
किसी
भाषा समाज में समरूपता तथा एक भाषा की स्थिति की संकल्पना एक आदर्श कल्पना मात्र
है। आज का भाषा समाज बहुभाषी समाज में तबदील हो रहा है और यह भाषा, बोली, कोड, शैली आदि कई स्तरों पर दिखाई देती है। सैद्धांतिक तौर पर देखें तो
बहुभाषिकता से अभिप्राय दो या दो से अधिक भाषाओं का विकल्प के साथ प्रयोग करने की
क्षमता है। बहुभाषिकता भाषा संरचना, मानव-मस्तिष्क, परिवेश और सामाजिक-राजनीतिक कारणों के साथ-साथ आधुनिक भूमंडलीकृत बाजार
की मांग है। (तिवारी, भोलानाथ: 2009) के अनुसार, किसी भाषा समाज में बहुभाषिकता को ‘भाषाई पिछड़ेपन’ का प्रतीक माना जाता है (जैसे, अमेरिका में
अप्रवासी की द्विभाषिकता) तो इसके विपरीत कुछ समाजों में द्विभाषिकता को शिक्षा
तथा प्रबुद्धता का प्रतीक माना जाता है (जैसे भारत में मातृभाषा के साथ-साथ
अंग्रेजी की द्विभाषिकता)।’[9]
ऐसी
स्थिति में इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि जब एक भाषा किसी दूसरे
वर्चस्वशाली (सत्ता-संबद्ध) भाषा के संपर्क में आती है तो धीरे-धीरे उस भाषा का
अस्तित्व खतरे में आने लगता है। गौरतलब है कि एक तरफ जहाँ निहाली भाषा को
विलुप्तप्राय भाषा की श्रेणी में रखा गया है वहीं बहुभाषी (निहाली के साथ-साथ
कोरकू, मराठी और
हिंदी) होने के बावजूद आश्चर्यजनक रूप से निहाली भाषी समाज में निहाली बोलने वालों
की संख्या में इजाफा हुआ है।
डॉ. भोलानाथ तिवारी[10] के अनुसार, किसी भाषा-समाज में द्विभाषिकता या
बहुभाषिकता को क्या सामाजिक स्थान प्राप्त है, वह निम्नलिखित
अभिलक्षणात्मक तत्त्वों पर निर्भर है –
(i) ± सत्ता – क्या दोनों में से किसी भाषा को शासकीय या
सामाजिक शक्ति प्राप्त है?
(ii) ± समरूपता – द्विभाषी या
बहुभाषी समाज में सामाजिक तथा सांस्कृतिक समरूपता कहाँ तक है?
(iii) ± प्रतिष्ठा – क्या दोनों
में से कोई एक भाषा विशेष प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता है?
(iv) ± सौहार्द्र – दोनों
भाषाओं से संबद्ध वर्गों में परस्पर राजनीतिक तथा सामाजिक सौहार्द्र है या विरोध
है?
