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आभ्यंतर (Aabhyantar)
SCONLI-12
विशेषांक ISSN : 2348-7771
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28. हिंदी-मराठी भाषा के परसर्गीय
पदबंध : व्यतिरेकी अध्ययन
प्रफुल्ल भगवान मेश्राम : पी-एच.डी.
भाषाविज्ञान एवं भाषा प्रौद्योगिकी, म.गां.अं.हिं.वि.
वर्धा
उपवाक्य से छोटी इकाई पदबंध है
जिनसे मिलकर उपवाक्य बनते हैं। पदबंध वाक्य में निर्धारित व्याकरणिक प्रकार्य पूरी
करने वाली इकाइयाँ होती है जिनका अस्तित्व केवल वाक्य के अंतर्गत ही संभव होता है।
प्रत्येक वाक्य में कर्ता, कर्म, पूरक, अव्यय तथा क्रिया आदि के निर्धारित स्थान होते हैं
जहाँ पर संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रियाविशेषण, क्रिया आदि शब्द प्रयुक्त होकर
कुछ निश्चित भूमिकाएं निभाते हैं और निर्धारित प्रकार्य संपन्न करते हैं। इन
स्थानों को प्रकार्य स्थान कहते हैं और इन प्रकार्य स्थानों पर जो शब्द या शब्द
समूह प्रयुक्त होने की क्षमता रखते हैं या प्रयुक्त होते हैं उन्हें पदबंध कहा
जाता है।
आतंरिक विन्यास और संरचना की दृष्टि से सूरजभान सिंह ने पदबंधों को दो वर्गों
में विभाजित किया है- १. अंतःकेंद्रिक (endocentric) और २. बाह्यकेंद्रिक (exocentric)। हिंदी भाषा में परसर्ग संज्ञा
या सर्वनाम के साथ जुड़कर वाक्य में अव्यय पदबंध का निर्माण करता है जो
बाह्यकेंद्रिक संरचना है। प्रस्तुत पत्र में हिंदी और मराठी भाषा के परसर्गीय
पदबंधों का व्यतिरेकी अध्ययन किया गया है।
शोध पत्र का उद्देश्य
· हिंदी और मराठी भाषा के
परसर्गीय पदबंध का विश्लेषण करना।
· दोनों भाषाओं के परसर्गीय
पदबंधों में असमानताओं को सामने लाना।
उपयोगिता : हिंदी भाषा के विद्यार्थी जो मराठी को
सीखना चाहते हैं एवं जो मराठी भाषी हिंदी सीखना चाहते हैं उनके लिए पदबंध स्तर के
ज्ञान के लिए इसकी उपयोगिता होगी।
हिंदी और मराठी दोनों भाषाओं में परसर्ग का प्रयोग होता है। अव्यय पदबंधों के
निर्माण में परसर्ग का प्रयोग होता है। हिंदी में परसर्ग संज्ञा और सर्वनाम के साथ
जुड़कर अव्यय पदबंधों का निर्माण करते हैं जो हिंदी भाषा में ‘से’, ‘में’, ‘पर’ आदि
परसर्ग प्रयुक्त होते हैं जिनके लिए मराठी में विभिन्न प्रयोग दिखाई देते हैं।
हिंदी के ‘से’ परसर्ग का प्रयोग
कारकेतर संबंधों के अलावा अपादान, करण, स्थान, स्त्रोत और समय के विस्तार को
व्यक्त करने के लिए, कर्म के स्त्रोत के रूप में, अधिकरण, स्थिति परिवर्तन
संप्रदान के तौर पर भी होता है। मराठी में इस ‘से’ परसर्ग को व्यक्त करने के लिए
ने, नी, आतून, वर, शी, कडून, पासून, हून, पेक्षा, ऊन, ची आदि का प्रयोग होता है।
साधन/करणवाचक ‘से’
संज्ञा के जिस रूप से क्रिया को
करने के साधन का बोध हो अर्थात जिसकी सहायता से कार्य संपन्न हो वह करण कारक होता
है। हिंदी में इसके लिए विभक्ति-चिह्न ‘से’ के द्वारा है किंतु मराठी में इसके लिए
भिन्न प्रयोग मिलते है।
उदाहरण-
हिंदी
वाक्य
|
मराठी
वाक्य
|
(१)
पंकज ने राहुल को अपनी आँखों से देखा।
|
(१)
पंकज ने राहुलला आपल्या डोळ्यांनी पाहिले/बाघितले.
