.........................................................................................................................
आभ्यंतर (Aabhyantar)
SCONLI-12
विशेषांक ISSN : 2348-7771
.........................................................................................................................
32. भोजपुरी मे सहायक क्रिया का रूपवैज्ञानिक अध्ययन (काल, पक्ष, वृत्ति
के विशेष संदर्भ में)
अरुण
कुमार पाण्डेय1,
उपेन्द्र कुमार2, इन्द्र कुमार पाण्डेय3, सुरेंद्र कुमार4
पी-एच.डी.
भाषाविज्ञान एवं भाषा प्रौद्योगिकी, म.गां.अं.हिं.वि.
वर्धा
शोध-सारांश
भाषाविज्ञान जगत एवं ज्ञान के अन्य
क्षेत्रों के मूल में देखा जाए तो कहीं न कहीं भाषा का अपना एक अलग प्रभाव रहा है।
दुनिया की सभी भाषाओं का अध्ययन अपने आप में उपयोगी माना जा सकता है। यदि हम हिंदी
भाषा की बात करें तो भारोपीय भाषा परिवार में संस्कृत भाषा के बाद हिंदी भाषा को
एक वैज्ञानिक भाषा के रूप में देखा जाता है। हिंदी भाषा की संरचना की बात की जाए
तो यह भाषा अन्य भाषाओं से भिन्न दिखेगी,
क्योंकि भाषा
के बारे में भाषावैज्ञानिकों द्वारा यह परिभाषित किया गया है कि ‘हर भाषा की अपनी एक अलग संरचना होती है,
जिसके अपने
नियम होते हैं।’ इन भाषाओं की संरचना और नियमों का
अध्ययन भाषाविज्ञान के अंतर्गत किया जाता है।
वैसे रूप,
तत्व और व्याकरणिक गठन की दृष्टि से हिंदी और भोजपुरी में
सबसे प्रमुख अंतर कर्मणि-प्रयोग और कर्तरि-प्रयोग को लेकर है। हिंदी कर्मणि-प्रयोग प्रधान भाषा है, जबकि भोजपुरी कर्तरि-प्रधान भाषा। अर्थात हिंदी भाषा में क्रिया का रूप कर्म के अनुसार बदलता है।
अतः कर्मणि प्रयोग प्रधान भाषा है और भोजपुरी भाषा में क्रिया कर्ता के अनुसार
बदलता है अतः यह कर्तरि प्रधान भाषा है। उदाहरण-
हिंदी – कर्मणि प्रयोग
मैंने लड़का देखा।
मैंने लड़की देखी।
भोजपुरी – कर्तरि प्रयोग
हम लइका देखलीं।
हम लइकी देखलीं।
प्रस्तुत शोध-पत्र में व्याकरणिक कोटियाँ को केंद्र में रखकर भोजपुरी सहायक क्रिया का
रुपवैज्ञानिक अध्ययन किया गया है। व्याकरणिक कोटियाँ के अंतर्गत लिंग, वचन,
पुरुष, काल, पक्ष,
वृत्ति तथा वाच्य शामिल हैं जिनमें से इस शोध पत्र में काल, पक्ष और वृत्ति का विश्लेषण किया गया है।
Keywords – कर्मणि-प्रयोग,
कर्तरि-प्रयोग, भाषा संरचना,
क्रिया पदबंध, सहायक क्रिया, काल,
पक्ष, वृत्ति।
भूमिका : संप्रेषण की दृष्टि से वाक्य भाषा की सबसे छोटी इकाई है। वाक्य निर्माण में ‘शब्द’
और ‘शब्द-
संबंध’ की मुख्य भूमिका रहती
है। जब किसी शब्द के साथ कोई संबंध-तत्व जुड़ता है तो वह
शब्द, शब्द न रहकर ‘पद’ बन जाता है और पदों के सह-संबंध से वाक्य का
निर्माण होता है।
किसी भी भाषा के शब्दों को व्याकरणिक विवेचन में विभिन्न
शब्दभेदों में वर्गीकृत किया जाता है। भोजपुरी का उद्गम ‘मागधी’
अपभ्रंश से हुआ है किंतु इस पर अर्धमागधी से निकली हुई अवधी
का पर्याप्त प्रभाव पड़ता है। इसके व्याकरणिक नियम और
शब्दकोश हिंदी से अधिकांश मिलते-जुलते हैं। पदों और पदबंधों के निर्माण में परसर्गों की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका है, जो वाक्य को सार्थक बनाने में अपना योगदान करते हैं।
भोजपुरी वाक्यों में परसर्गों की जितनी महत्वपूर्ण भूमिका है उनके प्रयोगों
में उतनी विविधताएँ भी हैं। परसर्गों के द्वारा कारक संबंधों को व्यक्त किया जाता
है। साथ ही इनकी एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि किसी एक परसर्ग द्वारा एक से अधिक
