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आभ्यंतर (Aabhyantar)
SCONLI-12
विशेषांक ISSN : 2348-7771
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16. हिंदी में आश्रित उपवाक्यों
का प्रकार्यात्मक विश्लेषण
पंकज कुमार मिश्र : पी-एच.डी. भाषाविज्ञान एवं भाषा
प्रौद्योगिकी, म.गां.अं.हिं.वि. वर्धा
भाषा को अगर केंद्र में रखकर देखा जाए तो भाषा मनुष्य की सबसे
बड़ी उपलब्धि के रुप में सामने आती है।मनुष्य अपने भावों को भाषा के माध्यम से
प्रकट करता है।इस संबंध में अभिव्यक्ति को प्रकट करने का सबसे प्रमुख उपादान ‘वाक्य’
है।मनुष्य का सोचना, बोलना और किसी भाव या
विचार का ग्रहण करना ‘वाक्य’ में ही
होती है।वाक्य संरचना की दृष्टि से पूर्ण व स्वतंत्र होते हुए भी आर्थी दृष्टी से
अपने संदर्भ में जुड़ा रहता हैं।
परंपरागत व्याकरण में ‘वाक्य के तीन प्रकारों का
उल्लेख किया गया है- साधारण, मिश्र और संयुक्त’ फिर वही ‘नाम-भेद’ के आधार पर भी ‘वाक्य के साधारण,
जटिल (मिश्र), संयुक्त प्रकार भी वर्णित किए गए हैं।डॉ. महेंद्र ने
पहले के लोगों के द्वारा किए गए वर्गीकरण को वैज्ञानिक मानते हैं।तब उस आधार पर
वाक्य के दो प्रकार हैं- (1) सरल (2) संयुक्त।
मिश्र और जटिल को संयुक्त वाक्य के अंतर्गत मानते हैं। इसी क्रम में सन् 1980 में प्रकाशित “हिंदी का समसामयिक व्याकरण” जो यमुना काचरू द्वारा
लिखा गया है, उसमें यमुना काचरू ने वाक्य के दो भेद किए हैं-
साधारण और जटिल वहीं मिश्र और संयुक्त वाक्यों को जटिल वाक्य के अंतर्गत रखा है।
वाक्य भेद पर विद्वान भले एक मत न हो परन्तु मिश्र
वाक्य की परिभाषा को लेकर सभी विद्वान एक मत जरुर हैं।‘मिश्र
वाक्य, वह वाक्य होता है, जिसमें एक
प्रधान वाक्य होता है और एक या एकाधिक आश्रित उपवाक्य होते हैं।’
आश्रित उपवाक्यों प्रकार्य की दृष्टि से विश्लेषण करने पर
निम्न बातें सामने आती होती हैं-
आश्रित उपवाक्य प्रकार्य की दृष्टि से तीन होते हैं- संज्ञा उपवाक्य, विशेषण उपवाक्य, और क्रिया विशेषण उपवाक्य ।इन तीनों आश्रित उपवाक्यों को निम्न रूप
से व्याख्यायित किया गया है, जो इस प्रकार से है-
संज्ञा उपवाक्य –
कर्म या पूरक रूप में प्रधान वाक्य की
संज्ञा का कार्य करने वाला वाक्य ‘संज्ञा उपवाक्य’ कहलाता
है। जैसे-
संजय सोचता है कि मैं उसका मित्र हूँ।
वाक्य में ‘मैं
उसका मित्र हूँ।’संजय द्वारा सोचने की क्रिया के पूरक रूप
में है, अतः “संज्ञा उपवाक्य”है।संरचना
की दृष्टि से आश्रित उपवाक्य में संज्ञा उपवाक्य के प्रयोग करने में निम्नलिखित
चिन्हों का उपयोग किया जाता है।
1- ‘कि’उसने कहा था कि मैं आऊँगा।
2- ‘जो’यही कारण है जो वह नहीं आया।
3- ‘Ø’क्या समझूँ Ø तुम नहीं आओगे।
वस्तुतः ‘जो’तथा ‘Ø’ वाले वाक्यों में ‘कि’
लगाया जा सकता है। जैसे-
1- यही कारण है जो (कि) मैं उसके बिना
नहीं जा सकता।