|
(२)
दिलीप ने चाकू से आम काटा।
|
(२)
दिलीपने चाकुने आंबा कापला.
|
(३)
वह गाड़ी से आया।
|
(३)
तो गाडीने आला.
|
(४)
सिनेमा देखते समय मेरी आँखों से पानी आता है।
|
(४)
सिनेमा बघताना माझ्या डोळ्यातून पाणी येते.
|
उपरोक्त उदाहरणों में आँख, चाकू, गाडी आदि साधनवाचक है किंतु चतुर्थ वाक्य में
आँखें देखने के साथ-साथ इसमें अलगाव भो हो रहा है। हिंदी के इस ‘से’ (आँखों से) के
लिए मराठी में ‘तून’ प्रत्यय का प्रयोग होता है जो ‘आतून’ का संक्षिप्त रूप है।
मराठी में ‘आतून’ पंचमी विभक्तिप्रतिरूपक अव्यय है। अपादान, अलगाव के कारण ‘आतून’
अव्यय पद आ रहा है। मराठी में साधनवाचक के लिए ‘ने’ करण कारक तृतीया विभक्ति
प्रत्यय प्रयुक्त होता है तो कभी-कभी ‘ने’ की जगह ‘नी’ विभक्ति प्रत्यय का भी
प्रयोग होता है जो बहुवचन/अनेकवचन में प्रयुक्त होता है। ‘नी’ अपने पूर्व सामान्य
रूप के अंतर्गत आनेवाले अनुस्वार के कारण अनेकवचन दर्शाता है। रिक्शा और डोळा ‘आ’
कारांत पुल्लिंग है जिसका सामान्य रूप ‘या’ कारांत होता है। इन शब्दों में विभक्ति
चिह्न जुड़ने से पहले इनके मूल रूप में परिवर्तन हुआ है।
साधनवाचक ‘से’
हिंदी में स्थानवाचक ‘से’ के
लिए मराठी में विभिन्न प्रयोग मिलते हैं जैसे- कब से-केव्हापासून, कल से-कालपासून,
नीचे से-खालून, कहाँ से-कुठून, भीतर से-आतून, आज से-आजपासून, कल से-उद्यापासून, घर
से-घरून, यहाँ से-येथून/इथून, वहाँ से-तेथून/तिथून, खिड़की से-खिडकीतून आदि।
हिंदी
|
मराठी
|
(१) पूनम भीतर से आती है।
|
(१) पूनम आतून येते.
|
(२) अमोल ने तकिए के निचे से
जालीदार पीतल का डिब्बा निकाला।
|
(२) अमोल ने उशाखालून एक जालीदार
डब्बा काढला.
|
(३) कहाँ से आ रही हो/रहे हो।
|
(३) कोठून/कुठून येत आहे.
|
(४) परसों रात सुष्मा घर
से भाग गई।
|
(४) पर्वा रात्रीला सुष्मा घरातून
पळून गेली.
|
(५) उसने खिड़की से
देखा/झांका।
|
(५) तिने खिडकीतून बघितले/पाहले.
|
(६) मेरा घर यहाँ से दूर है।
|
(६) माझे घर इथून दूर आहे.
