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Tuesday, January 1, 2019

फेसबुक की हिंदी (अर्थविज्ञान संदर्भ में विश्लेषण)


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आभ्यंतर (Aabhyantar)      SCONLI-12  विशेषांक         ISSN : 2348-7771

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26.  फेसबुक की हिंदी (अर्थविज्ञान संदर्भ में विश्लेषण)
विजया सिंह : पी-एच.डी. भाषाविज्ञान एवं भाषा प्रौद्योगिकी, म.गा.अं.हिं.वि. वर्धा

सारांश
डेनियल डेफो का कहना था, ‘यदि कोई मुझसे पूछे कि भाषा का सर्वोत्तम रूप क्या हो, तो मैं कहूंगा कि वह भाषा, जिसे सामान्य वर्ग के भिन्न-भिन्न क्षमता वाले पांच सौ व्यक्ति (मूर्खो और पागलों को छोड़कर) अच्छी तरह से समझ सकें। मीडिया की भाषा भी इसी तर्ज पर काम कराती है। चाहे किसी भी प्रकार की मीडिया हो, प्रिंट, इलेक्ट्रोनिक या नव मीडिया, सभी माध्यमों में ऐसी भी भाषा लिखी या प्रेषित की जाती है, जिससे संदेश संप्रेषित हो जाए. यानी मीडिया की भाषा का मुख्य लक्ष्य संप्रेषण है। भाषा की शुरुआत पर अगर गौर करें तो  किसी भी भाषा की रचना सामान्य परिस्थितियों में नहीं होती। भाषा परिवर्तनों में जन्म लेती है और परिवर्तनों के साथ ही विकसित होती है। नए समाज में विकास की नई परिस्थितियां पैदा होती हैं, नई घटनाएं जन्म लेती हैं। जैसे कि बदलते समाज के साथ जैसे- जैसे मीडिया का रूप बदलता गया है, उसकी भाषा भी बदलती गई है। बदलते समाज को अभिव्यक्त करने के लिए नई भाषा, शैली और शब्दावली की जरूरत महसूस होती है। मीडिया का सीधा संबंध सामान्य जनता से होता है, इसलिए भाषा में बदलाव की यह जरूरत सबसे पहले मीडिया को ही होती है। शोध पत्र का विषय चूँकि फेसबुक की हिंदी हैं, इसलिए उसी संदर्भ में हिंदी भाषा के बदलाव की पड़ताल की गई है। फेसबुक जैसे नए माध्यम ने हर नए माध्यम की तरह भाषा के प्रयोग के तौर-तरीकों, शब्दकोश, शैली, शुद्धता, व्याकरण और वाक्य रचना को प्रभावित किया है। यह असर लिखित ही नहीं, बोलने वाली भाषा पर भी दिख रहा है। क्योंकि यह एक अनौपचारिक माध्यम है इसलिए इस पर लिखी जाने वाली भाषा भी अनौपचारिक ही होती है फेसबुक भाषा की संरचना को प्रभावित करने वाले भी कई कारक होते हैं, जिसमें प्रयोक्ताओं की विभिन्न श्रेणियां शामिल होती हैं इसमें, प्रयोक्ताओं के सामाजिक- सांस्कृतिक परिवेश, व्यवसाय, उम्र, लिंग आदि प्रमुख हैं फेसबुक कंपनी द्वारा जारी वर्ष 2017 के आँकड़े बताते हैं कि फेसबुक कम्युनिटी ने आधिकारिक रूप से वैश्विक स्तर पर 2 अरब मासिक सक्रिय प्रयोक्ताओं के आँकड़े को पार कर लिया है। फेसबुक के तेजी से बढ़ते बाजारों में भारत, थाइलैंड, ब्राजील, मैक्सिको और अर्जेंटीना प्रमुख हैं। साल-दर-साल वृद्धि के हिसाब से पाँच शीर्ष देशों में अमेरिका, ब्राजील, थाइलैंड, मैक्सिको और ब्रिटेन हैं। भारत में सितंबर, 2017 तक मासिक सक्रिय प्रयोक्ताओं की संख्या 11.2 करोड़ है, जबकि दैनिक सक्रिय प्रयोक्ताओं की संख्या 5.2 करोड़ है। इसमें हिंदी भाषा के प्रयोक्ता भी शामिल हैं। जाहिर सी बात है कि फेसबुक के द्वारा हिंदी और हिंदी के द्वारा फेसबुक के आँकड़ों में बढ़ोतरी हो रही है 
फेसबुक और  हिंदी