अर्थ की अभिव्यक्तियों को व्यक्त करने में किया जाता है; जैसे-
पहसुल से तरकारी काटू। साधन के रूप में-
(करण का अर्थ) तो समयसूचक के
साथ- ऊ कहिए से नइखन आवsत। (समय बोध)
है। इसके अलावा एक ही अभिव्यक्ति को एक से अधिक परसर्ग की
सहायता से व्यक्त कर सकते हैं। इसी प्रकार अन्य सभी मूल परसर्गों का भी विविध
प्रकार से प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त यदि देखा
जाए तो आज के आधुनिक युग में मानव अपने व्यावहारिक कार्यों के साथ-साथ भाषा संबंधी कार्यों को भी कंप्यूटर के माध्यम से कराने के लिए लगातार
प्रयास में लगा है। यदि भोजपुरी से संबंधित कोई भाषिक टूल बनाएं जाएँ जिसमें एक
भाषिक टूल या बहुभाषिक टूल्स बनाए जाएँ तो इस क्षेत्र में भाषा से जुड़ी प्रत्येक
व्यवस्था एवं इकाई को स्पष्ट और तार्किक रूप में विवेचन करना आवश्यक हो जाता है।
प्रस्तुत शोध-पत्र में व्याकरणिक कोटियाँ को केंद्र में रखकर भोजपुरी सहायक क्रिया का
रुपवैज्ञानिक अध्ययन किया गया है। व्याकरणिक कोटियाँ के अंतर्गत लिंग, वचन,
पुरुष, काल, पक्ष,
वृत्ति तथा वाच्य शामिल हैं जिनमें से इस शोध पत्र में काल, पक्ष और वृत्ति का विश्लेषण किया गया है।
भोजपुरी क्रिया रूप -
वाक्य में कर्ता एवं क्रिया दो प्रमुख घटक होते हैं जिसमें वाक्य के उद्देश्य
भाग का प्रमुख तत्व (घटक)
‘कर्ता’ होता है और विधेय का
प्रमुख तत्व (घटक)
‘क्रिया’ होती है। क्रिया पद के
दो मुख्य घटक होते हैं, मुख्य क्रिया और सहायक क्रिया। क्रिया पदबंध बाह्यकेंद्रिक पदबंध संरचना है।
अतः इसके सभी घटक अनिवार्य होते हैं। जिसे इस आरेख के माध्यम से समझ सकते हैं-
मुख्य
क्रिया सहायक क्रिया
(कोशीय अर्थ देता है) (व्याकरणिक
अर्थ देता है)
मुख्य क्रिया- क्रिया पदबंध का वह अंश जो कोशीय अर्थ वहन करता है, मुख्य क्रिया कहलाता है। जैसे- चल, पढ़, जा आदि। इसके अंतर्गत सरल क्रिया, मिश्र क्रिया, यौगिक क्रिया एवं संयुक्त क्रिया आतीं हैं।
मुख्य क्रिया के निम्नलिखित भेद हैं –
क. सरल धातु-
जिसमें धातु के सकर्मक अकर्मक तथा प्रेरणार्थक रूप शामिल
हैं; जैसे-
कट, काट, कटवा आदि।
ख. मिश्र क्रिया-
जो संज्ञा या विशेषण में ‘कर’,
‘हो’ आदि के योग से बनती है; जैसे- इंतजार करना, सिद्ध होना आदि।
ग. यौगिक क्रिया- दो धातुओं से मिलकर बनती हैं लेकिन इनके बीच ‘कर’ की सत्ता निहित होती है; जैसे-
ले जा (लेकर जा) आदि।
घ. संयुक्त क्रिया-
जो धातु तथा रंजक क्रिया के योग से बनती है। जैसे- कर दे, भूला जो आदि। रंजक क्रियाएँ मूलतः प्रथम घटक के कोशीय अर्थ को ही रंजित या
प्रभावित करती हैं इसलिए ये मुख्य क्रिया के अंतर्गत आती हैं।
सहायक क्रिया- क्रिया पदबंध का
वह अंश जो व्याकरणिक सूचना वहन करता है, सहायक क्रिया कहलाता है; जैसे-
ला/लन (ता है), रहे/रहलन (था), हन (एगा), आ/या आदि। हिंदी में सहायक क्रियाओं के अंतर्गत वाच्य, पक्ष, वृत्ति तथा काल संबंधी प्रत्यय या चिह्नक शामिल हैं, ये सभी हिंदी की वाक्य स्तरीय व्याकरणिक कोटियों का प्रतिनिधित्व करती हैं।
क्रिया संरचना में मुख्य क्रिया (धातु) के साथ सहायक क्रिया (व्याकरणिक प्रत्यय) जुड़ती है;
जैसे - चलऽ, जा, सूतऽ, उठऽ, बइठऽ आदि धातुओं के साथ काल,
पक्ष, वृति, लिंग, वचन,
पुरुष आदि के अनुसार प्रत्यय जुड़ते हैं तथा उससे क्रियारूप
संरचना बनती है। क्रियारूप से व्याकरणिक कोटियाँ प्रदर्शित होती हैं और प्रत्यय से अनेक
व्याकरणिक सूचनाएँ मिलती हैं; जैसे –
1.