|
उपरोक्त दिए गए उदाहरणों में
प्रयुक्त अव्यय पदबंध को देखने से स्पष्ट होता है कि पहले उदाहरण में ‘भीतर से’
अव्यय पदबंध के लिए मराठी में ‘आतून’ अव्यय पद का प्रयोग हो रहा है जो मराठी में
स्वतंत्र रूप से प्रयुक्त होनेवाला स्थानवाचक क्रियाविशेषण है। कुछ विद्वानों ने
पंचमी विभक्ति (ऊन) को नकारते हुए ‘आतून’ को स्वतंत्र पद माना है।
दूसरे वाक्य में प्रयुक्त ‘नीचे
से’ अव्यय पदबंध के लिए मराठी में ‘खालून’ का प्रयोग होता है। तीसरे वाक्य में
‘कहाँ से’ के लिए ‘कुठून/कोठून’ तथा चतुर्थ वाक्य में ‘घर से’ अव्यय पदबंध के लिए
‘घरून’ का प्रयोग होता है। हिंदी के वाक्य
५ और वाक्य ६ में क्रमशः ‘खिड़की से’ और ‘यहाँ से’ के लिए मराठी में क्रमशः
‘खिडकीतून’ और ‘इथून’ का प्रयोग होता है।
इन उपरोक्त उदाहरणों में एक
सामान्यता यह है कि हिंदी के ‘से’ के लिए मराठी में प्रयुक्त होने वाले अव्यय
पदबंधों के साथ ‘ऊन’ प्रत्यय ही प्रयुक्त हो रहा है। ऊन अव्यय साधित प्रत्यय है जो
मराठी में ‘खाल’, ‘कोठ’, ‘जेथे’, ‘इथे’, ‘घर’, ‘खिडकी’ आदि शब्दों में लगाने के
बाद अव्यय पदबंध का निर्माण करते हैं। ‘खाल’, ‘कोठ’, ‘जेथे’ ‘इथे’ आदि ये शब्द ऐसे
है जिनका स्वतंत्र रूप से प्रयोग नहीं किया जा सकता।
मराठी में ‘ऊन’ पंचमी विभक्ति
प्रत्यय है जो संज्ञा और अव्ययों में लगता है। उपर्युक्त उदाहरणों में दिए गए पद
अव्यय हैं जिन्हें ‘ऊन’ प्रत्यय लगाकर साधित अव्यय का निर्माण हुआ है। चौथे वाक्य
में घर शब्द को ‘ऊन’ प्रत्यय लगकर ‘घरून’ का निर्माण हुआ है जो अपादान, अलगाव को
सूचित कर रहा है। (मराठी में ‘ऊन’ प्रत्यय केवल संज्ञा और स्थानवाचक, दिशावाचक
अव्ययों में ही लगता है।)
मराठी में स्थानवाची अव्ययों के
साथ भी ‘ऊन’ प्रत्यय का ही प्रयोग होता है। निम्न उदाहरणों के द्वारा इसे और
स्पष्टतः से समझ सकते हैं-
हिंदी
|
मराठी
|
(१) यहाँ सेमेरी जगह है।
|
(१) इथून माझी जागा आहे.
|
(२) वहाँ से मत जाओ।
|
(२) तिथून जाऊ नकोस.
|
(३) कहाँ सेआ रहें हो।
|
(३) कुठून/कोणीकडून
येत आहे.
|
(४) इधर से आओ।
|
(४) इकडून ये
|
समयवाचक ‘से’
हिंदी के समयवाचक परसर्ग ‘से’
के लिए मराठी में ‘पासून’ विभक्ति प्रतिरूपक संबंधसूचक अव्यय का प्रयोग किया जाता
है जो पंचमी विभक्ति का कार्य करता है, जैसे- सुबह से-सकाळपासून, रात
से-रात्रीपासून, दिसंबर से-डिसेंबरपासून, परसों से-पर्वापासून, आज से-आजपासून, कल
से-कालपासून, दिन से-दिवसांपासून, अब से-आतापासून, तब से-तेव्हापासून आदि। कुछ
निम्न उदाहरणों से वाक्यों में इनका प्रयोग कर इसे और स्पष्ट किया जा सकता है-
हिंदी
|
मराठी
|
(१) सुबह से देख रहा हूँ।
|
(१) सकाळपासून पाहत/बघत आहे.
|
(२) १ जनवरी से
परीक्षा आरंभ होगी।
|
(२) १ जानेवारीपासून परीक्षासुरु
होईल.
|
(३) वह चार दिनों से
भूखा है।
|
(३) तो चार दिवसांपासून
उपाशी आहे.
|
(४) मैं कब से
आया हूँ।
|
(४) मी केव्हापासून/ची/चा
आलो आहे.
|
(५) बच्चों से अलग रहकर जी नहीं
सकते।
|
(५) मुलांपासूनवेगळ राहून जगू शकत
नाही.