सोशल मीडिया का सबसे पॉपुलर नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर ख़ास कर भारत में हिंदी भाषा अधिकाधिक विस्तार मिल रहा है कारण है कि हिंदी भाषा अभिव्यक्ति का एक सरल और बेहतर माध्यम है। इसके भावों को समझने में असुविधा का सामना नहीं करना पड़ता और लिखी गई बात पाठक तक उसी भाव में पहुंचती है, जिस भाव के साथ उसे लिखा गया है। हिंदी के तीव्र विस्तार का ग्राफ सोशल मीडिया पर मौजूद हिंदी प्रयोक्ताओं के अपनी भाषा से लगाव की ओर इंगित करता है। कुछ वर्ष पहले तक विश्व में 80 करोड़ लोग हिंदी समझते, 50 करोड़ बोलते और 35 करोड़ लिखते थे, लेकिन सोशल मीडिया पर हिंदी के बढ़ते इस्तेमाल के कारण, अब अंग्रेजी उपयोगकर्ताओं में भी हिंदी के प्रति आकर्षण बढ़ा है। वर्तमान में भारत, दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा इंटरनेट उपयोगकर्ता है, जिसका श्रेय कहीं-न-कहीं हिंदी भाषा को भी जाता है। आज फेसबुक, ट्विटर, ब्लॉग, व्हाटस एप्प या कोई अन्य नेटवर्किंग साइट् सभी पर हिंदी भाषा की सुविधा उपलब्ध है। हिंदी भाषा के कंप्यूटरीकरण के बाद सोशल मीडिया प्रयोगकर्ताओं की संख्या लगातार बढ़ रही है। आज भारत में 2000 लाख से अधिक इंटरनेट प्रयोक्ता हैं।  सोशल मीडिया की नीव पर निर्मित ग्लोबल गाँव जिसकी कोई परिभाषित सीमा नहीं है, हिंदी भाषा का विस्तार करने में सक्षम है।  कंप्यूटर की दुनिया में हिंदी भाषा के आगमन ने हिंदी भाषा का वैश्वीकरण किया। 80 के दशक में कंप्यूटर की दुनिया में हिंदी भाषा ने डिस्क ऑपरेटिंग सिस्टम (डॉस) के जमाने में अक्षर शब्दरत्न आदि जैसे वर्ड प्रोसेसरों के रूप में कदम रखा। बाद में विण्डोज़ का पदार्पण होने पर 8-बिट ऑस्की फॉण्ट जैसे कृतिदेवचाणक्य आदि के द्वारा वर्ड प्रोसेसिंग डीटीपी तथा ग्राफिक्स अनुप्रयोगों में हिंदी भाषा में मुद्रण व लेखन संभव हो सका। गूगल ने 2007 में अपने हिंदी भाषा अनुवादक का प्रारंभ किया और इसके बाद यूनिकोड फॉण्ट का विकास हुआ जिसको माइक्रोसॉफ्ट के विण्डोज़ ऑपरेटिंग सिस्टम में विण्डोज़ 2000 का समर्थन मिला।  इस तरह हिंदी भाषा का टेक्नोलॉजी की दुनिया में विस्तार हुआ। इससे अंग्रेजी और अन्य यूरोपीय भाषाओं की तरह कंप्यूटर पर सभी ऍप्लिकेशनों में हिंदी भाषा का प्रयोग संभव हो गया। सोशल मीडिया पर हिंदी भाषा के विकास ने भारतीयों को सोशल नेटवर्किंग साइट्स की ओर आकर्षित किया है।  गूगल इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार 2018 तक लगभग आधा देश इंटरनेट के माध्यम से जुड़ जाएगा। सोशल मीडिया पर हिंदी भाषा के विस्तार की गति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अप्रैल 2015 तक देश में सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या 14.3 करोड़ रही, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोक्ताओं की संख्या पिछले एक साल में 100 प्रतिशत तक बढ़कर ढाई करोड़ पहुंच गई जबकि शहरी इलाकों में यह संख्या 35 प्रतिशत बढ़कर 11.8 करोड़ रही। सबसे खास बात यह है कि न केवल उम्रदराज भारतीय, बल्कि अंग्रेजी का अच्छा-खासा ज्ञान रखने वाले युवा भी अब सोशल मीडिया पर हिंदी भाषा में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। 
रिव्यु ऑफ़ लिटरेचर   