परधान जी घरे जात बाड़न।
इसमें ‘जात बाड़न’ क्रियापद में ‘जा’ धातु (मुख्य क्रिया), तऽ बाड़न
(सहायक क्रिया)
लिंग (पुल्लिंग), वचन
(एकवचन), पक्ष (अपूर्ण पक्ष) आदि सूचनाएँ मिलती है।
क्रिया-संरचना में काल,
पक्ष एवं वृत्ति की दृष्टि से जो क्रियारूप बनते हैं, उन क्रियारूपों पर लिंग,
वचन, पुरुष आदि के प्रभाव को आगे संक्षेप में स्पष्ट किया गया है।
काल :
परिभाषा एवं प्रकार-
काल की परिभाषा देते हुए
कामता प्रसाद गुरु ने कहा है कि- क्रिया के उस रूपांतरण
को काल कहते हैं,
जिससे क्रिया के व्यापार का समय तथा पूर्ण या अपूर्ण का बोध
होता है;
जैसे- वर्तमान- हम जानी/जाइना (मैं जाता हूँ),
भूतकाल- हम जात रहनी ह (मैं जाता था), भविष्यत् काल-
हम जाइब (मै जाऊँगा)।
“क्रिया के जिन रूपों से कार्य-व्यापार के समय का बोध
होता है,
उसे काल कहते हैं।
डॉ. अर्जुन तिवारी नें काल को परिभाषित करते हुए कहा है कि ‘काल’
कार्य होने के समय का बोधक है।
(हिंदी भाषा व्याकरण और रचना (2010))
काल के प्रकार
काल मुख्यतः तीन प्रकार
के होते है-
वर्तमान काल, भूतकाल, भविष्य काल
वर्तमान काल-
“वर्तमान काल के धरातल
में ऐसी अवस्था या व्यापार को माना जाता है, जो कथन के क्षण
में हो रहा हो,
या सदा होता है। हिंदी में वर्तमान में ‘ता है,
ता हूँ, ती है,
ती हूँ, ते है,
ते हो’ इत्यादि।
भोजपुरी में वर्तमान काल में ‘लन, ली,
ल, लु’ का प्रयोग होता है,
जैसे-
क.
रोहन खेलने जाता है।
ख.
मैं प्रतिदिन एक कहानी
पढ़ता हूँ।
ग.
मैं खाना खाती हूँ।
घ.
रंजू घर का काम करती है।
हिंदी में रहा है, हो,
है’ के लिए भोजपुरी में ‘आनी,
बानी, बाड़न,
बाडू, बाडूजा,
बाड़ीसन’ आदि का प्रयोग मिलाता
है।
अनादरसूचक के लिए ‘बा’ और ‘बिया’ का प्रयोग होता है। वर्तमान काल को निम्न उदाहरणों के माध्यम से देख सकते हैं; जैसे-
क.
मैं आज पढ़ रहा हूँ। = हम पढ़त बानी।
ख.
वह लड्डू खा रहा है। = उ लड्डू खात बा।
ग.