|
उपरोक्त दिए गए उदाहरणों में १,२,
एवं ३ रे उदाहरणों में ‘सुबह’, ‘जनवरी’, ‘दिन’ आदि समयवाचक संज्ञाएँ है। उदाहरण ४
एवं ५ में यह आरंभबोधक के रूप में कार्य कर रहे हैं। मराठी में इन सबके लिए
‘पासून’ का प्रयोग किया गया है।
तीसरे उदाहरण में ‘दिनों से’
अव्यय पदबंध के लिए मराठी में ‘दिवसांपासून’ का प्रयोग होता है जिससे निरंतरता का
बोध होता है। मराठी में ‘दिवसां’ पद को ‘पासून’ अव्यय पद जुड़ने से पहले ‘दिवस’ इस
समयवाचक संज्ञा का सामान्य रूप ‘दिवसां’ हुआ है।
उदाहरण ४ में ‘कब से’ पदबंध के लिए मराठी में
केव्हाची/केव्हापासून से अव्यय पदबंध का प्रयोग किया जाता है। केव्हा (कब) कालवाचक
क्रियाविशेषण है और ‘ची’ प्रत्यय जोड़ा गया है। यदि वाक्य का कर्ता पुल्लिंग हो तो
‘चा’ प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है। ‘च’ मूल प्रत्यय है, च+ई=ची स्त्रीलिंग कारक
प्रत्यय है। च+आ=चा पुलिंग को दर्शानेवाला प्रत्यय है।
हिंदी के पाँचवे उदाहरण में
‘बच्चों से’ के लिए मराठी में ‘मुलांपासून’ अव्यय पदबंध प्रयुक्त हुआ है जिसमें
‘मूल’ शब्द अकारांत है जो नपुंसक लिंग है जिसका सामान्य रूप आकारांत होता है।
वाक्य में प्रयोग करते समय ‘मुल’ का सामान्य रूप
‘मुला’ होकर उसे ‘पासून’ अव्यय पद जुड़ा है। ‘पासून’ अलगाव दूरी सूचित करता
है।
‘पासून’ का प्रयोग पास/नजदीक के
अर्थ में भी किया जाता है।
उदाहरण- तो माझ्यापासून/ जवळून गेला (वह मेरे नजदीक/पास से गया). मराठी के कई ऐसे समयवाचक, स्थानवाचक क्रियाविशेषण है जिनका सामान्य रूप नहीं होता जैसे- काल, तिथ, आज आदि के कालपासून, तिथपासून, आजपासून आदि।
उदाहरण- तो माझ्यापासून/ जवळून गेला (वह मेरे नजदीक/पास से गया). मराठी के कई ऐसे समयवाचक, स्थानवाचक क्रियाविशेषण है जिनका सामान्य रूप नहीं होता जैसे- काल, तिथ, आज आदि के कालपासून, तिथपासून, आजपासून आदि।
समयवाचक संज्ञाओं के साथ जब ‘से’
परसर्ग का प्रयोग होता है तब मराठी में इस ‘से’ के लिए ‘पासून’ अव्यय का ही प्रयोग
होता है।
रीतिवाचक ‘से’
हिंदी में रीतिवाचक ‘से’ का
प्रयोग किया जाता है जिसके लिए मराठी में
विशेषण शब्दों में कभी विभक्ति प्रत्यय लगता है तो कभी-कभी स्वतंत्र अव्यय का
प्रयोग होता है,जैसे हिंदी में- जोर से, आराम से, जल्दी से, धीरे से, अच्छे से आदि
के लिए मराठी में जोराने, आरामाने, लवकर, हळूच, चांगल्याने आदि का प्रयोग होता है।
इसे निम्न उदाहरणों के द्वारा और स्पष्टतः से समझा जा सकता है-
हिंदी
|
मराठी
|
(१) इंद्र ने पंकज को जोर
से मारा।
|
(१) इंद्र ने पंकजला जोरात
मारले.
|
(२) आप आराम से
बैठिए।
|
(२) तुम्ही आरामात
बसा.
|
(३) तुम जल्दी से
जाओ।
|
(३) तु लवकर
जा.
|
(४) नेहा ने धीरे से
कहां।
|
(४) नेहाने हळूच
सांगितले.
|
(५) किताब को अच्छे से
पढ़ो।
|
(५) पुस्तकाला चांगल्याने
वाच.