2- क्या जाने Ø (कि) तुम्हारी इच्छा
क्या है।
संज्ञा उपवाक्यों को निषेधात्मक रूप में भी परिवर्तित किया जा सकता है, जैसे-
1- राम ने कहा कि मैं आऊँगा।(सामान्य)
राम ने कहा कि मैं नहीं आऊँगा।(निषेधात्मक)
नोट- इन वाक्यों का प्रयोग मुख्यतः इच्छा, विचार, इरादा, दावा, बात आदि भाववाचक
संज्ञाओं के पुरक के रूप में होता है।वही प्रधान वाक्य में प्रायः कहना, सोचना, मानना, समझना, बताना, पूछना, लगना आदि
क्रियाओं का प्रयोग किया जाता है। जैसे-
1- उसने बताया कि वह कल आएगा।
2- वह समझता है कि मैंने उसकी पुस्तक
चुरा ली है।
3- उसने पूछा कि कल क्या कर रहे हो।
4- वह मानता है कि गलती उसकी थी।
इसी क्रम में यदि प्रधान वाक्यों में यह ‘ऐसा’ आदि सार्वनामिक
रूपों का प्रयोग हो तो उसी के पूरक रूप में संज्ञा उपवाक्य प्रयुक्त होता है,
जैसे-
संदीप ने यह बताया कि कल वह आएगा।
उसने ऐसा किया कि मुझे हंसी आ गई।
और यही नहीं सार्वनामिक रूप बलात्मक रूप में भी आ सकता है। जैसे-
उसने यही कहा था कि वह सामान नहीं
ला सकता।
तब संज्ञा उपवाक्य के प्रयोग हेतु क्रम-संबंधी सिद्धांत इस प्रकार से हो सकते
हैं।
(1) प्रधान वाक्य+संज्ञा उपवाक्य
(2) प्रधान वाक्य+एकाधिक संज्ञा
उपवाक्य
(3) संज्ञा उपवाक्य+प्रधान वाक्य
(4) एकाधिक संज्ञा उपवाक्य+प्रधान
वाक्य
(5) अधुरा प्रधान वाक्य+एक या एकाधिक
संज्ञा उपवाक्य+शेष प्रधान वाक्य जैसे-
(5) वाक्य हिंदी वाक्य संरचना के प्रकृति के अनुकूल वाक्य नहीं है।इस पर अन्य
भाषा का प्रभाव परिलक्षित होता है।और इन वाक्यों पर ध्यान दिया दिया जाए तो जिस
वाक्य में संज्ञा उपवाक्य प्रधान उपवाक्य से पहले आता है तब ‘कि’का लोप हो जाता है, तथा प्रधान वाक्य के ‘यह’ आश्रित उपवाक्य का समानाधिकरण होकर आता
है।संज्ञा उपवाक्य से निर्मित आश्रित वाक्य बाह्य संरचना में निम्न रूप में
रूपांतरित हो सकते हैं।इस रूप में ‘ना’ ‘-ने के लिए’,‘-वे हुए’भी
संज्ञा उपवाक्य बनाने वाले अंश हैं। जैसे-
1- मैं चाहता हूँ कि यह पुस्तक पढूं।
मैं यह पुस्तक पढ़ना चाहता हूँ। (रूपांतरित रूप)
2- उसने मुझसे कहा कि तुम पुस्तक लाओ।
उसने मुझसे पुस्तक लाने के लिए कहा। (रूपांतरित रूप)
3- मैंने देखा कि दूर पहाड़ी पर बर्फ गिर रही है।
मैंने दूर पहाड़ी पर बर्फ़ गिरते हुए देखी।
(रुपांतरित रूप)
अतः संज्ञा उपवाक्य के संरचना को देखा जाए तो मिश्र उपवाक्य में अर्थ की
पूर्णता के लिए महत्वपूर्ण निभाती हैं।तथा उसके प्रकार्य को देखा जाए तो वे प्रधान
वाक्य के पहले या बाद में आने से सार्वनामिक रूप व संयोजक का प्रयोग प्रकार्य
अनुरूप होता है।
विशेषण
उपवाक्य
प्रधान
वाक्य में प्रयुक्त संज्ञा की व्याप्ति को विशेषित करने वाले वाक्य को ‘विशेषण
उपवाक्य’ कहते हैं। जैसे-
राजीव की वह कमीज फट गई है जो आपने सिलवाई
थी।
इस वाक्य में ‘जो आपने सिलवाई थी।’ प्रधान