(v) ± शुद्धतावादी – दोनों
भाषाओं में भाषागत परिवर्तनों और दूसरी भाषाओं के तत्त्वों को ग्रहण करने के प्रति
कितनी सहनशीलता है।
किसी भी भाषा
समुदाय में बहुभाषिकता के मुख्यतया तीन प्रकार मिलते हैं –
(i) व्यक्तिपरक – अपनी
मातृभाषा के अलावा अन्य देशी या विदेशी भाषा को निजी ज्ञान के लिए सीखना।
(ii) समाजपरक – इससे अभिप्राय
पूरे समाज में प्रयुक्त होनेवाली दो या दो से अधिक भाषाओं से है।
(iii) राष्ट्रपरक – राष्ट्रीय
स्तर पर दो या दो से अधिक भाषाओं का प्रयोग।
निहाली समाज
द्वारा कोरकू, मराठी या हिंदी भाषा को
अपने दैनिक जीवन में प्रयोग करने के पीछे का सबसे बड़ा कारण भौगोलिक स्तर पर
एक-दूसरे से सटा होना है। निहालियों के आस-पास के क्षेत्रों में मराठी, कोरकू और हिंदी
बोलनेवालों की बहुलता है। ऐसे में अपने रोज़मर्रा के कामों के लिए उन्हें इन भाषाओं
को सीखना पड़ता है। गौरतलब है कि वे इन भाषाओं के व्याकरणिक या सैद्धांतिक पक्ष से
अनभिज्ञ होते हैं, वे सिर्फ इन भाषाओं को या तो बोलते हैं या कोड मिश्रण की
सहायता से इनके शब्दों को अपनी भाषाओं शामिल करते हुए काम चलाते हैं। ऐसी स्थिति
में एक समय ऐसा भी आता है जब कोई भी भाषा-समाज शिक्षित होने, विकसित होने, बाजार के अनुरूप खुद को
ढालने या सामाजिक-सांस्कृतिक तथा आर्थिक रूप से मजबूत होने की प्रक्रिया में अपनी
भाषा को काम-काज में नहीं लाते हैं। ऐसा होने पर वह भाषा विलुप्तप्राय होने के
कगार पर आ पहुँचती है और उसे खतरे की श्रेणी में गिना जाने लगता है। उपरोक्त तथ्य
के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बहुभाषिकता की जरूरत वैश्वीकरण या भूमंडलीकृत
बाजार है। भाषा के विलोपन में वैश्वीकरण की भूमिका को स्पष्ट तौर पर समझाने के लिए
ऐसी स्थिति में प्रभा खेतान कहती हैं कि,‘इस ज्वार में सभी नावें
उपर उठीं मगर इनमें से कुछ नावों में सुराख था जिसके कारण वे डूब गईं। कुछ छोटी
नावें लहरों के बहाव में उलट गईं और कुछ नावें जो सतह पर तैरती हुई नजर आती हैं
उनमें कितने आदमी बचे और कितने मरे इसका हिसाब मालूम करना मुश्किल है क्योंकि
आर्थिक दुनिया में आज अस्पष्टता और जोखिम का बोलबाला है।’[11]
4.
कोड मिश्रण और कोड परिवर्तन
कोड मिश्रण से आशय उस स्थिति से है जब जरूरत के अनुसार एक
भाषा के वाक्यों में दूसरी भाषा के भाषायी तत्त्वों – उपवाक्यों, शब्दों, रूपों या ध्वनियों – को
समाहित कर लिया जाता है। यह उस स्थिति में भी होता है जब कोई भाषा समाज अपने
शब्द-संग्रह की मदद से कोई बात सटीक तौर पर नहीं कह पाता है और दूसरे भाषा समाज के
शब्दों का सहारा लेता है।
भारतीय परिप्रेक्ष्य में यदि बात की जाए तो सभी भाषाओं या
बोलियों में कोड मिश्रण का उदाहरण मिलता है। यह कोड मिश्रण कभी तो भौगोलिक कारणों
से होता है तो कभी राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक कारणों से। सीधे शब्दों में
कहा जाए तो भौगोलिक कारणों के अलावा कोड मिश्रण के लिए भूमंडलीकृत बाजार एक प्रमुख
कारक है। प्रभुत्वशाली भाषाओं का प्रभाव सभी क्षेत्रीय भाषाओं या बोलियों पर देखा
जा सकता है। जैसे भोजपुरी, अवधी, मगही, मैथिली आदि पर हिंदी का प्रभाव।
इस बात को मानने से कोई गुरेज नहीं कि वर्तमान