|
उपरोक्त सभी उदाहरणों में प्रयोग किए गए अव्यय पदबंध से क्रिया की रीती का बोध
होता है। हिंदी के पहले वाक्य में ‘जोर से’ अव्यय पदबंध का प्रयोग हुआ है जिसके
लिए मराठी में ‘जोरात’ अव्यय का प्रयोग हुआ है जो पूरे अव्यय पदबंध का कार्य कर
रहा है। ‘जोरात’ अ.प. का निर्माण ‘जोर’ विशेषण और ‘त’ प्रत्यय से हुआ है। ‘त’
सप्तमी विभक्ति का प्रत्यय है। दूसरे वाक्य में भी सप्तमी विभक्ति का प्रत्यय ‘त’
(आरामात) ही लगा हुआ है।
तीसरे उदाहरण में हिंदी के ‘जल्दी
से’ के लिए मराठी में ‘लवकर’ अव्यय का प्रयोग हुआ है जिसमें किसी प्रकार का
प्रत्यय नहीं लगा है। ‘लवकर’ अपने आप में स्वतंत्र अव्यय पद है। वाक्य ४ में ‘धीरे से’ (हिंदी) के लिए
‘हळूच’ (मराठी) अव्यय पद का प्रयोग हुआ है। ‘हळूच’ अव्यय पदबंध में ‘च’ संबंधसूचक
अव्यय है जो शब्दों में बल देने के साथ-साथ वाक्य को प्रभावी बनाता है। वाक्य ५
में ‘अच्छे से’ के लिए मराठी में ‘चांगल्याने’ अव्यय पदबंध का प्रयोग होता है।
हिंदी में अकारांत विशेषण के तीन रूप मिलते हैं जबकि मराठी में चार रूप मिलते हैं।
हिंदी में विशेषण के
रूप
|
मराठी में विशेषण के
रूप
|
अच्छा
|
चांगला
|
अच्छी
|
चांगली
|
अच्छे
|
चांगले/चांगल्या
|
मराठी में ‘चांगला’ आकारांत विशेषण है जिसका सामान्य रूप ‘या’ कारांत होता है।
मराठी में ‘चांगला’ मूल विशेषण है किंतु वाक्य ५ में यह क्रियाविशेषण का कार्य कर
रहा है। ‘चांगल्याने’ अव्यय पद के निर्माण में ‘चांगला’ सामान्य रूप को ‘ने’ तृतीय
विभक्ति प्रत्यय लगा है।
हिंदी में विशेषण के
रूप
|
मराठी में विशेषण के
रूप
|
अच्छा
|
चांगला
|
अच्छी
|
चांगली
|
अच्छे
|
चांगले/चांगल्या
|
उपर्युक्त विवेचन के आधार पर
दिखाई देता है कि रीतिवाचक क्रियाविशेषण के साथ ‘से’ परसर्ग प्रयुक्त होने पर
मराठी में ‘से’ के लिए कई प्रयोग मिलते हैं तो कही प्रत्ययों का लोप दिखाई देता है तो कही स्वतंत्र अव्यय पदों का भी
प्रयोग होता है जो पूरे पदबंध का कार्य संपन्न करते हैं।
कारणवाचक ‘से’
हिंदी के कारणवाचक ‘से’ परसर्ग
के लिए मराठी में ‘ने’ तृतीया विभक्ति प्रत्यय, ‘मुळे’ कारणवाचक संबंधसूचक अव्यय और ‘चा’ षष्टि विभक्ति प्रत्यय
का प्रयोग होता है। निम्न उदाहरणों के द्वारा इसे समझ सकते है-
हिंदी
|
मराठी
|
(१) वह कैंसर से
मर गया।
|
(१) तो कैंसरने/मुळे
मेला.
|
(२) उसका गर्मी से पसीना निकला।
|
(२) त्याचा गर्मीमुळेघाम
निघाला.
|
(३) वह बुखार से
काँप रहा था।
|
(३) तो तापाने/मुळेकापत
होता.
|
(४) हर्षवर्धन वकील से
जज बना।
|
(५) हर्षवर्धन वकिलाचा
न्यायाधीश झाला.
|
उपरोक्त चारों उदाहरणों में ‘से’ के लिए क्रमशः ‘ने’,‘मुळे’, ‘ने’, ‘मुळे’, ‘चा’ का प्रयोग हुआ है। ‘ने’
तृतीया विभक्ति का प्रत्यय है, ‘मुळे’ कारणवाचक संबंधसूचक अव्यय है (जो तृतीया विभक्ति का
कार्य करता है)। वाक्य ४ में ‘वकील से’ के लिए ‘वकिलाचा’ में ‘चा’ षष्टि विभक्ति
प्रत्यय प्रयुक्त हुआ है जो स्थिति परिवर्तन को दिखाता है।
तुलनावाचक ‘से’
हिंदी में तुलना के लिए ‘से’ का प्रयोग होता है जिसके लिए मराठी में ‘हून’
पंचमी विभक्ति का तुलनावाची प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण- (१) (हिंदी) यह घोड़ा सब से अच्छा है।
(२) (मराठी) हा घोड़ा सर्वांत/सर्वाहून चांगला आहे.