1.                   दाधीच, बालेंदु. (आलेख - न्यू मीडिया: न पत्रकारिता तक सीमित, न कंप्यूटर तक अंक17 मार्च 2013)  मीडिया मीमांसा.  त्रैमासिक पत्रिका
इस आलेख में लेखक ने बताया है कि नव मीडिया ने संचार की बंदिशों को तोड़ा है यही वजह है कि उसकी भाषा भी इस तरह की है कि दूर - देश में बैठा कोई भी पाठक उसे समझ सके नव मीडिया भौगोलिक सीमाओं से परे है इसलिए भाषा भी उसी तरह की है यही वजह है कि नव मीडिया की भाषा न तो साहित्यिक है न ही आजकल की पत्रकारिता की भाषा इस मीडिया की भाषा नयी पीढ़ी की भाषा है यह पीढ़ी हर काम शीघ्रता और त्वरा में चाहती है उनके जीवन में हर कुछ रेडीमेड चलता है इसलिए उन्होंने नव मीडिया की भाषा को भी ऐसा रूप दे दिया जो बिलकुल तैयार हो और संक्षिप्त हो
2.       चतुर्वेदी, जगदीश्वर. (2014). इंटरनेट सहित्यालोचना और जनतंत्र.  नई दिल्ली:  स्वराज प्रकाशन
यह पुस्तक इंटरनेट पर लिखे गये सहित्यालोचना के लेखों का संकलन है पुस्तक में ब्लॉग पर बात करते हुए लेखक ने नव मीडिया के बारे में बताया है कि नव मीडिया की भाषा भाषा है यानी हाइपरटेक्स्ट है इसमें भाषा के नहीं हाइपरटेक्स्ट के गुण है यह हमारी व्यक्तिगत जरूरतों को आत्मसात करती है जबकि मीडिया की अन्य विधा में भाषा जन उत्पादनों को आत्मसात करती है सोशल मीडिया में तीन तरह की भाषा मिलती है विशेष भाषा, सामान्य भाषा और चलताऊ भाषा यह उपभोक्ता पर निर्भर है कि वह किस तरह की भाषा और किस टेक्स्ट में इस्तेमाल कर रहा है
 क्योंकि अभिजात वर्ग है वह सामान्य भाषा का प्रयोग करता है, विशेष भाषा का प्रयोग क्षेत्र विशेष के लोग करते हैं और चलताऊ भाषा का प्रयोग सामान्य वर्ग करता है
3.       क्रिस्टल, डेविड. (2001). लैंग्वेज एंड द इंटरनेट. नई दिल्ली: कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस
डेविड क्रिस्टल के द्वारा लिखित इस पुस्तक में पूरे तौर पर इंटरनेट की भाषा पर ही बात की गयी है भाषा की आधारभूत संरचना से उठाई गयी बात यूथ लेंग्वेजपर आ कर रुकती है इसके बाद यूथ की भाषा के साथ ही इंटरनेट की भाषा,उसकी संरचना क्या है और कौन- सा वर्ग किस तरह की भाषा इंटरनेट पर इस्तेमाल कर रहा है,  कि  चर्चा की गयी है इंटरनेट के बहुआयामी रूप जैसे ई-मेल,चैटिंग, वेब, ब्लॉग और मैसेजिंग की भाषा के अंतर्वस्तु को विस्तार से समझाया गया है इसके साथ की वेब मीडिया या सोशल मीडिया की भाषा के संक्षिप्तीकरण को बताया गया है साथ ही संक्षिप्तीकरण के बाद कौन से शब्द से कौन से नये शब्द बने, इसकी एक छोटी-सी सूची भी दी गयी है पुस्तक को अगर अपने शोध विषय से जोड़ कर देखा जाये तो यह बहुत ही लाभकारी और सटीक है
4.    पचौरी,  सुधीश. (2009). नया मीडिया नये मुद्दे. नई दिल्ली: वाणी प्रकाशन  
 पुस्तक में मीडिया के सभी माध्यमों और उनके आयामों पर चर्चा की गयी है इसमें वेब मीडिया पर साइबर की साइबरीअध्याय में साइबर वर्ल्ड की तुलना निर्गुण ब्रह्म से की गयी है इसमें यह बताया गया है कि साइबर की दुनिया हर जगह मौजूद है मगर पकड़ से बाहर यानी यह बंधी- बंधाई श्रेणी से अलग है हालांकि इस पुस्तक में भाषा पर सीधे- सीधे बात नहीं कही गयी है मगर मीडिया की लंबी यात्रा जिसमें प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से गुजर कर नव मीडिया तक जो भाषा पहुंची है, उस नव मीडिया के टेक्स्ट को समझने में एक आधार जरूर तैयार करती है    