प्रौद्योगिकीय समय में हिंदी राष्ट्रीय स्तर की भाषा होने के साथ-साथ बाजार की भाषा
भी बन चुकी है, शायद यही वजह है कि सभी
क्षेत्रीय भाषाओं या बोलियों पर हिंदी का प्रभाव या हिंदी के कोड मिश्रण को देखा
जा सकता है। विकास के क्रम में साथ-साथ चलने को तैयार भारत का कोई भी भाषा समाज
हिंदी को नजरअंदाज नहीं कर सकता। ठीक उसी प्रकार राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय स्तर पर
हिंदी भाषी समाज भी अंग्रेजी को नजरअंदाज नहीं कर सकता।
उपरोक्त स्थिति से निहाली भाषी समाज भी अछूता नहीं रहा है।
एक सीमित क्षेत्र में बोली जानेवाली निहाली भाषा जहाँ एक तरफ भौगोलिक कारणों से
कोरकू या मराठी से प्रभावित रहा है वहीं दूसरी तरफ बाजार की मांग के अनुरूप हिंदी
से भी प्रभावित रहा है। निहाली भाषी समाज इन भाषाओं – कोरकू, मराठी और हिंदी – के
प्रभाव में आकार बहुभाषिक हो रहा है तथा निहाली भाषा में इन भाषाओं के कोड मिश्रण
को देखा जा सकता है। निहाली भाषा पर बहुभाषिकता का इतना असर है कि उनके अधिकांश
शब्द कोरकू से लिए गए हैं। साथ ही, निहाली भाषा में मराठी और हिंदी का कोड मिश्रण भी
बखूबी देखा जा सकता है।
निहाली भाषा में कोरकू, मराठी और हिंदी के कोड
मिश्रण को निम्नलिखित उदाहरण से समझा जा सकता है।
क्षेत्र कार्य के दौरान यह स्पष्ट रूप से पाया गया कि एक
निहाली भाषी निहाली के अलावा हिंदी, मराठी और कोरकू भी बड़ी कुशलता से बोलता है। यह
स्थिति बहुभाषिकता के साथ-साथ कोड मिश्रण को भी दर्शाता है।
उदाहरण 1 –
निहाली - जो चल्ली
IPA - ʤ o:ʧ ə l l i:
बहुभाषिकता
GLOSS - I GO
मराठी - मी चल्लो
कोरकू - हिन चलके
उदाहरण 2 –
निहाली - जो तेखा
IPA - ʤ o:t ᴂ:kʰ a: बहुभाषिकता
GLOSS - I
EAT
मराठी - मी जेवतो
कोरकू - हिन
जुजाम्बा
उदाहरण 3 –
निहाली - गोरे इम्बा
IPA - ɡ
o: ɾ ᴂ:I m b a: बहुभाषिकता एवं कोड मिश्रण
GLOSS - FAIR FATHER
मराठी - गोरे
बाबा
उदाहरण 4 -
निहाली - जो स्कूल
का चल्ली
IPA - ʤ o: s k u: lk a:ʧ ə l l i:
GLOSS - I SCHOOLGO बहुभाषिकता एवं कोड मिश्रण
मराठी - मी
शालेन जातो
कोरकू - हिन स्कूलेन
चलते
उदाहरण 5 –
निहाली - ते घरत
आहे
IPA - t ᴂ:ɡʱ ə ɾ ə ta: h ᴂ: बहुभाषिकता एवं कोड मिश्रण
GLOSS - HE
HOUSE IS
मराठी - ते
घरत आहे
हिंदी - गाय
दूध देती है
निहाली - गाय
दूध देई
IPA - ɡ
a: jd u: dʱd
ᴂ:
i: बहुभाषिकता एवं कोड मिश्रण
GLOSS -COW MILKGIVE
मराठी - गाय
दूध देते
उदाहरण 7 –
निहाली - जो खेत
कमाएका
IPA - ʤ o:kʰ ᴂ: tk ə m a: e: ka:
GLOSS -I FARM
DO बहुभाषिकता
एवं कोड मिश्रण
मराठी - मी
शेती करतो
कोरकू - हिन खेती
कमाएबा
हिंदी - सरकार
ने गरीबों को पैसा दिया था
निहाली - सरकारने
गरीबाना पैसा दिला होता
बहुभाषिकता
IPA - s ə ɾ k a: ɾ n ᴂ: ɡ ə ɾ i: b a: n a: p ᴂ: s a: d i: l a:
h o: t a:
GLOSS -GOVERNMENT POOR MONEY GIVE एवं कोड मिश्रण
मराठी- सरकारने गरीबाना पैसा दिला होता
उदाहरण 9 –
निहाली - एंगजे जोमु
संतोष
IPA - e: n ɡ ə ʤ ᴂ:ʤ o: m u:s ə n t o: ʃ
GLOSS–MYNAMESANTOSH बहुभाषिकता एवं कोड मिश्रण
मराठी - माझा
नाव संतोष आहे
कोरकू - निया जोमु
संतोष
हिंदी - बड़ी
किताब
निहाली - मोठ
पुस्तक
IPA - m
o: ʈʰp u: s t ə k बहुभाषिकता एवं कोड मिश्रण
GLOSS -BIG
BOOK
मराठी - मोठ
पुस्तक
5.