(२) (मराठी) हा घोड़ा सर्वांत/सर्वाहून चांगला आहे.
उपरोक्त दोनों वाक्य देखें तो
हिंदी के पहले वाक्य में ‘सब से’ अव्यय पदबंध के लिए ‘त्याच्याहून’ अव्यय पदबंध का
प्रयोग हुआ है जिसमें ‘हून’ पंचमी विभक्ति का तुलनावाचक प्रत्यय प्रयुक्त हुआ है।
कभी-कभी प्रयुक्त शब्द के साथ ‘त’ प्रत्यय भी प्रयुक्त होता है जैसे ‘सर्वांत’ में
आ की मात्रा और ‘त’ प्रत्यय।
हिंदी में तुलना के लिए ‘की
अपेक्षा’ अव्यय पदबंध का भी प्रयोग देखने को मिलता है जिसके लिए मराठी में
‘पेक्षा’ अव्यय का प्रयोग होता है।
उदाहरण- (१) (हिंदी) डिजल पेट्रोल
की अपेक्षा सस्ता होता है।
(२) (मराठी) डिझेल पेट्रोलपेक्षा स्वस्त असते.
(२) (मराठी) डिझेल पेट्रोलपेक्षा स्वस्त असते.
उपरोक्त वाक्य १ में ‘की अपेक्षा’ अव्यय तुलनावाची है जिसके लिए
मराठी में ‘पेक्षा’ पंचमी विभक्तिप्रतिरूपक अव्यय पद का प्रयोग किया गया है। मराठी
में पेक्षा के स्थान पर अपेक्षा का भी प्रयोग किया जा सकता है।
‘में’ परसर्ग
‘में’ परसर्ग अंतस्थ स्थिति का बोध कराता है जो ‘अधिकरण’ का भी परसर्ग
है।हिंदी के ‘में’ परसर्ग के लिए मराठी में ‘त’, ‘मध्ये’, ‘ला’ आदि प्रत्यय का
प्रयोग होता है।
उदाहरण- (हिंदी) (१) ट्रेन में
काफी भीड़ है। (मराठी) (१) ट्रेनमध्ये
खूप गर्दी आहे.
(२) आकाश भीड़ में रहता है। (२) आकाश बीडला राहतो.
(३) इतनी बीमारी में तुम घर कैसे जाओगे। (हिंदी)
(३) इतक्या आजारपणात तू गावाला कसा जाशील. (मराठी)
(२) आकाश भीड़ में रहता है। (२) आकाश बीडला राहतो.
(३) इतनी बीमारी में तुम घर कैसे जाओगे। (हिंदी)
(३) इतक्या आजारपणात तू गावाला कसा जाशील. (मराठी)
उपरोक्त वाक्य १ में ‘ट्रेन में’ के लिए ‘ट्रेनमध्ये’ का प्रयोग हुआ है। अर्थात ‘ट्रेन में’ ‘में’ के लिए मराठी में
‘मध्ये’ का प्रयोग होता है जो स्थलवाचक संबंधसूचक अव्यय है। मध्ये भीतर की स्थिति
को बताता है।
अवस्थिति बताने वाली संज्ञाओं के
साथ हिंदी में ‘में’ आता है, जैसे- ट्रेन, बस, टैक्सी आदि के लिए ‘मध्ये’ विभक्ति
प्रतिरूपक संबंधसूचक अव्यय का प्रयोग होता है जो सप्तमी विभक्ति का कार्य करता
है। हिंदी के ‘में’ के लिए मराठी में
विविधताएँ देखने को मिलती है। संज्ञाओं, विशेषणों तथा अव्ययों के परवर्ती विन्यास
में ‘में’ क्रियाविध है।
जैसे- काल- (हिंदी) इतने में वह आ गया। (मराठी) इतक्यात तो आला.