5.       बकार्डजाईवा, मारिया. (2005). इंटरनेट सोसाइटी. नई दिल्ली: सेज पब्लिकेशन 
इसमें दो अध्यायों के माध्यम से आभासी दुनिया की रिश्तेदारी, जिसमें चैटिंग, पब्लिक स्फियर्स पर गपशप, दुनिया भर में बिखरी हुई साइबर रिश्तेदारियों पर बात की गयी है पुस्तक में साइबर अंतर्वस्तु पर विस्तृत चर्चा है इसमें भी भाषा पर प्रत्यक्ष सामग्री तो नहीं लेकिन विषय की आधारभूत जानकारी जरूर मिलती है
6.       मेहता, मालती.( २०१३). न्यू मीडिया एंड इट्स लैंग्वेज . नई दिल्ली : सरुप बुक पब्लिशर्स
यह पुस्तक नव मीडिया और उसकी भाषा पर आधारित है लेखिका ने  पुस्तक के जरिये संक्षेप में यह बताया है कि नव मीडिया क्या है और उसकी भाषा का रूप क्या है साथ ही यह भी समझाया है कि नव मीडिया की भाषा का जो रूप है वह ऐसा क्यों है वे कौन से कारण हैं जिसकी वजह से पुरानी मीडिया की भाषा से इतर नव मीडिया ने अपनी नयी भाषा रची,  इसे भी विश्लेषित किया गया हैलेखिका ने पुस्तक में लिखा है कि ‘I aim to describe and understand the logic driving the development of the language of new media. (I am not claiming that there is a single language of new media. I use ‘language as an umbrella term to refer to a number of various conventions used by designers of media objects to organize data and structure the user’s experience.) नव मीडिया क्या है, अध्याय में यह बताया गया है कि आखिर नव मीडियानयाकैसे बना लेखिका ने नव मीडिया के अनेक रूप और उनकी भाषा की विविधता पर चर्चा की है 
7.       चतुर्वेदी, सिंह जगदीश्वर .सुधा. (2008). भूमंडलीकरण और ग्लोबल मीडिया. नई दिल्ली: अनामिका पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स  प्रालि
पुस्तक अध्याय के स्तर पर चार भागों में विभक्त हैअमार्द मेतलार्द, पीयरे बोर्दियो, मार्शल मैकलुहान और स्लोवाक जीजेकपुस्तक में इन चारों विद्वानों के दृष्टिकोण को बताया गया है कि वे किस तरह से मीडिया के विभिन्न स्वरूप को देखते हैं, जैसे पहले भाग में मेतलार्द का ग्लोबल संस्कृति और मीडिया, विज्ञापन बाजार, कम्युनिकेशन का वर्ग विश्लेषण और नई सूचना विश्वव्यवस्था आदि अध्यायों के माध्यम से मीडिया और सूचना समाज के विभिन्न पक्षों को समझाया गया है इसके बाद पियरे बर्दियो पॉपुलर कल्चर, संस्कृति और मीडिया, मीडिया परिवर्तन, उत्पीड़न और आनंद जैसे अध्याय मीडिया के बदलते स्वरूप को समझने में मदद करते हैं निश्चित रूप से मीडिया के प्रिंट रूप से लेकर सोशल मीडिया तक की यात्रा को समझने में इन विद्वानों के दृष्टिकोण उपयोगी हैं इसके अलावा मार्शल मैकलुहान का डिजिटल परिप्रेक्ष्य, ग्लोबल विलेज जैसी अवधारणाएं सोशल मीडिया के बनने और उसके स्वरूप को समझने का आधार तैयार करते हैं 
जर्नल
kamnoetsin, tharinee. (2014 ). Social media use: A critical analysis of facebook’s impact of collegiate  EFL Students' English Writing in Thailand" (2014). Seton Hall University Dissertations and Theses (ETDs). Paper 2059.  