उपसंहार
उपरोक्त अध्ययन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि भारत का
प्रत्येक प्रांत बहुभाषिक है। मसलन, हिंदी भी अपने आप में बहुभाषिक है क्योंकि इसके पास
स्थानीय बोली या भाषा, क्षेत्रीय बोली या
भाषा, हिंदी की क्षेत्रीय शैली, बोलचाल की हिंदी तथा
परिष्कृत हिंदी का कोड होता है। साथ ही उर्दू और अंग्रेजी का और इनसे मिश्रित
हिंदुस्तानी का।
निहाली भी इस
से अछूता नहीं है। भिन्न-भिन्न भाषा परिवार अपने पूरे अस्तित्व के साथ मौजूद होने
के बावजूद अपने पड़ोसी भाषा परिवार को कुछ हद तक या बहुत हद तक अपने में समाहित किए
हुए है, अर्थात शब्दों, वाक्यों, उपवाक्यों, रूपों या ध्वनियों को
अपनाए हुए है तथा बहुभाषिक हो चुका है या बहुभाषिक होने के क्रम में है। गौरतलब है
कि भारत में बहुभाषिकता का स्तर समाजपरक है न कि व्यक्तिपरक।
बहुभाषिकता से संबंधित
चिंतकों ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर हमें राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संबंध
स्थापित करना है, दूसरे समाज के व्यक्तियों से विचार-विमर्श करना है या
सामाजिक-सांस्कृतिक तथा राजनीतिक-आर्थिक धरातल पर अंतरराष्ट्रीय मानव की संकल्पना
को साकार करना है तो यह आवश्यक होगा कि हम अपनी निजी भाषाई व्यवस्था के दायरे से
बाहर निकलें।
तमाम बहस-मुबाहिसों
के बीच इस बात को मानने से इनकार नहीं किया जा सकता है कि विकसित समाज की होड़ और
भूमंडलीकृत बाजार की मांग के आधार पर बहुभाषिक होना एकभाषी होने से कहीं बेहतर है।
बावजूद इसके, इस बात को भी नजरअंदाज
नहीं किया जा सकता है कि बहुभाषिकता की प्रक्रिया में वर्चस्वशाली भाषाओं ने कई
क्षेत्रीय भाषाओ या बोलियों को या तो विलुप्त कर दिया है या लगभग विलुप्ति के कगार
पर पहुँचा दिया है। बहुभाषिकता की इस होड़ ने निहाली भाषा को भी विलुप्तप्राय
भाषाओं की श्रेणी में ला खड़ा किया है।
6.
संदर्भ सूची
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और हिंदी-2. नई दिल्ली: राजकमल प्रकाशन.
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http://feelingscripts.blogspot.in/2015/04/blog-post.html
22.
http://cja.org/where-we-work/el-salvador/
[1]Retrieved December 20, 2017,from
https://satyagrah.scroll.in/article/102886/india-is-the-fastest-in-the-world-when-it-comes-to-losing-languages
[2]Nagaraja, K.S. (2014). The Nihali Language.
Manasagangotri, Mysore-570 006, India: Central Institute of Indian Languages.
ISBN 978-81-7343-144-9. Pp-iii.
[5]Franciscus
Bernardus Jacobus Kuiper, "Nahali: a comparative study", Part 25,
Issue 5 of Mededeelingen der Koninklijke Nederlandsche Akademie van
Wetenschappen, Afd. Letterkunde, N.V. Noord-Hollandsche Uitg. Mij., 1962
[6]Nagaraja, K.S. (2014). The Nihali Language.
Manasagangotri, Mysore-570 006, India: Central Institute of Indian Languages.
ISBN 978-81-7343-144-9. Pp-1.
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