वाक्य में प्रयुक्त संज्ञा ‘कमीज’ की व्याप्ति को विशेषित कर रहा है। अतः ‘विशेषण
उपवाक्य’ है। संरचना की दृष्टि से हिंदी में विशेषण उपवाक्य के प्रयोग में
निम्नलिखित चिन्हों का उपयोग किया जाता है-
1- ‘जो’
(जिन, जिस)- वह छात्र जीवन में सफल होता है जो परिश्रम करता है।
2- ‘कि’
दान वीर बड़े दानी थे कि कीर्ति आज भी शेष है।
3- ‘क्या’
अब मामला क्या है वह हम तुम्हें बताते हैं।
प्रकार्य की दृष्टि से हिंदी में दो प्रकार
के विशेषण उपवाक्यों का प्रयोग किया जाता है, एक ‘संकेतक’ और दूसरा ‘सामान्य’।
‘संकेतक विशेषण उपवाक्य’ वस्तुतः प्रधान वाक्य में प्रयुक्त संज्ञा का संकेतक होता
है तथा इसके लिए प्रधान वाक्य की संज्ञा पूर्व ‘यह, ‘वह’ संकेतार्थी विशेषण का
प्रयोग किया जाता है। ‘सामान्य विशेषण उपवाक्य’ साधारण रुप में प्रधान वाक्य की
संज्ञा की विशेषता बतलाता है। इस रूप में यह अर्थ–व्याप्ति को मर्यादित भी करता है
तथा अतिरिक्त सूचना भी देता है।
अमर की वह कमीज फट गई, जो
तुमने दी थी। (संकेतक)
अमर की एक कमीज फट गई, जो निचे
गिर गई थी। (सामान्य)
आगे देखा जाए तो विशेषण उपवाक्य सामान्य विशेषण
पद के रूप में भी रूपांतरित किए जा सकते हैं, जैसे-
तुम्हारी दी हुई
अमर की कमीज फट गई है।
लाल
फूल पौधे से झड़ गए।
(पौधे से वे फूल झड़ गए, जो लाल थे।)
ऐसे में विशेषण उपवाक्य ऐसे उपवाक्य हैं जो
विशेषण के स्थान्तरित उपवाक्य हैं जैसाकि पहले ही कहा गया है कि कभी-कभी विशेषण
उपवाक्य प्रधान वाक्य की संज्ञा के अर्थ की व्याप्ति को विशेषित करते, वरन् उसके
विषय में अतिरिक्त सूचना भी देते हैं, जैसे-
उसके पास वह कमीज है जो सफ़ेद रंग की है। (अर्थ मर्यादित)
उसके पास सफ़ेद रंग की वह
कमीज है जो आपने दी थी। (अतिरिक्तसूचना)
आर्थी दृष्टि से विशेषण उपवाक्य प्रधान वाक्य
के संबंध में बहुधा उद्देश्य, कर्म,पूर्ति और विधेय विस्तारक आदि किसी एक रूप में
आता है।
हिंदी में विशेषण उपवाक्य के क्रम-संबंधी
सिद्धांत निम्न रूप में प्रस्तुत किए जा सकते हैं-
1- प्रधानवाक्य
+ विशेषण उपवाक्य
2- प्रधान
वाक्य + एकाधिक विशेषण उपवाक्य
3- विशेषण
उपवाक्य + प्रधान वाक्य
4- एकाधिक
विशेषण उपवाक्य + प्रधान वाक्य
5- अधूरा
प्रधान वाक्य + विशेषण उपवाक्य/विशेषण पदबंध + शेष प्रधान वाक्य जैसे-
स्पष्ट है कि (2) तथा (4) वाक्यों में एकाधिक
उपवाक्यों का प्रयोग जब होता है तब दूसरे उपवाक्य में ‘जो’ का लोप हो जाता है।
क्रियाविशेषण
उपवाक्य-
प्रधान
वाक्य में प्रयुक्त क्रिया की विशेषता बताने वाले वाक्य को ‘क्रियाविशेषण उपवाक्य’
कहते हैं।
जैसे-
जब मैं वहां आऊंगा तब कार्य होगा।
संरचना
की दृष्टि से हिंदी में विभिन्न क्रियाविशेषण उपवाक्य के प्रयोग में निम्नलिखित
चिन्हों का उपयोग किया जाता है। प्रधान वाक्य के साथ इनका सहसंबंध महत्वपूर्ण है।
इस रूप में इनके अनेक युग्म संभव हैं। जिनका उल्लेख नीचे किया जा रहा है-
क्रि. वि.