 इस शोध पत्र में थाईलैंड के विद्यार्थियों की अंग्रेजी पर फेसबुक के प्रभाव के बारे में बताया गया है पत्र में इस बात पर बल दिया गया है कि सोशल नेटवर्किंग साईट यानी SNS लोगों पर बहुआयामी प्रभाव डालता है,जिसका एक प्रभाव उनकी भाषा लेखन और बोलने पर भी पड़ता है मात्रात्मक पद्धति से किये गये इस शोध में लोगों के व्यवहार पर भी फेसबुक के प्रभाव को बताया गया है ITC यानी इनफार्मेशन एंड कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी और आभासी संजाल से हर कोई आज जुड़ा हुआ है यहीं कारण है कि आज संचार यह तय करता है कि आपका व्यवहार किस ओर जाए खास कर भाषायी स्तर पर हालांकि इस शोध पर में विद्यार्थियों के अकादमिक लेखन पर फेसबुक के प्रभाव की बात उठाई गयी है मेरे शोध विषय, जिसमें नव मीडिया का हिंदी पर प्रभाव पर काम किया जाएगा, उक्त शोध आलेख एक दिशा- निर्देश के रूप में है खास कर नव मीडिया के प्रयोक्ता के व्यवहार और इस पर नव मीडिया का असर को समझने में यह शोध आलेख उपयोगी है  
Standard language in urban rap – Social media, linguistic practice and ethnographic context
(Andreas Stوhr & Lian Malai Madsen, University of Copenhagen) 
इस शोध पत्र में लिंगविस्टिक्स के हिप- हॉप भाषा पर अध्ययन किया गया है हिप- हॉप शब्द हालांकि संज्ञा में  शामिल हो गया है, लेकिन इसका शाब्दिक अर्थ है, वैसी भाषा जो  रेडी टू यूज़ हैशोध पत्र में कोपेनहेगन में यू-टयूब पर इस्तेमाल होने वाली हिप- हॉप भाषा को चुन कर उस पर स्टडी की गयी हैभाषा में आये इस बदलाव पर पूरी बहस को भी पत्र में शामिल किया गया है शोध पत्र में कहा गया है कि  “According to the language focused hip hop research vernacular, non-standard and hybrid linguistic practices are described as characteristic of this cultural genre and within educational studies the creative and counter-hegemonic language use is considered a significant part of the pedagogical and political potentials of hip hop.”  यह अध्ययन नव मीडिया के एक प्रदर्शित रूप यानी यू- टयूब पर किया गया है भाषा के बदलाव को सोषियो लिंग्विस्टिक्स के संदर्भ में देखा गया है
 अर्थविज्ञान और भाषा
भाषा के दायरे में शब्दों और वाक्यों के तात्पर्य का अध्ययन अर्थ-विज्ञान कहलाता है। उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध से पहले अर्थ-विज्ञान को एक अलग अनुशासन के रूप में मान्यता नहीं थी। फ़्रांसीसी भाषा-शास्त्री मिशेल ब्रील ने इस अनुशासन की स्थापना की और इसे 'सीमेंटिक्स' का नाम दिया। बीसवीं सदी की शुरुआत में फ़र्दिनैंद द सॅस्यूर द्वारा प्रवर्तित भाषाई क्रांति के बाद से सीमेंटिक्स के पैर समाज-विज्ञान में जमते चले गये। सीमेंटिक्स का पहला काम है भाषाई श्रेणियों की पहचान करना और उन्हें उपयुक्त शब्दावली में व्याख्यायित करना।  सीमेंटिक्स के तहत जिस भाषा का अध्ययन किया जाता है उसे लक्ष्य-भाषा (ऑब्जेक्ट लैंग्वेज) की संज्ञा दी जाती है और जिस भाषा में उसकी व्याख्या की जाती है उसे मैटालेंग्वेज कहते हैं। एक लक्ष्य-भाषा अपनी व्याख्या के मैटालेंग्वेज भूमिका अदा सकती है। भाषा-शास्त्र के इतिहास में अर्थ-ग्रहण संबंधी कवायदें पहले शब्द-केंद्रित थीं, फिर वे वाक्य-केंद्रित हुईं और फिर वे पाठ- केंद्रित हो गयीं। इन तीनों प्रक्रियाओं ने मीडिया-अध्ययन, साहित्यालोचना, व्याख्यात्मक समाजशास्त्र और संज्ञानात्मक विज्ञान के अनुशासनों को प्रभावित किया है। सीमेंटिक्स प्रश्न उठाता है कि किसी शब्द के अर्थ की शिनाख्त भाषा के दायरे के भीतर ही की जाए या अर्थ-निरूपण के लिए उसके बाहरी दायरे से भी मदद ली जाए। मसलन, कुर्सी का मतलब हमें पता है, पर, यह अर्थ हम किस प्रकार हासिल करते हैं? हम कह सकते हैं  कि कुर्सी पर बैठा जाता है। पर, भाषा के भीतर कुर्सी का अर्थ फ़र्नीचर, मेज़, सीट या बेंच जैसे अन्य अर्थों सहित उसके संबंध के साथ भी ग्रहण किया जाता है। इन शब्दों के साथ रख कर बैठने के लिए काम आने वाली कुर्सी का अर्थ-ग्रहण अलग हो जाता है। बोध और संदर्भ के बीच अंतर का एक और उदाहरण शुक्र ग्रह या वीनस है। इसे भोर का तारा भी कहा जाता है और सांध्य-तारा भी, क्योंकि इसकी चमक सुबह भी दिखायी पड़ती है और रात में भी। इस तरह शुक्र, भोर का तारा और सांध्य-तारा एक ही चीज़ के तीन नाम हैं। लेकिन संदर्भ एक ही होते हुए भी तीनों को अलग-अलग बोध के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
  आँकड़ा विश्लेषण
फेसबुक पर उपयोग के शब्द
अर्थ विस्तार
अर्थ संकोच
अर्थ आदेश
अरे यार मत रायता फैलाओ
रायता एक खाद्य सामग्री है, जिसे फेसबुक पर बात को अन्यथा बढ़ाने में अर्थ विस्तार कर दिया गया है 
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पप्पू हो क्या ?