जैसे- काल- (हिंदी) इतने में वह आ गया। (मराठी) इतक्यात तो आला.
भीतरी भाग में स्थित होने पर
उदा- दूध
बोतल में है। (हिंदी) दूध
बोटलमध्ये आहे. (मराठी)
दाल डिब्बे में है। दाळ डब्ब्यात आहे.
कपड़े अलमारी में रखें हैं। कपडें कपाटात ठेवली आहे.
दाल डिब्बे में है। दाळ डब्ब्यात आहे.
कपड़े अलमारी में रखें हैं। कपडें कपाटात ठेवली आहे.
समय सीमा बताने के लिए
मैं
चार दिन में वापस लौट आऊंगा। (हिंदी) मी चार दिवसांत परत येईल. (मराठी)
मैं कल वापस आऊंगा। मी उद्या वापस येणार.
मैं कल वापस आऊंगा। मी उद्या वापस येणार.
युक्तता, लगाव या व्यस्तता को सूचित करने के लिए
उसने
गले में हार पहनाया। (हिंदी) त्याने
गळ्यात हार टाकला. (मराठी)
अनुष्का विराट के प्रेम में पागल थी।अनुष्का विराटच्या प्रेमात पागल होती.
हम काम में व्यस्त थे। आम्ही कामात व्यस्त होतो.
अनुष्का विराट के प्रेम में पागल थी।अनुष्का विराटच्या प्रेमात पागल होती.
हम काम में व्यस्त थे। आम्ही कामात व्यस्त होतो.
उपरोक्त विश्लेषण और उदाहरण के
आधार पर स्पष्ट होता है कि हिंदी में ‘में’ अधिकरण का परसर्ग है जिसके लिए मराठी
में त, आत, मध्ये आदि का प्रयोग किया जाता है। ‘त’ का ज्यादातर प्रयोग होता है।
‘पर’ परसर्ग
पर अधिकरण कारक सूचक परसर्ग है
जो बाह्य स्थिति को बताता है। इसका प्रयोग कई अवस्थाओं को सूचित करने के लिए होता
है। इसे विस्तार से निम्न प्रकार से समझ सकते हैं-
आधार या बाहरी तथा ऊपरी भाग
सूचित करने के लिए
उदाहरण-
हिंदी
|
मराठी
|
(१) संन्यासी ‘पहाड़ पर’
रहता है।
|
(१) संन्यासी पहाड़ावर
राहतो.
|
(२) किताबें ‘टेबल पर’
रखी है।
|
(२) पुस्तकें टेबलावर
ठेवलेली आहे.
|
(३) नोटिस दिवाल पर
चिपका था
|
(३) नोटिस भिंतीवर
चिटकवले होते.
|
उपरोक्त तीनों वाक्यों में हिंदी
के ‘पर’ परसर्ग के लिए ‘वर’ स्थानवाची अव्यय का प्रयोग हुआ है। प्रयोजन सूचित करने
के लिए हिंदी के ‘पर’ के लिए मराठी में ‘ई’ प्रत्यय का प्रयोग होता है। उदाहरण- मुझे घर पर रहना होगा।
(हिंदी) मला घरी थांबावे लागेल. (मराठी) उदाहरण में दिए गए हिंदी के
वाक्य में प्रयुक्त ‘पर’ परसर्ग के लिए मराठी में ‘ई’ सप्तमी विभक्ति अधिकरण कारक
आता है जो अंतस्थता, अंदर का भाव प्रकट करता है।
कभी-कभी हिंदी के ‘पर’ परसर्ग के
लिए मराठी में ‘ला’ चतुर्थ विभक्ति प्रत्यय प्रयुक्त होता है-उदा. बच्चों को होली
पर घर भेजेंगे। (हिंदी) मुलांना होळीला घरी पाठवणार.
(मराठी) इस वाक्य में होली (होळी) घटनावाचक संज्ञा है। घटनार्थक संज्ञा
क्रियाद्योतक होती है जो कालवाचक क्रियाविशेषण का कार्य करती है। इस वाक्य में
‘पर’ के लिए ‘ला’ चतुर्थ विभक्तिप्रत्यय प्रयुक्त हुआ है।
‘पर’ के लिए कभी-कभी ‘त’ सप्तमी
विभक्ति प्रत्यय, शील आख्यात प्रत्यय, तृतीया विभक्ति ‘नी’ प्रत्यय का प्रयोग होता
है तो कभी-कभी ‘वर’ का प्रयोग होता है। निम्न उदाहरणों के द्वारा यह और अधिक
स्पष्ट हो जाएगा-
उदा..