वे घूमने जा रहे हैं। = ओहनीकऽ घूमे जात बाड़नसऽ।
भूतकाल- भूतकाल
में कार्य व्यापार के पहले होने का बोध होता है। हिंदी में
भूतकाल के लिए ‘था/
थे/ थी’ सहायक क्रिया का प्रयोग होता है परंतु भोजपुरी में इसके लिए ‘रही/रहे’ और रहली/रहले/
रहलन/ रहलनसऽ’दोनों रुपों को प्रयोग होता है, जैसे-
क. मैंने दे दिया था। =हम दे देले रहनीं।
ख. गाड़ी चली गई थी। = गाड़ी चल गइल रहे।
ग. नौकर चिठ्ठी लाया था। = नौकर चिठ्ठी लियाइल रहे।
अनादरसूचक के लिए ‘रही /रहे /रहलन /रहलिसऽ’ का प्रयोग होता है,जैसे-
क. मैं मिला था।= ह मिलल रहनी।
ख. मैं घर गया था। = हम घरे गइल रहनी।
ग. वह नहीं खा रहे थे।= उ ना खइले रहलन।
भविष्यकाल- “भविष्यतकाल की क्रिया से ज्ञात होता है कि व्यापार का बाद में आरंभ होने वाला
है; हिंदी में इसके लिए ‘ऊँगा/
ऐगी/ ओगी-ऐगी/
ओगी/ एगा/
एंगे/ एंगी’ प्रत्यय का प्रयोग होता है। भोजपुरी में ब/ बु/
हन/ हनजा का प्रयोग मिलता है;
जैसे-
क.
नौकर जायेगा। = नौकर जाई ।
ख.
हम अपने घर जाएगें। =
हमन/हमनीकऽ अपना घरे जाएके।
ग.
लड़का भेजा जाएगा।= लइका भेजल जाई।
पक्ष- पक्ष काल बोध का स्तर होता है जो क्रिया व्यापार में आयुक्त समय विस्तार (कालावधि)
के बोध को निर्धारित एवं नियंत्रित करता है (यह काल बोध के उस स्तर से भिन्न है जिससे यह पता चलता है कि उस समय के धरातल
पर कार्य-व्यापार कहाँ घटित हो रहा है,जैसे- वर्तमान,
भूत,
भविष्यत्
पक्ष के प्रकार
को नींचे आरेख के माध्यम से देख सकते हैं
अपूर्ण पूर्ण
सातत्यपरक नित्यता बोधक स्थित्यात्मक
पूर्ण- इस पक्ष से क्रिया की पूर्णता का बोध होता है। इसमें कार्य- व्यापार को समग्र इकाई अथवा एक घटना के रूप में देखा जाता है।
अपूर्ण- इस पक्ष में कार्य-व्यापार को एक प्रक्रिया के रूप में देखा जाता है इस पक्ष को निम्न भागों में
विभाजित किया गया है- क. सातत्यपरक ख. नित्यता बोधक ग. स्थितियात्मक
क. सातत्यपरक- अपूर्ण पक्ष के इस भाग से किसी कार्य व्यापार के अस्थिर होने का भाव होता है; जैसे- वह जा रहा है।
ख. नित्यता बोधक- अपूर्ण पक्ष के इस भाग से कार्य-व्यापार की आवृत्ति का बोध होता है
जिसके कारण इसे आवृत्ति मूलक पक्ष भी कहते हैं; जैसे- वह पढ़ता है।
ग. स्थित्यात्मक- अपूर्ण पक्ष के इस भाग से ‘पक्ष’ क्रिया-रूप से व्यक्त न होकर संपूर्ण वाक्य गठन
से व्यक्त होता है इस प्रकार के वाक्यों से अस्तित्व या स्थिति का बोध होता है; जैसे- वह पेड़ है।
इसके अतिरिक्त सहायक पक्ष भी होते हैं जो मूल पक्ष चिह्नकों से पूर्व लगते हैं
तथा एक विशिष्ट अर्थ देते हैं। मूल पक्ष की भाँति इनका प्रयोग क्रिया पदबंध के
अंतिम घटक के रूप में या काल चिह्नकों से पूर्व नहीं हो सकता। सहायक पक्ष मुख्य रूप से मुख्य पक्ष के
पूर्व ही प्रयुक्त होते हैं इनका वर्गीकरण निम्न रूपों में किया जा सकता है, जैसे-
1. अभ्यासद्योतक 2. वर्तमानद्योतक 3. समाप्तिबोधक 4. आरंभद्योतक 5. आरंभपूर्वद्योतक
भोजपुरी रूप-
अभ्यासद्योतक
|
वर्तमानद्योतक
|
समाप्तिबोधक
|
आरंभद्योतक
|
आरंभपूर्वद्योतक
|
उ सुतले रहेला।
उ सुतल
रहेला।
उ सुतल करेला।
|
उ लिखत
चली।
उ लिखत जाई ।
उ लिखते चलल आ रहल बा ।
|
उ पी लेले बा।
उ पी लेहले बा।
|
उ जाए लागल।
|
उ जाए वाला
बा।
|
वृत्ति - सूरजभान सिंह ने वृत्ति को परिभाषित
करते हुए कहा है कि “यह कार्य व्यापार की उस अवस्था या रीत्ति को व्यक्त करता है जिसे वक्ता मानसिक
स्तर पर अपनी चेतना तथा अपने दृष्टिकोण से देखता है । उसकी यह दृष्टि, इच्छा, कल्पना,
संकल्प या अनुमान आदि से प्रेरित हो सकती है अतः वृति से
कार्य व्यापार के प्रति वक्ता के अभिवृत्ति या कर्ता और कर्म व्यापार के संबंध में
उसके दृष्टिकोण का बोध होता है। ”
अतः कहा जा सकता है कि वृत्ति का संबंध उस कार्य व्यापार की घटना से है जो
किसी जगत में घटित न होकर वक्ता के मस्तिष्क में घटित हुई हो।
वृत्ति के प्रकार-
1.