उप. प्र. वाक्य
(क)
कालवाचक जब तब
जब
से तब से
जब-जब
तब-तब
जब
तक तब तक
जब
कभी तब
(ख)
स्थानवाचक जहाँ वहाँ
जहाँ से वहाँ से
जहाँ-जहाँ
वहाँ-वहाँ
जिधर उधर
(ग)
रीतिवाचक जैसा वैसा-
तैसा
ज्यों त्यों
ज्यों ही त्यों ही
मानो यह –
ऐसे
(घ)
परिणाम वाचक ज्यो-ज्यों त्यों-त्यों
जैसे-जैसे वैसे – वैसे
जितना कि उतना
(ङ)
कार्यकारणवाचक क्योंकि इसलिए
इसलिए कि
उदहारण-
(क)जब आंधी बड़े जोर से चल रही थी, तब मैं
रास्ते में ही था।
(ख)जहाँ तुम गए थे, वहां मैं भी जा रहा हूँ।
(ग)जैसा मोहन बोलता है, वैसा कोई नहीं बोल
सकता।
(घ)जैसे-जैसे आमदनी बढ़ती है, वैसे-वैसे
व्यय भी बढ़ता है।
(ङ)क्योंकि उन्होंने हमारे लिए बहुत दुःख
सहा है, इसलिए उन्हें सुख पहुंचाना होगा।
दृष्टव्य है कि प्रधान वाक्य
में प्रयुक्त चिन्ह वैकल्पिक रूप में भी प्रयुक्त होते हैं, जैसे-
जैसा आलोक बोलता है,( वैसा) कोई नहीं बोल सकता।
हिंदी में क्रियाविशेषण
उपवाक्य के क्रम संबंधित सिद्धांत निम्न रूप से प्रस्तुत किए जा सकते हैं-
(क) क्रिया विशेषण उपवाक्य + प्रधान वाक्य
(ख)
एकाधिक क्रिया विशेषण उपवाक्य + प्रधान वाक्य
(ग)
प्रधान वाक्य + एकाधिक क्रिया
विशेषण उपवाक्य
(घ)
क्रिया विशेषण उपवाक्य + प्रधान
वाक्य + क्रिया विशेषण उपवाक्य + प्रधान वाक्य
उदाहरण-
अतः
हिंदी के आश्रित उपवाक्यों का प्रकार्यात्मक विश्लेषण करने पर यह देखा जा सकता है
कि किस प्रकार से मिश्र वाक्य के निर्माण में अपनी प्रकार्यात्मक भूमिका निभाते
हैं।
संदर्भ
ग्रंथ-सूची
Ø गुरु,
कामताप्रसाद : हिंदी व्याकरण, संस्करण 2012, प्रकाशन संस्थान, नई दिल्ली 110002।
Ø काचरू,
यमुना : हिंदी का समसामयिक व्याकरण, प्रथम संसकरण 1980.
Ø कालरा, सुधा.(1971). हिंदी वाक्यविन्यास. इलाहाबाद: लोकभारती प्रकाशन.
Ø तिवारी,भोलानाथ
: हिंदी भाषा की वाक्य संरचना, द्वितीय संस्करण 2000, साहित्य सहकार, दिल्ली
110032।
Ø सहाय, चतुर्भुज. (1979). हिंदी वाक्यसंरचना. वाराणसी : संजय बुक सेंटर.
Ø सिंह,
सूरजभान : हिंदी का वाक्यात्मक व्याकरण, संस्करण 2000, साहित्य सहकार प्रकाशन,
दिल्ली-110032
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