हिंदी
|
मराठी
|
(१) अक्षय के दुकान पर
काफी भीड़ इकठ्ठा हो गयी थी।
|
(१) अक्षयच्या दुकानात
खुप गर्दी जमा झाली होती.
|
(२) हिंसा करने पर
मार पड़ेगा।
|
(२) हिंसा करशील तर मार
पडेल.
|
(३) नागपुर में हर चीज किश्तों
पर मिलती हैं।
|
(३) नागपूरमध्ये प्रत्येक
वास्तु हफ्त्यानी मिळते.
|
(४) सरकार द्वारा अधिकारों
पर मर्यादा लगाना भी जनतंत्र का एक महत्त्वपूर्ण अंग है।
|
(४) सरकारद्वारे अधिकारांवर
मर्यादा घालने हा लोकशाहीचा एक महत्वपूर्ण अंग आहे.
|
उपरोक्त पहले उदाहरण में ‘पर’ के
लिए ‘त’ सप्तमी विभक्ति का प्रत्यय प्रयुक्त होता है। दूसरे वाक्य में हिंदी के
‘पर’ के लिए मराठी में ‘शील’ आख्यात प्रत्यय लगा है जो भविष्यकालीन है। तीसरे
वाक्य के ‘पर’ के लिए मराठी में तृतीय विभक्ति का ‘नी’ प्रत्यय प्रयुक्त हुआ है तो
चतुर्थ वाक्य में ‘वर’ का प्रयोग हुआ है जो स्थानवाचक क्रियाविशेषण है।
बदन-पर-अंगावर, दांत पर-दातावर,
हात पर-हातावर, सिर पर-डोक्यावर आदि में ‘वर’ का ही प्रयोग हुआ है किन्तु ‘घर पर’
के लिए घरावर का प्रयोग नहीं होता बल्कि इसके लिए ‘घरी’ का प्रयोग किया जाता है।
घरावर का अर्थ होता है घर के ऊपर परंतु ‘घरी’ से अंदर की स्थिति का बोध होता है।
कही-कही ‘में’ या ‘पर’ को एक
दूसरे के स्थान पर एक ही अर्थ के प्रयोग में लाया जाता है, जैसे- पिताजी घर पर/में
है। बाबा घरात आहे.
सारांश
अत: हिंदी-मराठी के परसर्गीय पदबंधों के प्रयोग में पर्याप्त अंतर है। हिंदी
में ‘से’ परसर्ग अपादान, तुलना अंतर, रीति, स्रोत, के लिए प्रयुक्त होता है तो
मराठी भाषा में इसके लिए कई प्रयोग मिलते हैं। हिंदी के में परसर्ग के लिए मराठी
में (त, ई, आत, मध्ये, ला) आदि विभक्ति प्रत्ययों का प्रयोग होता है । 'पर' के लिए मराठी में (वर, ने, ला, त, शील, ईल, नी, वर) आदि के
प्रयोग मिलते हैं।
संदर्भ एवं आधार ग्रंथ-सूची
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गोविलकर, लीला (2006) मराठीचे व्याकरण : मेहता पब्लिशिंग हाउस, पुणे
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जोगलेकर, न.चि. (1951) मराठी का वर्णनात्मक व्याकरण, राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा
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पाण्डेय, अनिल कुमार (2010) हिंदी संरचना के विविध पक्ष :
प्रकाशन संस्थान, नयी
दिल्ली
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फडके, अरुण (2010) मराठी लेखन-कोश : अंकुर प्रकाशन, ठाणे
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वर्धे, वि.ल. (2010) अत्यावश्यक मराठी व्याकरण : फडके
प्रकाशन, कोल्हापूर
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वाळंबे, कै. मो. रा. (2011) सुगम मराठी व्याकरण लेखन : नितिन
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शनवारे, श्रीधर (1994) अभिनव मराठी व्याकरण लेखन ; विद्या विकास मंडळ, नागपूर
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साहित्य सहकार, दिल्ली
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