आज्ञार्थक- आज्ञार्थक श्रोता की क्रियाओं को निर्देशित
करता है।
आज्ञार्थक वाक्यों में कर्ता हमेशा मध्यम पुरुष में होता
है। इसके अंतर्गत आज्ञा,प्रार्थना,
उपदेश आदि भाव निहित होते हैं।
उदाहरण – तू जा।
रउआ लोग खाना खाईं जा।
2.
संभावनार्थक – इसके अंतर्गत कार्य व्यापार के भविष्य में घटित होने के संबंध में वक्ता के
दृष्टिकोण का बोध होता है जिसे वक्ता इच्छा,कामना,संभावना आदि के रूप में व्यक्त करता है ।
जैसे- काल्ह बारिश ना होई।
भगवान उनके खुश रखस।
3.
हेतुम–हेतुम –
इसके अंतर्गत वक्ता के मस्तिष्क में शर्त, इच्छा आदि का बोध होता है।
जैसे- तू बुलवतs हम जरुर अईती।
4.
सामर्थ्यसूचक- इसके अंतर्गत वक्ता की समर्थता का बोध होता है ।
जैसे – उ खेल सकेला।
धोनी छक्का
मार सकेला ।
5.
बाध्यतासूचक- इसके अंतर्गत कर्ता पर वाह्य परिस्थितियों का दबाव पड़ने का बोध होता है ।
जैसे- सुरेन्द्र के घरे जाए के
पडल।
6.
भविष्यत्- इसके अंतर्गत वक्ता द्वारा कार्य व्यापार के भविष्य में घटित होने के संबंध
में असंदिग्ध स्थिति का बोध होता है।
जैसे- उ काल्ह नागपुर जाई।
7.
अनुज्ञात्मक- इसके अंतर्गत कार्य व्यापार को संपादित करने की अनुमति, अनुमान आदि का बोध होता है।
जैसे- का हम क्रिकेट खेल सकतनी।
ओकर वजन एक मन होई।
Reference:
·
कुमार, कविता.
(2006). हिंदी व्याकरण एक नवीन दृष्टिकोण. नई दिल्ली.
किताबघर प्रकाशन
·
गुरु, कामताप्रसाद.
(2012). हिंदी व्याकरण. इलाहाबाद. लोकभारती प्रकाशन
·
सिंह, सूरजभान.
(2000). हिंदी का वाक्यात्मक व्याकरण. नई दिल्ली.
साहित्य सहकार
·
सिंह, जयकान्त.
(2013). मानक भोजपुरी भाषा, व्याकरण आ रचना. मुजफ्फरपुर.
राजर्षि प्रकाशन
·
त्रिपाठी, रामदेव. (1987). भोजपुरी व्याकरण. कानपुर: विकास प्रकाशन
·
तिवारी, शकुंतला. (2006). भोजपुरी की रूपग्रामिक संरचना. कानपुर: विकाश प्रकाशन
·
सिंह, शुकदेव. (2009). भोजपुरी और हिंदी. वाराणसी: विश्वविद्यालय प्रकाशन
·
कुमार, अरविंद.
(2009). भोजपुरी हिंदी इंग्लिश लोक शब्दकोश. आगरा: केंद्रीय हिंदी संस्थान
·
तिवारी, उदय नारायण. (2011). भोजपुरी की रूपग्रामिक संरचना. कानपुर: विकास प्रकाशन
Important Links:
No comments:
Post a Comment