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पप्पू एक नाम है, जो पिछले लगभग दो वर्षों में मूर्ख लड़के के लिए प्रयोग होने लगा है.
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दिमाग  का दही हो गया
यहाँ दही जमने के संदर्भ में अर्थ संकोच हो गया है. जैसे जमने के बाद दही स्थिर हो जाती है, वैसे ही दिमाग चलना बंद कर देता है
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तुम मेरे फेसबुकिया  दोस्त  हो
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यह शब्द फेसबुक के  रहने वाले समाज के सदस्य के लिए आया है.  पहले इसका प्रयोग फेसबुक के आदतों के  आदी लोगों के लिए होता था.
छिला अंडा लुक
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छिला अंडा बिल्कुल चिकना होता है. इसी गुण को देखते हुए एकदम क्लीन सेव लड़कों के लिए प्रयोग होने लगा है .
ये भक्त अब बोल नहीं रहे
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फेसबुक की भाषा में भक्त मोदी समर्थकों के लिए चल पड़ा है
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ब्रो (bro), सिस (sis),  पा (पा)
रिश्तों ये शब्द अंग्रेजी के हैं लेकिन हिंदी लिखने के क्रम में  अंग्रेजी के इन शब्दों का अर्थ संकुचन हो गया है
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वाह गुरु मान गए

गुरु शब्द  बड़ा और उच्च शब्द  के संकुचित हो कर शिक्षक के लिए  प्रयुक होता है. लेकिन फेसबुक वाल पर इसका प्रयोग किसी को किसी ख़ास क्षेत्र प्रवीण व्यक्ति के लिए चलन में है

इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि भाषा में परिवर्तन के साथ कुछ शब्दों के अर्थ भी अनौपचारिक रूप से बदल गए है। फेसबुक पर एक समानांतर समाज चल रहा है। नेट पर चलने वाले इस समाज में उपस्थित रहने वाले व्यक्ति को ‘नेटिजन’ कहा गया है। जाहिर-सी बात है जिस तरह हर समाज की अपनी भाषा होती है, फेसबुक ने भी अपनी भाषा गढ़ ली है। अंग्रेजी के शब्दों का तो बड़ी मात्रा में अर्थ परिवर्तन हुआ है। मगर हिंदी भी इस परिवर्तन से अछूती नहीं है। नए- नए शब्दों का चलन जहाँ बढ़ा है वही कुछ शब्द अर्थ परिवर्तित हो गए हैं। यानी फेसबुक पर जो हिंदी लिखी- पढ़ी जा रही है, वह इसी सभ्य समाज से उठाई गई है, लेकिन उसका रूप बदल गया है।
संदर्भ ग्रंथ
·         Gabriel, Barbulet. (2013). Social Media- A pragmatic Approach: Contexts & Implicatures (Procedia - Social and Behavioral Sciences 83 (2013) 422 – 426), Romania: University of Alba Iulia, Alba Iulia    
·         Emoji Report (September, 2015). Emoji Research Team, USA
·         Simo, Tchokni, Diarmuid o S´eaghdha, Daniele Quercia. (2013). Emoticons and Phrases: Status Symbols in Social Media. (Journal).  Uk: The Computer Laboratory University of Cambridge 
·         Sim, Monica.  Pop, Anamaria.(2014). The impact of social media on vocabulary learning case study Facebook. Romania: University of Oradea


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